|
|
पंक्ति 86: |
पंक्ति 86: |
| -[[मार्कण्डेय]] | | -[[मार्कण्डेय]] |
| ||'किन्दम' ऋषि का उल्लेख [[महाभारत]] में हुआ है। एक बार [[हस्तिनापुर]] के राजा [[पाण्डु]] वन में घूम रहे थे। तभी उन्हें हिरनों का एक जोड़ा दिखाई दिया। पाण्डु ने निशाना साधकर उन पर पाँच [[बाण अस्त्र|बाण]] मारे, जिससे हिरन घायल हो गए। वास्तव में वह हिरन [[किन्दम]] नामक एक [[ऋषि]] थे, जो अपनी पत्नी के साथ प्रणय विहार कर रहे थे। तब किन्दम ऋषि ने अपने वास्तविक स्वरूप में आकर पाण्डु को शाप दिया कि तुमने अकारण मुझ पर और मेरी तपस्विनी पत्नी पर बाण चलाए हैं, जब हम विहार कर रहे थे। अब तुम जब कभी भी अपनी पत्नी के साथ सहवास करोगे तो उसी समय तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी तथा वह पत्नी तुम्हारे साथ [[सती प्रथा|सती]] हो जाएगी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[किन्दम]] | | ||'किन्दम' ऋषि का उल्लेख [[महाभारत]] में हुआ है। एक बार [[हस्तिनापुर]] के राजा [[पाण्डु]] वन में घूम रहे थे। तभी उन्हें हिरनों का एक जोड़ा दिखाई दिया। पाण्डु ने निशाना साधकर उन पर पाँच [[बाण अस्त्र|बाण]] मारे, जिससे हिरन घायल हो गए। वास्तव में वह हिरन [[किन्दम]] नामक एक [[ऋषि]] थे, जो अपनी पत्नी के साथ प्रणय विहार कर रहे थे। तब किन्दम ऋषि ने अपने वास्तविक स्वरूप में आकर पाण्डु को शाप दिया कि तुमने अकारण मुझ पर और मेरी तपस्विनी पत्नी पर बाण चलाए हैं, जब हम विहार कर रहे थे। अब तुम जब कभी भी अपनी पत्नी के साथ सहवास करोगे तो उसी समय तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी तथा वह पत्नी तुम्हारे साथ [[सती प्रथा|सती]] हो जाएगी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[किन्दम]] |
|
| |
| {[[द्रोणाचार्य]] को दिव्यास्त्र किसने दिये थे?
| |
| |type="()"}
| |
| -शरद्वान
| |
| +[[परशुराम]]
| |
| -[[शिव]]
| |
| -[[इन्द्र|इन्द्र देव]]
| |
| ||[[चित्र:Parashurama.jpg|right|100px|परशुराम]]'परशुराम' राजा प्रसेनजित की पुत्री [[रेणुका]] और भृगुवंशीय [[जमदग्नि]] के पुत्र, [[विष्णु]] के [[अवतार]] और [[शिव]] के परम [[भक्त]] थे। इन्हें शिव से विशेष '[[परशु अस्त्र|परशु]]' प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो 'राम' था, किन्तु शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये '[[परशुराम]]' कहलाते थे। ये विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार थे, जो [[वामन अवतार|वामन]] एवं [[रामचन्द्र]] के मध्य में गिने जाता है। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये 'जामदग्न्य' भी कहे जाते हैं। इनका जन्म [[अक्षय तृतीया]], ([[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]], [[तृतीया]]) को हुआ था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। परम्परा के अनुसार इन्होंने [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] का अनेक बार विनाश किया। क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए ही इनका जन्म हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[परशुराम]]
| |
|
| |
| {किस [[अप्सरा]] ने [[अर्जुन]] को शाप दिया था कि उसे एक [[वर्ष]] तक नंपुसक के रूप में रहना पड़ेगा?
| |
| |type="()"}
| |
| +[[उर्वशी]]
| |
| -[[रम्भा]]
| |
| -[[मेनका]]
| |
| -तिलोत्तमा
| |
| ||'[[श्रीमद्भागवत]]' के अनुसार [[उर्वशी]] स्वर्ग की सर्वसुन्दर [[अप्सरा]] थी। एक दिन जब चित्रसेन [[अर्जुन]] को [[संगीत]] और [[नृत्य]] की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई। अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा- 'हे अर्जुन! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें।' [[उर्वशी]] के वचन सुनकर अर्जुन बोले- 'हे देवि! हमारे पूर्वज ने आपसे [[विवाह]] करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं। अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा- 'तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक [[वर्ष]] तक पुंसत्वहीन रहोगे।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[उर्वशी]], [[अर्जुन]]
| |
|
| |
| {[[महाभारत|महाभारत महाकाव्य]] कितने [[वर्ष|वर्षों]] में पूरा हुआ था?
| |
| |type="()"}
| |
| -दो वर्ष
| |
| -एक वर्ष
| |
| +तीन वर्ष
| |
| -चार वर्ष
| |
| ||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|कृष्ण तथा अर्जुन]]'महाभारत' [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का एक प्रमुख काव्य [[ग्रंथ]] है, जो [[हिन्दू धर्म]] के उन धर्म-ग्रन्थों का समूह है, जिनकी मान्यता श्रुति से नीची श्रेणी की हैं और जो मानवों द्वारा उत्पन्न थे। कभी-कभी सिर्फ़ 'भारत' कहा जाने वाला यह काव्य-ग्रंथ [[भारत]] का अनुपम, धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ है। [[महर्षि व्यास]] की प्रार्थना पर भगवान [[गणेश]] [[महाभारत]] [[महाकाव्य]] को लिखने के लिए तैयार हुए थे। गणेश जी ने यह शर्त रखी थी कि एक बार लिखना प्रारम्भ कर देने के बाद वे रुकेंगे नहीं। अतः व्यास ने भी अपनी चतुरता से एक शर्त रखी कि कोई भी [[श्लोक]] लिखने से पहले गणेश को उसका अर्थ समझना होगा। गणेशजी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जब गणेश श्लोक के अर्थ पर विचार कर रहे होते, उतने समय में ही व्यास कुछ और नये श्लोक रच देते। इस प्रकार सम्पूर्ण [[महाभारत]] तीन वर्षों के अन्तराल में लिखी गयी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[महाभारत]]
| |
|
| |
| {[[भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] के नाग कन्या अहिलवती से उत्पन्न पुत्र कौन थे?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[संकर्षण]]
| |
| +[[बर्बरीक]]
| |
| -[[युयुत्सु]]
| |
| -[[भूरिश्रवा]]
| |
| ||'बर्बरीक' महान [[पाण्डव]] [[भीम (पांडव)|भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] और नाग कन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री कामकंटकटा के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। [[बर्बरीक]] के जन्म से ही बर्बराकार घुंघराले केश थे, अत: इनका नाम बर्बरीक रखा गया था। वह [[दुर्गा]] के उपासक थे। [[श्रीकृष्ण]] की सलाह पर बर्बरीक ने गुप्त क्षेत्र तीर्थस्थल में देवी दुर्गा की आराधना की। उन्होंने आराधना में विघ्न डालने वाले पलासी आदि दैत्यों का संहार किया था। बर्बरीक वीरता में किसी से भी कम नहीं थे। एक बार वह पितामह [[भीम]] से भी भिड़ गये थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[बर्बरीक]]
| |
|
| |
| {[[पाण्डव]] [[अर्जुन]] का देहांत किस स्थान पर हुआ?
| |
| |type="()"}
| |
| +[[हिमालय पर्वत]]
| |
| -[[विन्ध्याचल पर्वत]]
| |
| -[[मन्दराचल पर्वत]]
| |
| -[[द्रोणगिरि|द्रोण पर्वत]]
| |
| ||[[चित्र:Gita-Krishna-1.jpg|right|80px|श्रीकृष्ण तथा अर्जुन]]'अर्जुन' [[हस्तिनापुर]] के महाराज [[पाण्डु]] एवं रानी [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे, जो तत्कालीन समय के सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज माने जाते थे। वे [[द्रोणाचार्य]] के प्रिय शिष्य थे। जीवन में अनेक अवसरों पर उन्होंने अपने साहस का परिचय दिया था। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में जीतने वाले भी [[अर्जुन]] ही थे। [[महाभारत]] युद्ध में [[कृष्ण]] अर्जुन के सारथी थे। युद्ध के आरंभ में अपने ही बंधु-बांधवों को प्रतिपक्ष में देखकर अर्जुन मोहाच्छन्न हो गए। तब श्रीकृष्ण ने '[[गीता]]' का संदेश देकर उन्हें कर्त्तव्य-पथ पर लगाया। महाभारत में [[पांडव|पांडवों]] की विजय का बहुत कुछ श्रेय अर्जुन को है। महाभारत युद्ध के बाद वे अपने भाइयों के साथ [[हिमालय]] चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[अर्जुन]]
| |
| </quiz> | | </quiz> |
| |} | | |} |
पंक्ति 131: |
पंक्ति 91: |
| {{महाभारत सामान्य ज्ञान}} | | {{महाभारत सामान्य ज्ञान}} |
| {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | | {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} |
| {{प्रचार}}
| |
| [[Category:सामान्य ज्ञान]] | | [[Category:सामान्य ज्ञान]] |
| [[Category:महाभारत]] | | [[Category:महाभारत]] |