"साल वृक्ष": अवतरणों में अंतर
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साल वृक्ष [[भारत]] के कई स्थानों पर विशेष रूप से पाया जाता है। [[हिमालय]] की तलहटी से लेकर तीन से चार हज़ार फुट की ऊँचाई तक और [[उत्तर प्रदेश]], [[बंगाल]], [[बिहार]] तथा [[असम]] के जंगलों में यह प्रमुखता से उगता है। इस वृक्ष का विशेष और मुख्य लक्षण यह है कि ये अपने आपको विभिन्न प्राकृतिक वासकारकों के अनुकूल बना लेता है, जैसे- 9 सें.मी. से लेकर 508 सें.मी. वार्षिक [[वर्षा]] वाले स्थानों से लेकर अत्यंत उष्ण तथा ठंढे स्थानों तक में यह आसानी से उगता है। भारत, [[बर्मा]] तथा [[श्रीलंका]] में इसकी कुल मिलाकर नौ जातियाँ हैं, जिनमें 'शोरिया रोबस्टा' प्रमुख है। | साल वृक्ष [[भारत]] के कई स्थानों पर विशेष रूप से पाया जाता है। [[हिमालय]] की तलहटी से लेकर तीन से चार हज़ार फुट की ऊँचाई तक और [[उत्तर प्रदेश]], [[बंगाल]], [[बिहार]] तथा [[असम]] के जंगलों में यह प्रमुखता से उगता है। इस वृक्ष का विशेष और मुख्य लक्षण यह है कि ये अपने आपको विभिन्न प्राकृतिक वासकारकों के अनुकूल बना लेता है, जैसे- 9 सें.मी. से लेकर 508 सें.मी. वार्षिक [[वर्षा]] वाले स्थानों से लेकर अत्यंत उष्ण तथा ठंढे स्थानों तक में यह आसानी से उगता है। भारत, [[बर्मा]] तथा [[श्रीलंका]] में इसकी कुल मिलाकर नौ जातियाँ हैं, जिनमें 'शोरिया रोबस्टा' प्रमुख है। | ||
==जल का स्रोत== | ==जल का स्रोत== | ||
आदिवासियों के लिए साल वृक्ष किसी '[[कल्प वृक्ष]]' से कम नहीं है। भरी गर्मी में घने जंगलों में जब कंठ सूखने लगे और पीने का पानी न हो तो साल वृक्ष की टहनी से बूँद-बूँद टपकने वाले रस को दोने में एकत्र कर ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। यह परंपरागत तरीका वर्षों से आदिवासी अपनाए हुए हैं। जंगलों में कोसा, सालबीज, धूप, तेंदूपत्ता सहित विविध वनोपज संग्रह के लिए पहुँचने वाले ग्रामीण आमतौर पर पानी साथ लेकर नहीं जाते। ये लोग जंगल में पहुँचते ही साल वृक्ष के पत्ते का दोना तैयार करते हैं, तत्पश्चात पत्तों से लदी साल की टहनी काटकर उल्टा लटका देते हैं। कटी हुई टहनी का रस बूँद-बूँद टपकता है, जिससे दोना भर जाता हैं और ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। साल वृक्ष से प्राप्त [[जल]] (रस) हल्का कसैला होता है, परंतु नुकसानदेह नहीं होता। इसीलिए साल वृक्ष के रस का उपयोग सदियों से किया जा रहा है। | आदिवासियों के लिए साल वृक्ष किसी '[[कल्प वृक्ष]]' से कम नहीं है। भरी गर्मी में घने जंगलों में जब कंठ सूखने लगे और पीने का पानी न हो तो साल वृक्ष की टहनी से बूँद-बूँद टपकने वाले रस को दोने में एकत्र कर ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। यह परंपरागत तरीका वर्षों से आदिवासी अपनाए हुए हैं। जंगलों में कोसा, सालबीज, धूप, तेंदूपत्ता सहित विविध वनोपज संग्रह के लिए पहुँचने वाले ग्रामीण आमतौर पर पानी साथ लेकर नहीं जाते। ये लोग जंगल में पहुँचते ही साल वृक्ष के पत्ते का दोना तैयार करते हैं, तत्पश्चात पत्तों से लदी साल की टहनी काटकर उल्टा लटका देते हैं। कटी हुई टहनी का रस बूँद-बूँद टपकता है, जिससे दोना भर जाता हैं और ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। साल वृक्ष से प्राप्त [[जल]] (रस) हल्का कसैला होता है, परंतु नुकसानदेह नहीं होता। इसीलिए साल वृक्ष के रस का उपयोग सदियों से किया जा रहा है।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/news/news/mpchg/0903/23/1090323057_1.htm|title=साल के वृक्ष से बुझाते हैं प्यास|accessmonthday=09 मई|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
==लाभदायक वृक्ष== | ==लाभदायक वृक्ष== | ||
साल वृक्ष मानव के लिए बहुत ही लाभदायक है, जैसे- | साल वृक्ष मानव के लिए बहुत ही लाभदायक है, जैसे- |
07:38, 9 मई 2013 का अवतरण
साल वृक्ष एक अर्ध-पर्णपाती और द्विबीजपत्री बहुवर्षीय वृक्ष है। इस वृक्ष की उपयोगिता मुख्यत: इसकी लकड़ियाँ हैं, जो अपनी मजबूती तथा प्रत्यास्थता के लिए प्रख्यात हैं। तरुण वृक्षों की छाल से प्रास लाल रंग और काले रंग का पदार्थ रंजक के काम आता है। साल वृक्ष के बीज, जो वर्षा के आरंभ काल में पकते हैं, विशेषकर अकाल के समय अनेक जगहों पर भोजन के रूप में काम आते हैं। आदिवासियों के लिए यह वृक्ष किसी 'कल्प वृक्ष' से कम नहीं है। इसकी टहनी से निकलने वाला रस प्यास बुझाने के काम भी आता है।
मुख्य क्षेत्र
साल वृक्ष भारत के कई स्थानों पर विशेष रूप से पाया जाता है। हिमालय की तलहटी से लेकर तीन से चार हज़ार फुट की ऊँचाई तक और उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार तथा असम के जंगलों में यह प्रमुखता से उगता है। इस वृक्ष का विशेष और मुख्य लक्षण यह है कि ये अपने आपको विभिन्न प्राकृतिक वासकारकों के अनुकूल बना लेता है, जैसे- 9 सें.मी. से लेकर 508 सें.मी. वार्षिक वर्षा वाले स्थानों से लेकर अत्यंत उष्ण तथा ठंढे स्थानों तक में यह आसानी से उगता है। भारत, बर्मा तथा श्रीलंका में इसकी कुल मिलाकर नौ जातियाँ हैं, जिनमें 'शोरिया रोबस्टा' प्रमुख है।
जल का स्रोत
आदिवासियों के लिए साल वृक्ष किसी 'कल्प वृक्ष' से कम नहीं है। भरी गर्मी में घने जंगलों में जब कंठ सूखने लगे और पीने का पानी न हो तो साल वृक्ष की टहनी से बूँद-बूँद टपकने वाले रस को दोने में एकत्र कर ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। यह परंपरागत तरीका वर्षों से आदिवासी अपनाए हुए हैं। जंगलों में कोसा, सालबीज, धूप, तेंदूपत्ता सहित विविध वनोपज संग्रह के लिए पहुँचने वाले ग्रामीण आमतौर पर पानी साथ लेकर नहीं जाते। ये लोग जंगल में पहुँचते ही साल वृक्ष के पत्ते का दोना तैयार करते हैं, तत्पश्चात पत्तों से लदी साल की टहनी काटकर उल्टा लटका देते हैं। कटी हुई टहनी का रस बूँद-बूँद टपकता है, जिससे दोना भर जाता हैं और ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। साल वृक्ष से प्राप्त जल (रस) हल्का कसैला होता है, परंतु नुकसानदेह नहीं होता। इसीलिए साल वृक्ष के रस का उपयोग सदियों से किया जा रहा है।[1]
लाभदायक वृक्ष
साल वृक्ष मानव के लिए बहुत ही लाभदायक है, जैसे-
- इससे प्राप्त पत्ता, पल, लकड़ी, धूप, दातून यहाँ तक पानी भी संग्रहित किया जाता है।
- साल वृक्षों की जड़ों के आस-पास उपजने वाला मशरूम एक प्रिय सब्जी है, जो 300 रुपए किलोग्राम तक बिकती है।
- साल वृक्ष के पत्तों से दोने में उतरा साल रस एक प्रकार से पूर्ण भोजन है, जिसे शर्करा भोजन कहा जा सकता है। इसमें प्रोटीन को छोड़ कर शेष सभी तत्व होते हैं। यह रस जमीन से वृक्ष द्वारा तत्व युक्त जल है। इसके सेवन से कोई हानि नहीं होती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ साल के वृक्ष से बुझाते हैं प्यास (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 मई, 2013।
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