"भैरोसिंह शेखावत": अवतरणों में अंतर

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भैरोसिंह शेखावत का जन्म 23 अक्टूबर, 1923 को [[धनतेरस]] के दिन ब्रिटिश कालीन [[सीकर]] ([[राजस्थान]]) में हुआ था। ये एक मध्यम वर्गीय राजपूत<ref>शेखावत, जो कि सूर्यवंशी कछवाहा राजपूत होते हैं</ref> परिवार से सम्बन्ध रखते थे। इनके [[पिता]] का नाम देवीसिंह और [[माता]] बन्ने कँवर थीं। शेखावत जी के पिता एक स्कूल में अध्यापक पद पर कार्यरत थे। भैरोसिंह शेखावत के तीन भाई थे, जिनके नाम थे- विशन सिंह, गोवर्धन सिंह और लक्ष्मण सिंह।<ref name="av">{{cite web |url=http://arvindsisodiakota.blogspot.in/2010/05/blog-post_16.html|title=शेखावत- एक जीवन परिचय|accessmonthday= 1 मई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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====शिक्षा तथा विवाह====
====शिक्षा तथा विवाह====
भैरोसिंह शेखावत ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही प्राप्त की। उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा गाँव से 30 किलोमीटर दूर स्थित जोबनेर से प्राप्त की। यहाँ पढ़ने आने के लिए भैरोसिंह शेखावत को प्रतिदिन पैदल जाना पड़ता था। हाईस्कूल करने के पश्चात उन्होंने [[जयपुर]] के 'महाराजा कॉलेज' में दाखिला ले लिया। उन्हें प्रवेश लिए अधिक समय नहीं हुआ था कि पिता का देहांत हो गया। अब शेखावत जी पर परिवार के आठ प्राणियों के भरण-पोषण का भार आ पड़ा। इस कारण उन्हें हल हाथ में उठाना पड़ा। बाद में पुलिस की नौकरी भी की, लेकिन उसमें मन नहीं रमा और त्यागपत्र देकर वापस खेती करने लगे। वर्ष [[1941]] में भैरोसिंह शेखावत का [[विवाह]] सूरज कँवर से कर दिया गया।  
भैरोसिंह शेखावत ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही प्राप्त की। उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा गाँव से 30 किलोमीटर दूर स्थित जोबनेर से प्राप्त की। यहाँ पढ़ने आने के लिए भैरोसिंह शेखावत को प्रतिदिन पैदल जाना पड़ता था। हाईस्कूल करने के पश्चात उन्होंने [[जयपुर]] के 'महाराजा कॉलेज' में दाखिला ले लिया। उन्हें प्रवेश लिए अधिक समय नहीं हुआ था कि पिता का देहांत हो गया। अब शेखावत जी पर परिवार के आठ प्राणियों के भरण-पोषण का भार आ पड़ा। इस कारण उन्हें हल हाथ में उठाना पड़ा। बाद में पुलिस की नौकरी भी की, लेकिन उसमें मन नहीं रमा और त्यागपत्र देकर वापस खेती करने लगे। वर्ष [[1941]] में भैरोसिंह शेखावत का [[विवाह]] सूरज कँवर से कर दिया गया। इनकी पुत्री का नाम रतन कँवर है।
==राजनीति में प्रवेश==
==राजनीति में प्रवेश==
इस समय [[राजस्थान]] के गठन की प्रक्रिया चल रही थी। भैरोसिंह शेखावत जनसंघ के संस्थापक काल से ही जुड़ गये और 'जनता पार्टी' तथा 'भाजपा' की स्थापना में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। वर्ष [[1952]] में वे दस रुपये उधार लेकर दाता रामगढ़ से चुनाव के लिए खड़े हुए। इस समय उनका चुनाव चिह्न '[[दीपक]]' था। इस चुनाव में उन्हें सफलता मिली और वे विजयी हुए। इस सफलता के बाद उनका राजनीतिक सफर लगातार चलता रहा। वे दस वार विधायक, [[1974]] से [[1977]] तक [[राज्य सभा]] के सदस्य रहे।<ref name="av"/>
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==राजनीतिक सफर==
अपने लम्बे राजनीतिक सफर में भैरोसिंह शेखावत तीन बार [[राजस्थान]] के [[मुख्यमंत्री]], तीन बार नेता प्रतिपक्ष और [[भारत]] के ग्यारहवें [[उपराष्ट्रपति]] भी रहे।
====मुख्यमंत्री====
#[[22 जून]], [[1977]] से [[15 फ़रवरी]], [[1980]] तक
#[[4 मार्च]], [[1990]] से [[15 दिसम्बर]], [[1992]] तक
#[[15 दिसम्बर]], [[1992]] से [[31 दिसम्बर]], [[1998]] तक
====नेता प्रतिपक्ष====
#[[15 जुलाई]], [[1980]] से [[10 मार्च]], [[1985]] तक
#[[28 मार्च]], [[1985]] से [[30 दिसम्बर]], [[1989]] तक
#[[8 जनवरी]], [[1999]] से [[18 अगस्त]], [[2002]] तक
====उपराष्ट्रपति====
भैरोसिंह शेखावत जी [[12 अगस्त]], 2002 को भारत के ग्यारहवें [[उपराष्ट्रपति]] बने। उनका कार्यकाल [[19 अगस्त]], 2002 से [[21 जुलाई]], [[2007]] तक रहा था। वर्ष 2007 में वे [[राष्ट्रपति]]
चुनाव में पराजित हो गए थे।
==लोकप्रियता==
शेखावत जी एक जन नेता थे। जनता के बीच उन्हें बहुत लोकप्रियता प्राप्त थी। उन्होंने [[राजस्थान]] के दस अलग-अलग स्थानों से [[विधान सभा]] चुनाव लड़े और उनमें से आठ में विजयश्री का वरण किया। वे एक से ग्यारह तक की [[राजस्थान]] विधान सभाओं में से मात्र पाँचवीं में नही थे। अर्थात दस विधान सभा चुनवों में वे जीत कर गये थे। आपात काल के समय भैरोसिंह शेखावत ने उन्नीस माह तक जेल की सज़ा भी भोगी। विधायक दल के नेता तो वे कई बार रहे। '[[भारतीय जनता पार्टी]]' में अनेकों पदों पर रहते हुए वे प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और किसान मोर्च के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने थे।<ref name="av"/>
==निधन==
राजस्थान की राजनीति में जोरदार प्रभाव रखने वाले भैरोसिंह शेखावत का निधन [[15 मई]], [[2010]], [[जयपुर]] में हुआ। उन्हें बेचैनी और साँस लेने में तकलीफ की वजह से जयपुर के 'सवाई
मानसिंह अस्पताल' में भर्ती करवाया गया था। यहाँ वे जीवन रक्षक प्रणाली पर रखे गए थे। [[शनिवार]] के दिन सुबह 11 बजकर, 10 मिनट पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। उनका पार्थिव शरीर सबसे पहले भाजपा की प्रदेश इकाई के मुख्यालय में लाया गया था। पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए स़डकों पर हज़ारों लोग इकट्ठा थे। जयपुर की स़डकों पर "भैरोसिंह अमर रहे" और "राजस्थान का एक ही सिंह, भैरोसिंह.. भैरोसिंह" की गूँज सुनाई दे रही थी।<ref>{{cite web |url=http://mediaclubofindia.ning.com/profiles/blogs/4335940:BlogPost:36635|title=शेखावत की अंतिम यात्रा में उमड़ा सैलाब|accessmonthday=1 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>


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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://navbharattimes.indiatimes.com/leaderspay-homage-to-late-shekhawat/articleshow/13153321.cms भैरोसिंह शेखावत को श्रद्धांजलि]
*[http://hindi2.samaylive.com/regional-news-in-hindi/rajasthan-news-in-hindi/149855/bhaironsingh-shekhawat-death-anniversary-rajasthan.html याद किये गए भैरोसिंह शेखावत]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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12:11, 1 मई 2013 का अवतरण

भैरोसिंह शेखावत (जन्म- 23 अक्टूबर, 1923, सीकर, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 15 मई, 2010, जयपुर, राजस्थान) भारत के ग्यारहवें उपराष्ट्रपति और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री थे। वे राजस्थान के राजनीतिक क्षितिज पर काफ़ी लम्बे समय तक छाये रहे। राजस्थान की राजनीति में उनका जबर्दस्त प्रभाव था। उनके कार्यकर्ताओं ने उन पर एक जोरदार नारा भी दिया, जो इस प्रकार था- "राजस्थान का एक ही सिंह, भेंरोसिंह....., भेंरोसिंह.....। यह नारा बहुत लम्बे समय तक गूँजता रहा था। राजस्थान में जब वर्ष 1952 में विधानसभा की स्थापना हुई थी, तब भैरोसिंह शेखावत ने अपना भाग्य आजमाया और विधायक बने। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और सफलताएँ अर्जित करते हुए विपक्ष के नेता, फिर मुख्यमंत्री और उपराष्ट्रपति के पद तक पहुँच गए। 'भारतीय जनता पार्टी' के सम्माननीय नेताओं में से वे एक थे।

जन्म तथा परिवार

भैरोसिंह शेखावत का जन्म 23 अक्टूबर, 1923 को धनतेरस के दिन ब्रिटिश कालीन सीकर (राजस्थान) में हुआ था। ये एक मध्यम वर्गीय राजपूत[1] परिवार से सम्बन्ध रखते थे। इनके पिता का नाम देवीसिंह और माता बन्ने कँवर थीं। शेखावत जी के पिता एक स्कूल में अध्यापक पद पर कार्यरत थे। भैरोसिंह शेखावत के तीन भाई थे, जिनके नाम थे- विशन सिंह, गोवर्धन सिंह और लक्ष्मण सिंह।[2]

शिक्षा तथा विवाह

भैरोसिंह शेखावत ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही प्राप्त की। उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा गाँव से 30 किलोमीटर दूर स्थित जोबनेर से प्राप्त की। यहाँ पढ़ने आने के लिए भैरोसिंह शेखावत को प्रतिदिन पैदल जाना पड़ता था। हाईस्कूल करने के पश्चात उन्होंने जयपुर के 'महाराजा कॉलेज' में दाखिला ले लिया। उन्हें प्रवेश लिए अधिक समय नहीं हुआ था कि पिता का देहांत हो गया। अब शेखावत जी पर परिवार के आठ प्राणियों के भरण-पोषण का भार आ पड़ा। इस कारण उन्हें हल हाथ में उठाना पड़ा। बाद में पुलिस की नौकरी भी की, लेकिन उसमें मन नहीं रमा और त्यागपत्र देकर वापस खेती करने लगे। वर्ष 1941 में भैरोसिंह शेखावत का विवाह सूरज कँवर से कर दिया गया। इनकी पुत्री का नाम रतन कँवर है।

राजनीति में प्रवेश

इस समय राजस्थान के गठन की प्रक्रिया चल रही थी। भैरोसिंह शेखावत जनसंघ के संस्थापक काल से ही जुड़ गये और 'जनता पार्टी' तथा 'भाजपा' की स्थापना में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। वर्ष 1952 में वे दस रुपये उधार लेकर दाता रामगढ़ से चुनाव के लिए खड़े हुए। इस समय उनका चुनाव चिह्न 'दीपक' था। इस चुनाव में उन्हें सफलता मिली और वे विजयी हुए। इस सफलता के बाद उनका राजनीतिक सफर लगातार चलता रहा। वे दस वार विधायक, 1974 से 1977 तक राज्य सभा के सदस्य रहे।[2]

राजनीतिक सफर

अपने लम्बे राजनीतिक सफर में भैरोसिंह शेखावत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री, तीन बार नेता प्रतिपक्ष और भारत के ग्यारहवें उपराष्ट्रपति भी रहे।

मुख्यमंत्री

  1. 22 जून, 1977 से 15 फ़रवरी, 1980 तक
  2. 4 मार्च, 1990 से 15 दिसम्बर, 1992 तक
  3. 15 दिसम्बर, 1992 से 31 दिसम्बर, 1998 तक

नेता प्रतिपक्ष

  1. 15 जुलाई, 1980 से 10 मार्च, 1985 तक
  2. 28 मार्च, 1985 से 30 दिसम्बर, 1989 तक
  3. 8 जनवरी, 1999 से 18 अगस्त, 2002 तक

उपराष्ट्रपति

भैरोसिंह शेखावत जी 12 अगस्त, 2002 को भारत के ग्यारहवें उपराष्ट्रपति बने। उनका कार्यकाल 19 अगस्त, 2002 से 21 जुलाई, 2007 तक रहा था। वर्ष 2007 में वे राष्ट्रपति चुनाव में पराजित हो गए थे।

लोकप्रियता

शेखावत जी एक जन नेता थे। जनता के बीच उन्हें बहुत लोकप्रियता प्राप्त थी। उन्होंने राजस्थान के दस अलग-अलग स्थानों से विधान सभा चुनाव लड़े और उनमें से आठ में विजयश्री का वरण किया। वे एक से ग्यारह तक की राजस्थान विधान सभाओं में से मात्र पाँचवीं में नही थे। अर्थात दस विधान सभा चुनवों में वे जीत कर गये थे। आपात काल के समय भैरोसिंह शेखावत ने उन्नीस माह तक जेल की सज़ा भी भोगी। विधायक दल के नेता तो वे कई बार रहे। 'भारतीय जनता पार्टी' में अनेकों पदों पर रहते हुए वे प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और किसान मोर्च के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने थे।[2]

निधन

राजस्थान की राजनीति में जोरदार प्रभाव रखने वाले भैरोसिंह शेखावत का निधन 15 मई, 2010, जयपुर में हुआ। उन्हें बेचैनी और साँस लेने में तकलीफ की वजह से जयपुर के 'सवाई मानसिंह अस्पताल' में भर्ती करवाया गया था। यहाँ वे जीवन रक्षक प्रणाली पर रखे गए थे। शनिवार के दिन सुबह 11 बजकर, 10 मिनट पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। उनका पार्थिव शरीर सबसे पहले भाजपा की प्रदेश इकाई के मुख्यालय में लाया गया था। पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए स़डकों पर हज़ारों लोग इकट्ठा थे। जयपुर की स़डकों पर "भैरोसिंह अमर रहे" और "राजस्थान का एक ही सिंह, भैरोसिंह.. भैरोसिंह" की गूँज सुनाई दे रही थी।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शेखावत, जो कि सूर्यवंशी कछवाहा राजपूत होते हैं
  2. 2.0 2.1 2.2 शेखावत- एक जीवन परिचय (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 1 मई, 2013।
  3. शेखावत की अंतिम यात्रा में उमड़ा सैलाब (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 1 मई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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