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'''फ़्रीडरिक मैक्स मूलर''' ([[अंग्रेज़ी]]: Friedrich Max Muller; जन्म- [[6 दिसम्बर]], 1823, [[जर्मनी]]; मृत्यु- [[28 अक्टूबर]], [[1900]], [[इंग्लैण्ड]]) प्रसिद्ध जर्मन संस्कृतवेत्ता, प्राच्य विद्या विशारद तथा भाषाशास्त्री था। वह ब्रिटिश '[[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]]' में कर्मचारी था। जन्म से जर्मन होने के बावजूद भी मैक्स मूलर ने अपने जीवन का अधिकांश समय इंग्लैण्ड में व्यतीत किया था। उसका संबंध अनेक यूरोपीय तथा एशियाई संस्थाओं से था। मैक्स मूलर ने 'भारतीय दर्शन' पर कई रचनाएँ की थीं। अंतिम दिनों वह [[बौद्ध दर्शन]] में अधिक रूचि रखने लगा था तथा [[जापान]] में मिले अनेक बौद्ध दार्शनिक ग्रंथों की गवेषणा में दत्तचित्त था। | {{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व | ||
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|चित्र का नाम=युवावस्था में मैक्स मूलर | |||
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'''फ़्रीडरिक मैक्स मूलर''' ([[अंग्रेज़ी]]: Friedrich Max Muller; जन्म- [[6 दिसम्बर]], 1823, [[जर्मनी]]; मृत्यु- [[28 अक्टूबर]], [[1900]], [[इंग्लैण्ड]]) प्रसिद्ध जर्मन संस्कृतवेत्ता, प्राच्य विद्या विशारद, लेखक तथा भाषाशास्त्री था। वह ब्रिटिश '[[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]]' में कर्मचारी था। जन्म से जर्मन होने के बावजूद भी मैक्स मूलर ने अपने जीवन का अधिकांश समय इंग्लैण्ड में व्यतीत किया था। उसका संबंध अनेक यूरोपीय तथा एशियाई संस्थाओं से था। मैक्स मूलर ने 'भारतीय दर्शन' पर कई रचनाएँ की थीं। अंतिम दिनों वह [[बौद्ध दर्शन]] में अधिक रूचि रखने लगा था तथा [[जापान]] में मिले अनेक बौद्ध दार्शनिक ग्रंथों की गवेषणा में दत्तचित्त था। | |||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
जर्मन संस्कृतवेत्ता एवं भाषाशास्त्री मैक्स मूलर का जन्म [[जर्मनी]] के 'देसो'<ref>Dessau</ref> नामक नगर में 6 दिसम्बर, 1823 ई. को हुआ था। उसके [[पिता]] प्रसिद्ध जर्मन [[कवि]] विल्हेम मूलर (1794-1827) थे, जिन्हें हजर्मन मुक्तक प्रगीतों की विशिष्ट शैली 'फिल-हेलेनिक' प्रगीतों के कारण काफ़ी ख्याति मिली थी। जब मैक्स मूलर मात्र चार वर्ष का ही था, तभी उसके पिता का देहान्त हो गया। उसने 1841 ई. में 'लाइपसिंग विश्वविद्यालय' से मैट्रिक पास किया था। | जर्मन संस्कृतवेत्ता एवं भाषाशास्त्री मैक्स मूलर का जन्म [[जर्मनी]] के 'देसो'<ref>Dessau</ref> नामक नगर में 6 दिसम्बर, 1823 ई. को हुआ था। उसके [[पिता]] प्रसिद्ध जर्मन [[कवि]] विल्हेम मूलर (1794-1827) थे, जिन्हें हजर्मन मुक्तक प्रगीतों की विशिष्ट शैली 'फिल-हेलेनिक' प्रगीतों के कारण काफ़ी ख्याति मिली थी। जब मैक्स मूलर मात्र चार वर्ष का ही था, तभी उसके पिता का देहान्त हो गया। उसने 1841 ई. में 'लाइपसिंग विश्वविद्यालय' से मैट्रिक पास किया था। | ||
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मैक्स मूलर ने सन [[1861]] तथा [[1863]] में 'रॉयल इंस्टीट्यूशन' के समक्ष भाषा विज्ञान संबंधी कई व्याख्यान दिए, जो 'लेक्चर्स ऑन सायंस ऑव लैंग्वेजज' के नाम से प्रकाशित हुए। यद्यपि इन व्याख्यानों के निष्कर्ष तथा तर्क पद्धति का ह्टिनी जैसे भाषाशास्त्रियों ने काफ़ी विरोध किया, तथापि मैक्स मूलर के इन व्याख्यानों का भाषा वैज्ञानिक प्रगति के इतिहास में अत्यधिक महत्व है। मैक्स मूलर ने भाषा विज्ञान को 'भौतिक विज्ञान' की कोटि में माना है, जबकि यह वस्तुत: ऐतिहासिक या सामाजिक विज्ञान की एक विधा है। मैक्स मूलर ने भाषाशास्त्री के लिये [[संस्कृत]] के अध्ययन की आवश्यकता को इतना महत्व दिया कि उनके शब्दों में संस्कृत-ज्ञान-शून्य तुलनात्मक भाषाशास्त्री उस ज्योतिषी के समान है, जो गणित नहीं जानता। | मैक्स मूलर ने सन [[1861]] तथा [[1863]] में 'रॉयल इंस्टीट्यूशन' के समक्ष भाषा विज्ञान संबंधी कई व्याख्यान दिए, जो 'लेक्चर्स ऑन सायंस ऑव लैंग्वेजज' के नाम से प्रकाशित हुए। यद्यपि इन व्याख्यानों के निष्कर्ष तथा तर्क पद्धति का ह्टिनी जैसे भाषाशास्त्रियों ने काफ़ी विरोध किया, तथापि मैक्स मूलर के इन व्याख्यानों का भाषा वैज्ञानिक प्रगति के इतिहास में अत्यधिक महत्व है। मैक्स मूलर ने भाषा विज्ञान को 'भौतिक विज्ञान' की कोटि में माना है, जबकि यह वस्तुत: ऐतिहासिक या सामाजिक विज्ञान की एक विधा है। मैक्स मूलर ने भाषाशास्त्री के लिये [[संस्कृत]] के अध्ययन की आवश्यकता को इतना महत्व दिया कि उनके शब्दों में संस्कृत-ज्ञान-शून्य तुलनात्मक भाषाशास्त्री उस ज्योतिषी के समान है, जो गणित नहीं जानता। | ||
====यूरोपीय भाषाओं का अध्ययन==== | ====यूरोपीय भाषाओं का अध्ययन==== | ||
मैक्स मूलर ने यूरोपीय भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया। इस कार्य में प्रिचार्ड, विनिंग, बाप तथा एडोल्फ पिक्टेट की गवेषणाओं से उसे पर्याप्त सहायता मिली। मैक्स मूलर का एक अन्य प्रिय विषय धर्मविज्ञान पुराण-कथा-विज्ञान है। इस अध्ययन ने उसे तुलनात्मक धर्म की ओर भी प्रेरित किया। सन [[1873]] में उसने 'इंट्रोडक्शन टू | मैक्स मूलर ने यूरोपीय भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया। इस कार्य में प्रिचार्ड, विनिंग, बाप तथा एडोल्फ पिक्टेट की गवेषणाओं से उसे पर्याप्त सहायता मिली। मैक्स मूलर का एक अन्य प्रिय विषय धर्मविज्ञान पुराण-कथा-विज्ञान है। इस अध्ययन ने उसे तुलनात्मक धर्म की ओर भी प्रेरित किया। सन [[1873]] में उसने 'इंट्रोडक्शन टू द जिनियस ऑव रेलिजन्स' प्रकाशित की। इसी [[वर्ष]] इस विषय से संबंधित व्याख्यान देने के लिये वह वैस्ट मिनिंस्टर एबे में आमंत्रित किया गया। बाद में [[1888]] से [[1892]] तक इस विषय पर उसकी अन्य पुस्तक चार भागों में प्रकाशित हुई, जो गिफर्ड लेक्चर्स के रूप में दिए गए भाषण हैं। | ||
==महत्वपूर्ण कार्य== | ==महत्वपूर्ण कार्य== | ||
मैक्स मूलर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य 51 जिल्दों में 'सैक्रेड बुक्स ऑफ़ दि ईस्ट' (पूर्व के धार्मिक-पवित्र-ग्रंथ) का संपादन है। यह कार्य [[1875]] में आरंभ किया गया था, तथा तीन जिल्दों के अतिरिक्त समग्र कार्य मैक्स मूलर के जीवनकाल में ही प्रकाशित हो चुका था। मैक्स मूलर ने 'भारतीय दर्शन' पर भी रचनाएँ की थीं। अंतिम दिनों वह [[बौद्ध दर्शन]] में अधिक रूचि रखने लगा था तथा [[जापान]] में मिले अनेक बौद्ध दार्शनिक ग्रंथों की गवेषणा में दत्तचित्त था। | मैक्स मूलर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य 51 जिल्दों में 'सैक्रेड बुक्स ऑफ़ दि ईस्ट' (पूर्व के धार्मिक-पवित्र-ग्रंथ) का संपादन है। यह कार्य [[1875]] में आरंभ किया गया था, तथा तीन जिल्दों के अतिरिक्त समग्र कार्य मैक्स मूलर के जीवनकाल में ही प्रकाशित हो चुका था। मैक्स मूलर ने 'भारतीय दर्शन' पर भी रचनाएँ की थीं। अंतिम दिनों वह [[बौद्ध दर्शन]] में अधिक रूचि रखने लगा था तथा [[जापान]] में मिले अनेक बौद्ध दार्शनिक ग्रंथों की गवेषणा में दत्तचित्त था। | ||
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10:29, 30 मई 2014 का अवतरण
मैक्स मूलर
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पूरा नाम | फ़्रीडरिक मैक्स मूलर |
जन्म | 6 दिसम्बर, 1823 |
जन्म भूमि | देसो नगर, जर्मनी |
मृत्यु | 28 अक्टूबर, 1900 |
मृत्यु स्थान | इंग्लैण्ड |
कर्म भूमि | इंग्लैण्ड |
मुख्य रचनाएँ | 'हिस्ट्री आव एंशेंट संस्कृत लिटरेचर', 'इंट्रोडक्शन टू द जिनियस ऑव रेलिजन्स', 'सैक्रेड बुक्स ऑफ़ दि ईस्ट' आदि। |
विद्यालय | लाइपसिंग विश्वविद्यालय |
प्रसिद्धि | जर्मन संस्कृत वेत्ता तथा भाषाशास्त्री |
नागरिकता | ब्रिटिश |
विशेष | मैक्स मूलर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य 51 जिल्दों में 'सैक्रेड बुक्स ऑफ़ द ईस्ट' का संपादन है। यह कार्य 1875 में आरंभ किया गया था, तथा तीन जिल्दों के अतिरिक्त समग्र कार्य मैक्स मूलर के जीवनकाल में ही प्रकाशित हो चुका था। |
अन्य जानकारी | मैक्स मूलर का संबंध अनेक यूरोपीय तथा एशियाई संस्थाओं से था। वह बोडलियन लाइब्रेरी का क्यूरेटर तथा यूनिवर्सिटी प्रेस का डेलीगेट था। |
फ़्रीडरिक मैक्स मूलर (अंग्रेज़ी: Friedrich Max Muller; जन्म- 6 दिसम्बर, 1823, जर्मनी; मृत्यु- 28 अक्टूबर, 1900, इंग्लैण्ड) प्रसिद्ध जर्मन संस्कृतवेत्ता, प्राच्य विद्या विशारद, लेखक तथा भाषाशास्त्री था। वह ब्रिटिश 'ईस्ट इण्डिया कम्पनी' में कर्मचारी था। जन्म से जर्मन होने के बावजूद भी मैक्स मूलर ने अपने जीवन का अधिकांश समय इंग्लैण्ड में व्यतीत किया था। उसका संबंध अनेक यूरोपीय तथा एशियाई संस्थाओं से था। मैक्स मूलर ने 'भारतीय दर्शन' पर कई रचनाएँ की थीं। अंतिम दिनों वह बौद्ध दर्शन में अधिक रूचि रखने लगा था तथा जापान में मिले अनेक बौद्ध दार्शनिक ग्रंथों की गवेषणा में दत्तचित्त था।
जन्म तथा शिक्षा
जर्मन संस्कृतवेत्ता एवं भाषाशास्त्री मैक्स मूलर का जन्म जर्मनी के 'देसो'[1] नामक नगर में 6 दिसम्बर, 1823 ई. को हुआ था। उसके पिता प्रसिद्ध जर्मन कवि विल्हेम मूलर (1794-1827) थे, जिन्हें हजर्मन मुक्तक प्रगीतों की विशिष्ट शैली 'फिल-हेलेनिक' प्रगीतों के कारण काफ़ी ख्याति मिली थी। जब मैक्स मूलर मात्र चार वर्ष का ही था, तभी उसके पिता का देहान्त हो गया। उसने 1841 ई. में 'लाइपसिंग विश्वविद्यालय' से मैट्रिक पास किया था।
ऋग्वेद का मुद्रण
सन 1846 में मैक्स मूलर इंग्लैण्ड पहुँचा, जहाँ बुन्सेन तथा प्रोफ़ेसर एच. एच. विल्सन ने उसे ऋग्वेद के संपादन कार्य में पर्याप्त सहायता पहुँचाई। सन 1848 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस में ऋग्वेद का मुद्रण आरंभ होने के कारण मैक्स मूलर को ऑक्सफ़ोर्ड को ही अपना निवास स्थान बनाना पड़ा। बाद में मैक्स मूलर को 1850 में वहीं आधुनिक भाषाओं का टेलर प्राध्यापक नियुक्त किया गया और फिर 'क्राइस्ट चर्च कॉलेज' का मान्य सदस्य (फेलो) बनाया गया। वह 'आल सोल्स कॉलेज' का भी सदस्य रहा।
भाषाशास्त्र का आचार्य
इस बीच मैक्स मूलर के कई लेख प्रकाशित हुए, जो बाद में 'चिप्स फ्रॉम ए जर्मन वर्कशाप' शीर्षक से संग्रह रूप में प्रकाशित हुए। सन 1859 में इसकी पुस्तक 'हिस्ट्री आव एंशेंट संस्कृत लिटरेचर' प्रकाशित हुई। मैक्स मूलर का प्रधान लक्ष्य ऑक्सफ़ोर्ड में संस्कृत विभाग का संस्कृत आचार्य बनना था, किंतु सन 1860 में उक्त स्थान के रिक्त होने पर मैक्स मूलर का चुनाव सिर्फ इसलिए नहीं हो पाया कि वह विदेशी था और उसका संबंध 'लिबरल' दल के लोगों से था। उस स्थान पर मैक्स मूलर को न लेकर सर मोनियर विलियम्स की नियुक्ति की गई। इस घटना से मैक्स मूलर को काफ़ी धक्का पहुँचा। लेकिन 1868 में इसकी पूर्ति हो गई और वह वहीं तुलनात्मक भाषाशास्त्र का आचार्य बनाया गया।
व्याख्यान
मैक्स मूलर ने सन 1861 तथा 1863 में 'रॉयल इंस्टीट्यूशन' के समक्ष भाषा विज्ञान संबंधी कई व्याख्यान दिए, जो 'लेक्चर्स ऑन सायंस ऑव लैंग्वेजज' के नाम से प्रकाशित हुए। यद्यपि इन व्याख्यानों के निष्कर्ष तथा तर्क पद्धति का ह्टिनी जैसे भाषाशास्त्रियों ने काफ़ी विरोध किया, तथापि मैक्स मूलर के इन व्याख्यानों का भाषा वैज्ञानिक प्रगति के इतिहास में अत्यधिक महत्व है। मैक्स मूलर ने भाषा विज्ञान को 'भौतिक विज्ञान' की कोटि में माना है, जबकि यह वस्तुत: ऐतिहासिक या सामाजिक विज्ञान की एक विधा है। मैक्स मूलर ने भाषाशास्त्री के लिये संस्कृत के अध्ययन की आवश्यकता को इतना महत्व दिया कि उनके शब्दों में संस्कृत-ज्ञान-शून्य तुलनात्मक भाषाशास्त्री उस ज्योतिषी के समान है, जो गणित नहीं जानता।
यूरोपीय भाषाओं का अध्ययन
मैक्स मूलर ने यूरोपीय भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया। इस कार्य में प्रिचार्ड, विनिंग, बाप तथा एडोल्फ पिक्टेट की गवेषणाओं से उसे पर्याप्त सहायता मिली। मैक्स मूलर का एक अन्य प्रिय विषय धर्मविज्ञान पुराण-कथा-विज्ञान है। इस अध्ययन ने उसे तुलनात्मक धर्म की ओर भी प्रेरित किया। सन 1873 में उसने 'इंट्रोडक्शन टू द जिनियस ऑव रेलिजन्स' प्रकाशित की। इसी वर्ष इस विषय से संबंधित व्याख्यान देने के लिये वह वैस्ट मिनिंस्टर एबे में आमंत्रित किया गया। बाद में 1888 से 1892 तक इस विषय पर उसकी अन्य पुस्तक चार भागों में प्रकाशित हुई, जो गिफर्ड लेक्चर्स के रूप में दिए गए भाषण हैं।
महत्वपूर्ण कार्य
मैक्स मूलर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य 51 जिल्दों में 'सैक्रेड बुक्स ऑफ़ दि ईस्ट' (पूर्व के धार्मिक-पवित्र-ग्रंथ) का संपादन है। यह कार्य 1875 में आरंभ किया गया था, तथा तीन जिल्दों के अतिरिक्त समग्र कार्य मैक्स मूलर के जीवनकाल में ही प्रकाशित हो चुका था। मैक्स मूलर ने 'भारतीय दर्शन' पर भी रचनाएँ की थीं। अंतिम दिनों वह बौद्ध दर्शन में अधिक रूचि रखने लगा था तथा जापान में मिले अनेक बौद्ध दार्शनिक ग्रंथों की गवेषणा में दत्तचित्त था।
निधन
मैक्स मूलर का संबंध अनेक यूरोपीय तथा एशियाई संस्थाओं से था। वह बोडलियन लाइब्रेरी का क्यूरेटर तथा यूनिवर्सिटी प्रेस का डेलीगेट था। 28 अक्टूबर, 1900 को मैक्स मूलर का निधन ऑक्सफ़ोर्ड, इंग्लैण्ड में हुआ। उसकी मृत्यु के बाद वर्ष 1903 में उसकी फुटकर रचनाओं का संग्रह प्रकाशित हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Dessau
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