"सांकरी गढ़": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{main|उत्तरकाशी पर्यटन}}} | {{main|उत्तरकाशी पर्यटन}}} | ||
*सांकरी गढ़ [[उत्तरकाशी]] जनपद के मोरी विकासखण्ड के अंतर्गत मोरी से 20 किमी. की दूरी पर हरकीदून के रास्ते में 4000 फीट की ऊंचाई पर है। जिसके दो तरफ घुय्यां घाटी की अभेद्य चट्टान है, दो तरफ से खुला है। गढ़ में मकानों के कुछ खंडहर अभी भी मौजूद हैं। राणा वंश का गढ़ था। गढ़ के राणा जाति के लोगों ने अब गांव में मकान बना दिए हैं। ये राणा वोगल, फाफर, चीणा, मारछा, जौ की खेती व भेड़ पालन का काम करते हैं। सांकरी गढ़ के एक तरफ घुय्यां घाटी से पंचगाई पट्टी के सिर्गा, जखोल, लिवाड़ी, फिताड़ी, रेकचा,पांवधरा, राला, कासला, सौणी, सतूड़ी आदि गांव हैं। गढ़ के एक तरफ सौड़ व दूसरी तरफ कोट गांव हैं। इस राणा वंश के सांकरी गढ़ का 52 गढ़ों में स्थान है। जिसका इतिहास की कुछ पुस्तकों में है। इस गढ़ से 25 किमी. सौंदर्यस्थली हरकीदून है। गढ़ के सामने ऐतिहासिक कलाप की गुफा है। कोट गांव के पास लव-कुश कुण्ड है। इस गढ़ के वंशज चंरवा राणा की असहाय सामाजिक उपेक्षा की स्थिति पर इस लेखक ने एक कहानी चंरवा लिखी थी, जो सन् 1988 के आस-पास कई पत्रिकाओं में छपी थी। इस वंश का नागद राणा कुछ वर्ष पूर्व तक उत्तरकाशी जनपद के पशुपालन विभाग में सेवारत था। इस गढ़ के क्षेत्र में महाभारतकालीन योद्धा के मंदिर हैं। पद्मश्री डा. डीडी शर्मा ने सन् 1972 में यहां का भ्रमण कर धर्मयुग पत्रिका में यहां के सामाजिक जीवन पर लिखा था। | *सांकरी गढ़ [[उत्तरकाशी]] जनपद के मोरी विकासखण्ड के अंतर्गत मोरी से 20 किमी. की दूरी पर हरकीदून के रास्ते में 4000 फीट की ऊंचाई पर है। जिसके दो तरफ घुय्यां घाटी की अभेद्य चट्टान है, दो तरफ से खुला है। गढ़ में मकानों के कुछ खंडहर अभी भी मौजूद हैं। राणा वंश का गढ़ था। गढ़ के राणा जाति के लोगों ने अब गांव में मकान बना दिए हैं। ये राणा वोगल, फाफर, चीणा, मारछा, जौ की खेती व भेड़ पालन का काम करते हैं। सांकरी गढ़ के एक तरफ घुय्यां घाटी से पंचगाई पट्टी के सिर्गा, जखोल, लिवाड़ी, फिताड़ी, रेकचा,पांवधरा, राला, कासला, सौणी, सतूड़ी आदि गांव हैं। गढ़ के एक तरफ सौड़ व दूसरी तरफ कोट गांव हैं। इस राणा वंश के सांकरी गढ़ का 52 गढ़ों में स्थान है। जिसका इतिहास की कुछ पुस्तकों में है। इस गढ़ से 25 किमी. सौंदर्यस्थली हरकीदून है। गढ़ के सामने ऐतिहासिक कलाप की गुफा है। कोट गांव के पास लव-कुश कुण्ड है। इस गढ़ के वंशज चंरवा राणा की असहाय सामाजिक उपेक्षा की स्थिति पर इस लेखक ने एक कहानी चंरवा लिखी थी, जो सन् 1988 के आस-पास कई पत्रिकाओं में छपी थी। इस वंश का नागद राणा कुछ वर्ष पूर्व तक [[उत्तरकाशी]] जनपद के पशुपालन विभाग में सेवारत था। इस गढ़ के क्षेत्र में महाभारतकालीन योद्धा के मंदिर हैं। पद्मश्री डा. डीडी शर्मा ने सन् 1972 में यहां का भ्रमण कर [[धर्मयुग]] पत्रिका में यहां के सामाजिक जीवन पर लिखा था। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
14:48, 17 सितम्बर 2013 का अवतरण
मुख्य लेख : उत्तरकाशी पर्यटन
}
- सांकरी गढ़ उत्तरकाशी जनपद के मोरी विकासखण्ड के अंतर्गत मोरी से 20 किमी. की दूरी पर हरकीदून के रास्ते में 4000 फीट की ऊंचाई पर है। जिसके दो तरफ घुय्यां घाटी की अभेद्य चट्टान है, दो तरफ से खुला है। गढ़ में मकानों के कुछ खंडहर अभी भी मौजूद हैं। राणा वंश का गढ़ था। गढ़ के राणा जाति के लोगों ने अब गांव में मकान बना दिए हैं। ये राणा वोगल, फाफर, चीणा, मारछा, जौ की खेती व भेड़ पालन का काम करते हैं। सांकरी गढ़ के एक तरफ घुय्यां घाटी से पंचगाई पट्टी के सिर्गा, जखोल, लिवाड़ी, फिताड़ी, रेकचा,पांवधरा, राला, कासला, सौणी, सतूड़ी आदि गांव हैं। गढ़ के एक तरफ सौड़ व दूसरी तरफ कोट गांव हैं। इस राणा वंश के सांकरी गढ़ का 52 गढ़ों में स्थान है। जिसका इतिहास की कुछ पुस्तकों में है। इस गढ़ से 25 किमी. सौंदर्यस्थली हरकीदून है। गढ़ के सामने ऐतिहासिक कलाप की गुफा है। कोट गांव के पास लव-कुश कुण्ड है। इस गढ़ के वंशज चंरवा राणा की असहाय सामाजिक उपेक्षा की स्थिति पर इस लेखक ने एक कहानी चंरवा लिखी थी, जो सन् 1988 के आस-पास कई पत्रिकाओं में छपी थी। इस वंश का नागद राणा कुछ वर्ष पूर्व तक उत्तरकाशी जनपद के पशुपालन विभाग में सेवारत था। इस गढ़ के क्षेत्र में महाभारतकालीन योद्धा के मंदिर हैं। पद्मश्री डा. डीडी शर्मा ने सन् 1972 में यहां का भ्रमण कर धर्मयुग पत्रिका में यहां के सामाजिक जीवन पर लिखा था।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख