"त्रिभंगी टीका": अवतरणों में अंतर
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*इनकी संस्कृत भाषा बहुत स्खलित प्रतीत होती है। उन्होंने अपनी इस त्रिभंगी चतुष्टय पर लिखी गई टीका की भाषा को 'लाटीय भाषा' कहा है। | *इनकी संस्कृत भाषा बहुत स्खलित प्रतीत होती है। उन्होंने अपनी इस त्रिभंगी चतुष्टय पर लिखी गई टीका की भाषा को 'लाटीय भाषा' कहा है। | ||
*टीका में सोमदेव ने कर्मों के आस्रव, बंध, उदय और सत्वविषय का कथन किया है, जो सामान्य जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी है। | *टीका में सोमदेव ने कर्मों के आस्रव, बंध, उदय और सत्वविषय का कथन किया है, जो सामान्य जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी है। | ||
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04:57, 19 जून 2010 का अवतरण
- आस्रवत्रिभंगी,
- बंधत्रिभंगी,
- उदयत्रिभंगी और
- सत्त्वत्रिभंगी-इन 4 त्रिभंगियों को संकलित कर टीकाकार ने इन पर संस्कृत में टीका की है।
- आस्रवत्रिभंगी 63 गाथा प्रमाण है।
- इसके रचयिता श्रुतमुनि हैं।
- बंधत्रिभंगी 44 गाथा प्रमाण है तथा उसके कर्ता नेमिचन्द शिष्य माधवचन्द्र हैं।
- उदयत्रिभंगी 73 गाथा प्रमाण है और उसके निर्माता नेमिचन्द्र हैं।
- सत्त्व त्रिभंगी 35 गाथा प्रमाण है और उसके कर्ता भी नेमिचन्द्र हैं।
- इन चारों पर सोमदेव ने संस्कृत में व्याख्याएँ लिखी हैं।
- ये सोमदेव, यशस्तित्वक चम्पू काव्य के कर्ता प्रसिद्ध सोमदेव से भिन्न और 16वीं, 17वीं शताब्दी के एक भट्टारक विद्वान हैं।
- इनकी संस्कृत भाषा बहुत स्खलित प्रतीत होती है। उन्होंने अपनी इस त्रिभंगी चतुष्टय पर लिखी गई टीका की भाषा को 'लाटीय भाषा' कहा है।
- टीका में सोमदेव ने कर्मों के आस्रव, बंध, उदय और सत्वविषय का कथन किया है, जो सामान्य जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी है।
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