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[[सप्तक]] के 12 [[स्वर (संगीत)|स्वरों]] में से 7 क्रमानुसार मुख्य स्वरों के उस समुदाय को ठाट कहते हैं, जिससे [[राग]] उत्पन्न होते है। स्वरसप्तक, मेल, थाट, अथवा ठाट एक ही अर्थवाचक हैं। प्राचीन [[संस्कृत]] ग्रन्थों में मेल शब्द ही प्रयोग किया गया है। '''अभिनव राग मंजरी''' में कहा गया है– मेल स्वर समूह: स्याद्राग व्यंजन शक्तिमान, अर्थात् स्वरों के उस समूह को मेल या ठाट कहते हैं, जिसमें राग उत्पन्न करने की शक्ति हो।  
[[सप्तक]] के 12 [[स्वर (संगीत)|स्वरों]] में से 7 क्रमानुसार मुख्य स्वरों के उस समुदाय को थाट कहते हैं, जिससे [[राग]] उत्पन्न होते है। स्वरसप्तक, मेल, थाट, अथवा ठाट एक ही अर्थवाचक हैं। प्राचीन [[संस्कृत]] ग्रन्थों में मेल शब्द ही प्रयोग किया गया है। '''अभिनव राग मंजरी''' में कहा गया है– मेल स्वर समूह: स्याद्राग व्यंजन शक्तिमान, अर्थात् स्वरों के उस समूह को मेल या ठाट कहते हैं, जिसमें राग उत्पन्न करने की शक्ति हो।  
==ठाट के लक्षण==
==थाट के लक्षण==
#प्रत्येक ठाट में अधिक से अधिक और कम से कम सात स्वर प्रयोग किये जाने चाहिए। इसका कारण यह है कि अगर ठाट सम्पूर्ण (सात स्वर वाला) नहीं रहता है तो किस प्रकार उससे सम्पूर्ण रागों की उत्पत्ति मानी जाएगी?
#प्रत्येक ठाट में अधिक से अधिक और कम से कम सात स्वर प्रयोग किये जाने चाहिए। इसका कारण यह है कि अगर ठाट सम्पूर्ण (सात स्वर वाला) नहीं रहता है तो किस प्रकार उससे सम्पूर्ण रागों की उत्पत्ति मानी जाएगी?
#ठाट सम्पूर्ण होने के साथ-साथ उसके स्वर स्वाभाविक क्रम से होने चाहिए। उदाहरण के लिए सा के बाद '''रे''', '''रे''' के बाद '''ग''' '''व''' '''म''', '''म''' के बाद '''प''', '''ध''' और '''नी''' आने ही चाहिए। यह बात दूसरी है कि ठाट में किसी स्वर का शुद्ध रूप न प्रयोग किया जाए, बल्कि विकृत रूप प्रयोग किया जाए। उदाहरणार्थ भैरव ठाट में कोमल '''रे'''–'''ध''' और कल्याण ठाट में तीव्र '''म''' स्वर प्रयोग किये जाते हैं।  
#ठाट सम्पूर्ण होने के साथ-साथ उसके स्वर स्वाभाविक क्रम से होने चाहिए। उदाहरण के लिए सा के बाद '''रे''', '''रे''' के बाद '''ग''' '''व''' '''म''', '''म''' के बाद '''प''', '''ध''' और '''नी''' आने ही चाहिए। यह बात दूसरी है कि ठाट में किसी स्वर का शुद्ध रूप न प्रयोग किया जाए, बल्कि विकृत रूप प्रयोग किया जाए। उदाहरणार्थ भैरव ठाट में कोमल '''रे'''–'''ध''' और कल्याण ठाट में तीव्र '''म''' स्वर प्रयोग किये जाते हैं।  
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#ठाट गाया-बजाया नहीं जाता। अत: उसमें वादी-सम्वादी, पकड़, आलाप-तान आदि की आवश्यकता नहीं होती।  
#ठाट गाया-बजाया नहीं जाता। अत: उसमें वादी-सम्वादी, पकड़, आलाप-तान आदि की आवश्यकता नहीं होती।  
#ठाट में राग उत्पन्न करने की क्षमता होती है।  
#ठाट में राग उत्पन्न करने की क्षमता होती है।  
==ठाटों की संख्या==
==थाटों की संख्या==
हिन्दुस्तानी [[संगीत]] पद्धति में आजकल 10 ठाट माने जाते हैं। इन ठाटों से समस्त राग उत्पन्न माने गये। आधुनिक काल में स्व. विष्णु नारायण भातखण्डे ने ठाट-पद्धति को प्रचार में लाने की कल्पना की और ठाटों की संख्या को 10 माना है। ठाटों के नाम और स्वर निम्नलिखित हैं–
हिन्दुस्तानी [[संगीत]] पद्धति में आजकल 10 ठाट माने जाते हैं। इन ठाटों से समस्त राग उत्पन्न माने गये। आधुनिक काल में स्व. विष्णु नारायण भातखण्डे ने ठाट-पद्धति को प्रचार में लाने की कल्पना की और ठाटों की संख्या को 10 माना है। ठाटों के नाम और स्वर निम्नलिखित हैं–
# बिलावल ठाट – प्रत्येक स्वर शुद्ध।
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'''उतरत रे ग ध अरु नी से, सोहत ठाट भैरवी।।'''<br />
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'''तोड़ी में रेग धम विकृत, रेधम विकृत ठाट पूर्वी।।'''</blockquote>
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==दस ठाठों से उत्पन्न कुछ राग==
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यमन, भूपाली, शुद्ध कल्याण, चन्द्रकान्त, जयतकल्याण, मालश्री, हिंदोल, हामीर, केदार, कामोद, श्याम, छाया-नट, गौड़सारंग, इत्यादि।
यमन, भूपाली, शुद्ध कल्याण, चन्द्रकान्त, जयतकल्याण, मालश्री, हिंदोल, हामीर, केदार, कामोद, श्याम, छाया-नट, गौड़सारंग, इत्यादि।
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14:43, 5 मार्च 2013 का अवतरण

सप्तक के 12 स्वरों में से 7 क्रमानुसार मुख्य स्वरों के उस समुदाय को थाट कहते हैं, जिससे राग उत्पन्न होते है। स्वरसप्तक, मेल, थाट, अथवा ठाट एक ही अर्थवाचक हैं। प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में मेल शब्द ही प्रयोग किया गया है। अभिनव राग मंजरी में कहा गया है– मेल स्वर समूह: स्याद्राग व्यंजन शक्तिमान, अर्थात् स्वरों के उस समूह को मेल या ठाट कहते हैं, जिसमें राग उत्पन्न करने की शक्ति हो।

थाट के लक्षण

  1. प्रत्येक ठाट में अधिक से अधिक और कम से कम सात स्वर प्रयोग किये जाने चाहिए। इसका कारण यह है कि अगर ठाट सम्पूर्ण (सात स्वर वाला) नहीं रहता है तो किस प्रकार उससे सम्पूर्ण रागों की उत्पत्ति मानी जाएगी?
  2. ठाट सम्पूर्ण होने के साथ-साथ उसके स्वर स्वाभाविक क्रम से होने चाहिए। उदाहरण के लिए सा के बाद रे, रे के बाद , के बाद , और नी आने ही चाहिए। यह बात दूसरी है कि ठाट में किसी स्वर का शुद्ध रूप न प्रयोग किया जाए, बल्कि विकृत रूप प्रयोग किया जाए। उदाहरणार्थ भैरव ठाट में कोमल रे और कल्याण ठाट में तीव्र स्वर प्रयोग किये जाते हैं।
  3. किसी ठाट में आरोह-अवरोह दोनों का होना आवश्यक नहीं है, क्योंकि प्रत्येक ठाट के आरोह और अवरोह में कोई अन्तर नहीं होता। केवल आरोह या अवरोह को देखन से ही यह ज्ञात हो जाता है कि वह कौन सा ठाट है।
  4. ठाट गाया-बजाया नहीं जाता। अत: उसमें वादी-सम्वादी, पकड़, आलाप-तान आदि की आवश्यकता नहीं होती।
  5. ठाट में राग उत्पन्न करने की क्षमता होती है।

थाटों की संख्या

हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में आजकल 10 ठाट माने जाते हैं। इन ठाटों से समस्त राग उत्पन्न माने गये। आधुनिक काल में स्व. विष्णु नारायण भातखण्डे ने ठाट-पद्धति को प्रचार में लाने की कल्पना की और ठाटों की संख्या को 10 माना है। ठाटों के नाम और स्वर निम्नलिखित हैं–

  1. बिलावल ठाट – प्रत्येक स्वर शुद्ध।
  2. कल्याण ठाट – केवल म तीव्र और अन्य स्वर शुद्ध।
  3. खमाज ठाट – नि कोमल और अन्य स्वर शुद्ध।
  4. आसावरी ठाट – ग, ध, नि कोमल और शेष स्वर शुद्ध।
  5. काफ़ी ठाट – ग, नि कोमल और शेष स्वर शुद्ध।
  6. भैरवी ठाट – रे, ग, ध, नि कोमल और शेष स्वर शुद्ध।
  7. भैरव ठाट – रे, ध कोमल और शेष स्वर शुद्ध।
  8. मारवा ठाट – रे कोमल, मध्यम तीव्र तथा शेष स्वर शुद्ध।
  9. पूर्वी ठाट – रे, ध कोमल, म तीव्र और शेष स्वर शुद्ध।
  10. तोड़ी ठाट – रे, ग, ध कोमल, म तीव्र और शेष स्वर शुद्ध।

निम्न दोहा में ठाटों का स्वरूप सरलता से याद किया जा सकता है–

भैरव भैरवि आसावरी, यमन बिलावल ठाट।

तोड़ी काफ़ी मारवा, पूर्वी और खमाज।।
शुद्ध सुरन की बिलावल, कोमल निषाद खमाज
म तीवर स्वर यमन मेल, ग नि मृदु काफ़ी ठाट।।
गधनि कोमल से आसावरी, रे ध मृदु भैरव रूप।।
रे कोमल चढ़ती मध्यम, मारवा ठाट अनूप।।
उतरत रे ग ध अरु नी से, सोहत ठाट भैरवी।।

तोड़ी में रेग धम विकृत, रेधम विकृत ठाट पूर्वी।।

दस थाटों से उत्पन्न कुछ राग

कल्याण ठाठों के राग

यमन, भूपाली, शुद्ध कल्याण, चन्द्रकान्त, जयतकल्याण, मालश्री, हिंदोल, हामीर, केदार, कामोद, श्याम, छाया-नट, गौड़सारंग, इत्यादि।

बिलावल ठाठ के राग

बिलावल शुद्ध, अल्हैयाबिलावल, शुक्लबिलावल, देवगिरी, यमनी, ककुभ, नटबिलावल, लच्छासाख, सरपर्दा, विहाग, देशकार, हेमकल्याण, नट राग, पहाड़ी, मांड, दुर्गा, मलुहा, शंकरा इत्यादि।

खमाज ठाठ के राग

झिंझोटी, खमाज, दुर्गा द्वितीय, तिलंग, रागेश्वरी, खंबावती, गारा, सोरठ, देश, जेजैवंती, तिलककामोद इत्यादि।

भैरव ठाठ के राग

भैरव, रामकली, बंगालभैरव, सौराष्ट्रटंक, प्रभात, शिवभैरव, आनंदभैरव, अहीरभैरव, गुणकली, कालिंगड़ा जोगिया, विभाग, मेघरंजनी इत्यादि।

पूर्वी ठाठ के राग

पूर्वी, पूर्याधनाश्री, जेतश्री, परज, श्रीराग, गौरी, मालश्री, त्रिवेणी, टंकी, वसंत इत्यादि।

मारवा ठाठ के राग

मारवा, पूरिया, जैत, मालीगौरा, साजगिरी, वराटी, ललिट, सोहनी, पंचम, भटियार, विभास, भंखार इत्यादि।

काफ़ी ठाठ के राग

काफ़ी, सैंधवी, सिंदूरा, धनाश्री, भीमपलासी, धानी, पटमंजरी, पटदीपकी, हंसकंकणी, पीलू, बागेश्वरी, शहाना, सूहा, सुघराई, नायकीकान्हड़ा, देवसाख, बहार, वृन्दावनी सारंग, मध्यमादि सारंग, सामंतसारंग, शुद्ध सारंग, मियाँ की सारंग, बड़हंससारंग, शुद्ध मल्लार, मेघ, मियाँ की मल्लार, सूरमल्लार, गौड़मल्लार इत्यादि।

आसावरी ठाठ के राग

आसावरो, जैनपुरी, देवर्गाधार, सिंधुभैरवी, देसी, षट्राग, कौशिक कान्हड़ा, दरबारी कान्हड़ा, अडाणा, नायकी द्वितीय इत्यादि।

भैरवी ठाठ के राग

भैरवी, मालकौंस, धनाश्री, विलासखानी तोड़ी इत्यादि।

तोड़ी ठाठ के राग

तोड़ी (चौदह प्रकार की), मुलतानी इत्यादि। यद्यपि उपर्युक्त दस ठाठों द्वारा और भी बहुत-से राग उत्पन्न होते हैं, किन्तु यहाँ कुछ प्रचलित रागों का ही उल्लेख किया गया है।


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