"परती परिकथा -फणीश्वरनाथ रेणु": अवतरणों में अंतर

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[[साहित्य]] की तकरीबन हर विधा में अपनी लेखनी का लोहा मनवाने वाले उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु समकालीन ग्रामीण [[भारत]] की आवाज़ को उठाने तथा सामाजिक स्थितियों को कथा के माध्यम से चित्रित करने के लिए पहचाने जाते हैं। '[[पद्मश्री]]' से सम्मानित महान लेखक रेणु जी का जन्म [[बिहार]] के तत्कालीन [[पूर्णिया ज़िला|पूर्णिया ज़िले]] के फारबिसगंज के निकट एक गाँव में<ref>अब अररिया ज़िले में</ref> [[4 मार्च]], [[1921]] को हुआ था। [[नेपाल]] से उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की थी। 'बिहार विश्वविद्यालय' के 'लक्ष्मी नारायण दुबे महाविद्यालय' के [[अंग्रेज़ी]] विभाग के अवकाश प्राप्त विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ लेखक एस.के. प्रसून के अनुसार रेणु ने "[[मैला आंचल -फणीश्वरनाथ रेणु|मैला आंचल]]" के माध्यम से न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के वंचितों और पिछड़ों की पीड़ा को उकेरा। रेणु ने [[1942]] के 'स्वतंत्रता संग्राम' में हिस्सा लिया और [[1950]] के करीब उन्होंने नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के संघर्ष में भी हिस्सा लिया था। "काशी हिंदू विश्विविद्यालय" से शिक्षा ग्रहण करने वाले फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी "मारे गए गुलफ़ाम" पर "तीसरी कसम" नामक एक फ़िल्म भी बन चुकी है, जो ग्रामीण पृष्ठभूमि का अत्यंत बारीकी से किया गया भावनात्मक चित्रण है। फणीश्वरनाथ रेणु [[प्रेमचंद]] युग के बाद [[हिन्दी साहित्य|आधुनिक हिन्दी साहित्य]] में सर्वाधिक सफल और प्रभावी लेखकों में से हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/jeevenjizyasa/article1-story-50-51-98967.html|title=ग्रामीण परिवेश से परिचित कराते थे- रेणु|accessmonthday=25 मार्च|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
[[साहित्य]] की तकरीबन हर विधा में अपनी लेखनी का लोहा मनवाने वाले उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु समकालीन ग्रामीण [[भारत]] की आवाज़ को उठाने तथा सामाजिक स्थितियों को कथा के माध्यम से चित्रित करने के लिए पहचाने जाते हैं। '[[पद्मश्री]]' से सम्मानित महान लेखक रेणु जी का जन्म [[बिहार]] के तत्कालीन [[पूर्णिया ज़िला|पूर्णिया ज़िले]] के फारबिसगंज के निकट एक गाँव में<ref>अब अररिया ज़िले में</ref> [[4 मार्च]], [[1921]] को हुआ था। [[नेपाल]] से उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की थी। 'बिहार विश्वविद्यालय' के 'लक्ष्मी नारायण दुबे महाविद्यालय' के [[अंग्रेज़ी]] विभाग के अवकाश प्राप्त विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ लेखक एस.के. प्रसून के अनुसार रेणु ने "[[मैला आंचल -फणीश्वरनाथ रेणु|मैला आंचल]]" के माध्यम से न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के वंचितों और पिछड़ों की पीड़ा को उकेरा। रेणु ने [[1942]] के 'स्वतंत्रता संग्राम' में हिस्सा लिया और [[1950]] के करीब उन्होंने नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के संघर्ष में भी हिस्सा लिया था। "काशी हिंदू विश्विविद्यालय" से शिक्षा ग्रहण करने वाले फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी "मारे गए गुलफ़ाम" पर "तीसरी कसम" नामक एक फ़िल्म भी बन चुकी है, जो ग्रामीण पृष्ठभूमि का अत्यंत बारीकी से किया गया भावनात्मक चित्रण है। फणीश्वरनाथ रेणु [[प्रेमचंद]] युग के बाद [[हिन्दी साहित्य|आधुनिक हिन्दी साहित्य]] में सर्वाधिक सफल और प्रभावी लेखकों में से हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/jeevenjizyasa/article1-story-50-51-98967.html|title=ग्रामीण परिवेश से परिचित कराते थे- रेणु|accessmonthday=25 मार्च|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==कथावस्तु==
==कथावस्तु==
[[फणीश्वरनाथ रेणु]] के उपन्यास 'मैला आंचल' के समान ही 'परती परिकथा' भी एक गाँव के परिवेश के परिवर्तन की कहानी है। यहाँ भी बाँध बनता है, यहाँ भी सपने आकार लेते हैं। नेहरुवादी विकासमूलक सपने। 'परती परिकथा' के अंत की ओर पाठक एक ऐसे ही जश्न से रुबरु होता है। रेणु जी के उपन्यास के गाँव और फ़िल्म '[[मदर इंडिया]]' के गाँव में एक बड़ा फर्क है। रेणु के गाँव को [[उत्तर भारत]] में किसी दूसरे क्षेत्र में प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। यह [[कोशी नदी]] के पूरब का गाँव है, इसे कोशी के पच्छिम भी नहीं सरका सकते। 'मदर इंडिया' और 'परती परिकथा' दो रूप हैं। सन [[1950]] के गाँव पर नेहरुवादी आधुनिकता और औपनिवेशिकता। 'मदर इंडिया' जिसमें व्यक्ति की कल्पना को इज़ाज़त है जगह चुनने की, क्योंकि स्थानिकता के विस्तार में जगह की विशिष्टताओं को खुरचकर समतल कर दिया गया है। 'परती परिकथा' पाठक के स्थानजनित कल्पना को जगह के इर्द-गिर्द समेटने की कोशिश है। फणीश्वरनाथ रेणु के 'परती परिकथा' और "[[मैला आंचल -फणीश्वरनाथ रेणु|मैला आंचल]]" ये दोनों ही उपन्यास [[भारत]] के गाँवों के पिछड़ेपन की कहानी हैं। एक में औरत के जीवन-चरित के तौर पर, दूसरे में धरती के टुकड़े की। यह पिछड़ा टुकड़ा है पूर्णिया ज़िले का एक गाँव।<ref>{{cite web |url=http://pratilipi.in/2010/07/sadan-jha-on-renu/|title=रेणु साहित्य और आंचलिक आधुनिकता|accessmonthday=25 मार्च|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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==फ़िल्म का निर्माण==
[[फणीश्वरनाथ रेणु]] के इस प्रसिद्ध उपन्यास 'परती परिकथा' पर एक फ़िल्म का भी निर्माण हुआ, जिसका नाम था- '[[मदर इंडिया]]'। यह एक ऐतिहासिक संयोग भी हो सकता है कि [[महबूब ख़ान]] की मशहूर [[सिनेमा]] 'मदर इंडिया' और फणीश्वरनाथ रेणु का दूसरा उपन्यास 'परती परिकथा' वर्ष [[1957]] में एक मास के भीतर ही प्रदर्शित हुए थे। 'मदर इंडिया' उस [[वर्ष]] सबसे पहले [[25 अक्टूबर]] को [[बम्बई]] और [[कलकत्ता]] (वर्तमान कोलकाता) में परदे पर आयी और 'परती परिकथा' के लिये इससे कुछ पहले [[21 सितम्बर]] को 'राजकमल प्रकाशन' के दफ्तर [[दिल्ली]] में और [[28 सितम्बर]] को [[पटना]] में बड़े धूम-धाम से 'प्रकाशनोत्सव' मनाया गया। देश के [[अख़बार|अख़बारों]] में इश्तेहार छापे गये, लेखक से मिलिये कार्यक्रम और जलपान का आयोजन भी साथ-साथ था। यह भी उल्लेखनीय है कि यह देश के स्वाधीनता की दसवीं सालगिरह भी थी। फ़िल्म 'मदर इंडिया' और 'परती परिकथा' दोनों ही [[भारत]] के ग्रामीण परिवेश के बदलाव की दास्तान हैं। 'मदर इंडिया' की कहानी फ्लैश-बैक में चलती है, जिसके घटना-क्रम में हम एक ऐसे धरातल से प्रवेश करते हैं, जो पचास के दशक के नवभारत के सपनों की धरती है। एक इच्छित भारत जहाँ आपकी आँखें ट्रैक्टरों की घरघराहट, बिजली के तारों और बाँध के पानी की आशा से चका-चौंध हैं।<ref name="ab"/>


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07:22, 25 मार्च 2013 का अवतरण

परती परिकथा -फणीश्वरनाथ रेणु
परती परिकथा का आवरण पृष्ठ
परती परिकथा का आवरण पृष्ठ
लेखक फणीश्वरनाथ रेणु
मूल शीर्षक 'परती परिकथा'
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन
ISBN 9788126713240
देश भारत
भाषा हिन्दी
विधा उपन्यास

परती परिकथा भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का प्रसिद्ध उपन्यास है। अपने एक और प्रसिद्ध उपन्यास "मैला आंचल" में रेणु ने जिन नई राजनीतिक ताकतों का उभार दिखाते हुए सत्तांध चरित्रों के नैतिक पतन का खाका खींचा था, वह प्रक्रिया 'परती परिकथा' उपन्यास में पूर्ण होती है। उपन्यास 'परती परिकथा' का नायक 'जित्तन' परती जमीन को खेती लायक बनाने के लिए कुत्सित राजनीति का अनुभव लेकर और साथ ही उसका शिकार होकर परानपुर लौटता है। परानपुर का राजनीतिक परिदृश्य राष्ट्रीय राजनीति का लघु संस्करण है।

लेखक के संबंध में

साहित्य की तकरीबन हर विधा में अपनी लेखनी का लोहा मनवाने वाले उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु समकालीन ग्रामीण भारत की आवाज़ को उठाने तथा सामाजिक स्थितियों को कथा के माध्यम से चित्रित करने के लिए पहचाने जाते हैं। 'पद्मश्री' से सम्मानित महान लेखक रेणु जी का जन्म बिहार के तत्कालीन पूर्णिया ज़िले के फारबिसगंज के निकट एक गाँव में[1] 4 मार्च, 1921 को हुआ था। नेपाल से उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की थी। 'बिहार विश्वविद्यालय' के 'लक्ष्मी नारायण दुबे महाविद्यालय' के अंग्रेज़ी विभाग के अवकाश प्राप्त विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ लेखक एस.के. प्रसून के अनुसार रेणु ने "मैला आंचल" के माध्यम से न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के वंचितों और पिछड़ों की पीड़ा को उकेरा। रेणु ने 1942 के 'स्वतंत्रता संग्राम' में हिस्सा लिया और 1950 के करीब उन्होंने नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के संघर्ष में भी हिस्सा लिया था। "काशी हिंदू विश्विविद्यालय" से शिक्षा ग्रहण करने वाले फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी "मारे गए गुलफ़ाम" पर "तीसरी कसम" नामक एक फ़िल्म भी बन चुकी है, जो ग्रामीण पृष्ठभूमि का अत्यंत बारीकी से किया गया भावनात्मक चित्रण है। फणीश्वरनाथ रेणु प्रेमचंद युग के बाद आधुनिक हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक सफल और प्रभावी लेखकों में से हैं।[2]

कथावस्तु

फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास 'मैला आंचल' के समान ही 'परती परिकथा' भी एक गाँव के परिवेश के परिवर्तन की कहानी है। यहाँ भी बाँध बनता है, यहाँ भी सपने आकार लेते हैं। नेहरुवादी विकासमूलक सपने। 'परती परिकथा' के अंत की ओर पाठक एक ऐसे ही जश्न से रुबरु होता है। रेणु जी के उपन्यास के गाँव और फ़िल्म 'मदर इंडिया' के गाँव में एक बड़ा फर्क है। रेणु के गाँव को उत्तर भारत में किसी दूसरे क्षेत्र में प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। यह कोशी नदी के पूरब का गाँव है, इसे कोशी के पच्छिम भी नहीं सरका सकते। 'मदर इंडिया' और 'परती परिकथा' दो रूप हैं। सन 1950 के गाँव पर नेहरुवादी आधुनिकता और औपनिवेशिकता। 'मदर इंडिया' जिसमें व्यक्ति की कल्पना को इज़ाज़त है जगह चुनने की, क्योंकि स्थानिकता के विस्तार में जगह की विशिष्टताओं को खुरचकर समतल कर दिया गया है। 'परती परिकथा' पाठक के स्थानजनित कल्पना को जगह के इर्द-गिर्द समेटने की कोशिश है। फणीश्वरनाथ रेणु के 'परती परिकथा' और "मैला आंचल" ये दोनों ही उपन्यास भारत के गाँवों के पिछड़ेपन की कहानी हैं। एक में औरत के जीवन-चरित के तौर पर, दूसरे में धरती के टुकड़े की। यह पिछड़ा टुकड़ा है पूर्णिया ज़िले का एक गाँव।[3]

फ़िल्म का निर्माण

फणीश्वरनाथ रेणु के इस प्रसिद्ध उपन्यास 'परती परिकथा' पर एक फ़िल्म का भी निर्माण हुआ, जिसका नाम था- 'मदर इंडिया'। यह एक ऐतिहासिक संयोग भी हो सकता है कि महबूब ख़ान की मशहूर सिनेमा 'मदर इंडिया' और फणीश्वरनाथ रेणु का दूसरा उपन्यास 'परती परिकथा' वर्ष 1957 में एक मास के भीतर ही प्रदर्शित हुए थे। 'मदर इंडिया' उस वर्ष सबसे पहले 25 अक्टूबर को बम्बई और कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में परदे पर आयी और 'परती परिकथा' के लिये इससे कुछ पहले 21 सितम्बर को 'राजकमल प्रकाशन' के दफ्तर दिल्ली में और 28 सितम्बर को पटना में बड़े धूम-धाम से 'प्रकाशनोत्सव' मनाया गया। देश के अख़बारों में इश्तेहार छापे गये, लेखक से मिलिये कार्यक्रम और जलपान का आयोजन भी साथ-साथ था। यह भी उल्लेखनीय है कि यह देश के स्वाधीनता की दसवीं सालगिरह भी थी। फ़िल्म 'मदर इंडिया' और 'परती परिकथा' दोनों ही भारत के ग्रामीण परिवेश के बदलाव की दास्तान हैं। 'मदर इंडिया' की कहानी फ्लैश-बैक में चलती है, जिसके घटना-क्रम में हम एक ऐसे धरातल से प्रवेश करते हैं, जो पचास के दशक के नवभारत के सपनों की धरती है। एक इच्छित भारत जहाँ आपकी आँखें ट्रैक्टरों की घरघराहट, बिजली के तारों और बाँध के पानी की आशा से चका-चौंध हैं।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अब अररिया ज़िले में
  2. ग्रामीण परिवेश से परिचित कराते थे- रेणु (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 मार्च, 2013।
  3. 3.0 3.1 रेणु साहित्य और आंचलिक आधुनिकता (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 मार्च, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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