"बहुत बड़ा पाठ -महात्मा गाँधी": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "काफी " to "काफ़ी ") |
||
पंक्ति 35: | पंक्ति 35: | ||
सुबैया बोला, 'जी बापू, मैं कर लूंगा।' इसके बाद गांधी जी चले गए। | सुबैया बोला, 'जी बापू, मैं कर लूंगा।' इसके बाद गांधी जी चले गए। | ||
मध्य प्रार्थना के समय आश्रमवासियों की हाजिरी होती थी। उस समय किस व्यक्ति ने कितने सूत के तार काते हैं, यह पूछा जाता था। उस सूची में सबसे पहला नाम गांधीजी का था। जब उनसे उनके सूत के तारों की संख्या पूछी गई तो वह चुप हो गए। उन्होंने सुबैया की ओर देखा। सुबैया ने सिर झुका लिया। हाजिरी समाप्त हो गई। प्रार्थना समाप्त होने के बाद गांधीजी कुछ देर के लिए आश्रमवासियों से बातें किया करते थे। उस दिन वह | मध्य प्रार्थना के समय आश्रमवासियों की हाजिरी होती थी। उस समय किस व्यक्ति ने कितने सूत के तार काते हैं, यह पूछा जाता था। उस सूची में सबसे पहला नाम गांधीजी का था। जब उनसे उनके सूत के तारों की संख्या पूछी गई तो वह चुप हो गए। उन्होंने सुबैया की ओर देखा। सुबैया ने सिर झुका लिया। हाजिरी समाप्त हो गई। प्रार्थना समाप्त होने के बाद गांधीजी कुछ देर के लिए आश्रमवासियों से बातें किया करते थे। उस दिन वह काफ़ी गंभीर थे। उन्हें देखकर लग रहा था जैसे कि उनके भीतर कोई गहरी वेदना है। | ||
उन्होंने दुख भरे स्वर में कहना शुरू किया, | उन्होंने दुख भरे स्वर में कहना शुरू किया, |
14:10, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
बहुत बड़ा पाठ -महात्मा गाँधी
| |
विवरण | इस लेख में महात्मा गाँधी से संबंधित प्रेरक प्रसंगों के लिंक दिये गये हैं। |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | महात्मा गाँधी के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
एक बार गांधीजी सूत कातने के बाद उसे लपेटने ही वाले थे कि उन्हें एक आवश्यक कार्य के लिए तुरंत बुलाया गया। गांधीजी वहां से जाते समय आश्रम के साथी श्री सुबैया से बोले,
'मैं पता नहीं कब लौटूं, तुम सूत लपेटे पर उतार लेना, तार गिन लेना और प्रार्थना के समय से पहले मुझे बता देना।'
सुबैया बोला, 'जी बापू, मैं कर लूंगा।' इसके बाद गांधी जी चले गए।
मध्य प्रार्थना के समय आश्रमवासियों की हाजिरी होती थी। उस समय किस व्यक्ति ने कितने सूत के तार काते हैं, यह पूछा जाता था। उस सूची में सबसे पहला नाम गांधीजी का था। जब उनसे उनके सूत के तारों की संख्या पूछी गई तो वह चुप हो गए। उन्होंने सुबैया की ओर देखा। सुबैया ने सिर झुका लिया। हाजिरी समाप्त हो गई। प्रार्थना समाप्त होने के बाद गांधीजी कुछ देर के लिए आश्रमवासियों से बातें किया करते थे। उस दिन वह काफ़ी गंभीर थे। उन्हें देखकर लग रहा था जैसे कि उनके भीतर कोई गहरी वेदना है।
उन्होंने दुख भरे स्वर में कहना शुरू किया,
'मैंने आज भाई सुबैया से कहा था कि मेरा सूत उतार लेना और मुझे तारों की संख्या बता देना। मैं मोह में फंस गया। सोचा था, सुबैया मेरा काम कर लेंगे, लेकिन यह मेरी भूल थी। मुझे अपना काम स्वयं करना चाहिए था। मैं सूत कात चुका था, तभी एक जरूरी काम के लिए मुझे बुलावा आ गया और मैं सुबैया से सूत उतारने को कहकर बाहर चला गया। जो काम मुझे पहले करना था, वह नहीं किया। भाई सुबैया का इसमें कोई दोष नहीं, दोष मेरा है। मैंने क्यों अपना काम उनके भरोसे छोड़ा? इस भूल से मैंने एक बहुत बड़ा पाठ सीखा है। अब मैं फिर ऐसी भूल कभी नहीं करूंगा।'
उनकी बात सुनकर सुबैया को भी स्वयं पर अत्यंत ग्लानि हुई और उन्होंने निश्चय किया कि यदि आगे से वह कोई जिम्मेदारी लेंगे तो उसे अवश्य समय पर पूरा करेंगे।
- महात्मा गाँधी से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए महात्मा गाँधी के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ।
|
|
|
|
|