"निर्वाक हिमालय -दिनेश सिंह": अवतरणों में अंतर
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गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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द्रवित हो रहा पल पल मन | द्रवित हो रहा पल पल मन | ||
देख रहा निर्वाक शिखर से | देख रहा निर्वाक शिखर से | ||
भव्य | भव्य राष्ट्र का जाति विभाजन | ||
एक विषादित शिला बन गया | एक विषादित शिला बन गया | ||
चपल कूलों के मनुजोचित कारण | चपल कूलों के मनुजोचित कारण | ||
दुखित | दुखित हुआ वच्छल मन अंतस्तल | ||
खोया उर आत्म चेतना अंतर्नभ | खोया उर आत्म चेतना अंतर्नभ | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
भूल भूलकर प्रेम-युक्ति | भूल भूलकर प्रेम-युक्ति | ||
कहीं जीर्ण जाति में डूब डूब | |||
कहीं धर्म कौम में घूम घूम | |||
भू पर विचर रहे कुछ हिंसक मानव | भू पर विचर रहे कुछ हिंसक मानव | ||
बहु रूढि जाति धर्म के वशीभूत | बहु रूढि जाति धर्म के वशीभूत |
09:14, 20 जुलाई 2014 का अवतरण
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खड़ा हिमालय शीश झुकाये |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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