"योजना आयोग": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
==योजना आयोग का गठन== | ==योजना आयोग का गठन== | ||
योजना आयोग के पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते | योजना आयोग के पदेन अध्यक्ष [[प्रधानमंत्री]] होते हैं। इसके बाद आयोग का उपाध्यक्ष संस्था के कामकाज को मुख्य रूप से देखता है। [[नरेंद्र मोदी]] की सरकार बनने तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया थे, जिन्होंने बाद में इस्तीफ़ा दे दिया। कुछ महत्त्वपूर्ण विभागों के कैबिनेट मंत्री आयोग के अस्थायी सदस्य होते हैं, जबकि स्थायी सदस्यों में अर्थशास्त्र; उद्योग, विज्ञान एवं सामान्य प्रशासन जैसे विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होते हैं। ये विशेषज्ञ विभिन्न विषयों पर अपनी राय सरकार को देते रहते हैं। आयोग अपने विभिन्न प्रभागों के माध्यम से कार्य करता है। आयोग के विशेषज्ञों में अधिकतर अर्थशास्त्री होते हैं, यह इस आयोग को '''भारतीय आर्थिक सेवा''' का सबसे बड़ा नियोक्ता बना देता है। | ||
====अब तक आयोग के उपाध्यक्ष==== | ====अब तक आयोग के उपाध्यक्ष==== | ||
अब तक आयोग के उपाध्यक्ष का पद जिन लोगों ने संभाला उनमें [[गुलजारीलाल नंदा]], टी. कृष्णमाचारी, [[सी. सुब्रह्मण्यम]], पी. एन. हक्सर, [[मनमोहन सिंह]], [[प्रणब मुखर्जी]], के.सी. पंत, जसवंत सिंह, मधु दंडवते, [[मोहन धारिया]] और आर. के. हेगड़े जैसे लोग शामिल हैं। | अब तक आयोग के उपाध्यक्ष का पद जिन लोगों ने संभाला उनमें [[गुलजारीलाल नंदा]], टी. कृष्णमाचारी, [[सी. सुब्रह्मण्यम]], पी. एन. हक्सर, [[मनमोहन सिंह]], [[प्रणब मुखर्जी]], के. सी. पंत, जसवंत सिंह, मधु दंडवते, [[मोहन धारिया]] और आर. के. हेगड़े जैसे लोग शामिल हैं। | ||
==प्रमुख कार्य== | ==प्रमुख कार्य== | ||
[[चित्र:Planning Commission over the years..JPG|thumb|जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) विकास दर ([[बारहवीं पंचवर्षीय योजना]])]] | [[चित्र:Planning Commission over the years..JPG|thumb|जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) विकास दर ([[बारहवीं पंचवर्षीय योजना]])]] | ||
पंक्ति 57: | पंक्ति 57: | ||
सरकार की स्वतंत्र मूल्यांकन कार्यालय के महानिदेशक अजय छिब्बर के अनुसार योजना आयोग की जगह एक थिक टैंक बॉडी का गठन होना चाहिए। ऐसा भी माना जा रहा है कि योजना आयोग की जगह उत्पादकता आयोग या विकास और सुधार आयोग बन सकता है। केंद्रीय मंत्रालयों को धन आवंटन करने का काम योजना आयोग की जगह नया योजना विभाग बनाकर वित्त मंत्रालय को सौंपा जा सकता है। इसी तरह राज्यों को धन आवंटित करने की शक्तियों को वित्त आयोग को दिया जा सकता है। छिब्बर के अनुसार आयोग का मौजूदा स्वरूप और कार्यप्रणाली विकास में सहायक नहीं, बल्कि बाधक है आइ.ई.ओ. का सुझाव है कि इसकी जगह सुधार और समाधान के लिये एक बॉडी का गठन हो, जिसमें केंद्र, राज्य और संसद सदस्यों और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधि शामिल हों। नई संस्था में राज्यों की भूमिका बढ़ाई जा सकती है। प्रधानमंत्री [[नरेंद्र मोदी]] केंद्र और राज्यों को मिलाकर '''टीम इंडिया''' की बात करते हैं। नई संस्था में इसकी झलक देखने को मिल सकती है। | सरकार की स्वतंत्र मूल्यांकन कार्यालय के महानिदेशक अजय छिब्बर के अनुसार योजना आयोग की जगह एक थिक टैंक बॉडी का गठन होना चाहिए। ऐसा भी माना जा रहा है कि योजना आयोग की जगह उत्पादकता आयोग या विकास और सुधार आयोग बन सकता है। केंद्रीय मंत्रालयों को धन आवंटन करने का काम योजना आयोग की जगह नया योजना विभाग बनाकर वित्त मंत्रालय को सौंपा जा सकता है। इसी तरह राज्यों को धन आवंटित करने की शक्तियों को वित्त आयोग को दिया जा सकता है। छिब्बर के अनुसार आयोग का मौजूदा स्वरूप और कार्यप्रणाली विकास में सहायक नहीं, बल्कि बाधक है आइ.ई.ओ. का सुझाव है कि इसकी जगह सुधार और समाधान के लिये एक बॉडी का गठन हो, जिसमें केंद्र, राज्य और संसद सदस्यों और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधि शामिल हों। नई संस्था में राज्यों की भूमिका बढ़ाई जा सकती है। प्रधानमंत्री [[नरेंद्र मोदी]] केंद्र और राज्यों को मिलाकर '''टीम इंडिया''' की बात करते हैं। नई संस्था में इसकी झलक देखने को मिल सकती है। | ||
====योजना आयोग की जगह मोदी का स्पेशल-5 पैनल==== | ====योजना आयोग की जगह मोदी का स्पेशल-5 पैनल==== | ||
अंग़्रेजी अख़बार ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शक्तियां लेने वाला पांच सदस्यीय थिंक टैंक योजना आयोग की जगह लेगा। अख़बार ने सूत्रों के हवाले से संभावना जताई है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु इस पैनल का सबसे अहम चेहरा हो सकते हैं। साथ ही मुक्त बाज़ार के हिमायती भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया और विवेक देबरॉय भी इस टीम का हिस्सा हो सकते हैं। आधिकारिक रूप से पैनल की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ही करेंगे। | अंग़्रेजी अख़बार ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शक्तियां लेने वाला पांच सदस्यीय थिंक टैंक योजना आयोग की जगह लेगा। अख़बार ने सूत्रों के हवाले से संभावना जताई है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु इस पैनल का सबसे अहम चेहरा हो सकते हैं। साथ ही मुक्त बाज़ार के हिमायती भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया और विवेक देबरॉय भी इस टीम का हिस्सा हो सकते हैं। आधिकारिक रूप से पैनल की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ही करेंगे।<ref>{{cite web |url=http://mahanagartimes.net/archives/22877 |title=योजना आयोग की जगह मोदी का स्पेशल-5 पैनल |accessmonthday=18 अगस्त |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=महानगर टाइम्स |language=हिंदी }}</ref> | ||
14:08, 21 अगस्त 2014 का अवतरण
योजना आयोग
| |
उद्देश्य | देश के संसाधनों के सर्वाधिक प्रभावी तथा संतुलित उपयोग के लिए योजना बनाना। |
स्थापना | 15 मार्च, 1950 |
मुख्यालय | योजना भवन, संसद मार्ग, नई दिल्ली |
अध्यक्ष | प्रधानमंत्री |
अन्य जानकारी | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2014 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल क़िले की प्राचीर से कहा है कि बदलते वक्त में हमें रचनात्मक सोच और युवाओं की क्षमता का अधिकतम उपयोग करने वाला संस्थान बनाने की जरुरत है। |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
अद्यतन | 16:32, 18 अगस्त 2014 (IST)
|
योजना आयोग भारत सरकार की प्रमुख स्वतंत्र संस्थाओं में से एक है। इसका मुख्य कार्य 'पंचवर्षीय योजनाएँ' बनाना है। इस आयोग की स्थापना 15 मार्च, 1950 को की गई थी। भारत का प्रधानमंत्री योजना आयोग का अध्यक्ष होता है। वित्तमंत्री और रक्षामंत्री योजना आयोग के पदेन सदस्य होते हैं। इस आयोग की बैठकों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ही करता है। योजना आयोग किसी प्रकार से भारत की संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है।
इतिहास
भारत में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत सबसे पहले 1930 ई. में बुनियादी आर्थिक योजनायें बनाने का कार्य शुरू हुआ। भारत की औपनिवेशिक सरकार ने औपचारिक रूप से एक कार्य योजना बोर्ड का गठन भी किया, जिसने 1944 से 1946 तक कार्य किया। निजी उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों ने 1944 में कम से कम तीन विकास योजनायें बनाई थीं। स्वतंत्रता के बाद भारत ने योजना बनाने का एक औपचारिक मॉडल अपनाया और इसके तहत 'योजना आयोग', जो सीधे भारत के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता था, का गठन 15 मार्च, 1950 ई. को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में किया गया।
पंचवर्षीय योजना की शुरुआत
देश की प्रथम पंचवर्षीय योजना सन 1951 में शुरू की गयी थी। इसके बाद 1965 तक दो और पंचवर्षीय योजनायें बनाई गयीं। सन 1965 के बाद पाकिस्तान से युद्ध छिड़ जाने के कारण योजना बनाने का कार्य में व्यवधान आया। लगातार दो साल के सूखे, मुद्रा का अवमूल्यन, क़ीमतों में सामान्य वृद्धि और संसाधनों के क्षरण के कारण योजना प्रक्रिया बाधित हुई और 1966 और 1969 के बीच तीन वार्षिक योजनाओं के बाद चौथी पंचवर्षीय योजना को 1969 में शुरू किया जा सका।
योजना आयोग का गठन
योजना आयोग के पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। इसके बाद आयोग का उपाध्यक्ष संस्था के कामकाज को मुख्य रूप से देखता है। नरेंद्र मोदी की सरकार बनने तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया थे, जिन्होंने बाद में इस्तीफ़ा दे दिया। कुछ महत्त्वपूर्ण विभागों के कैबिनेट मंत्री आयोग के अस्थायी सदस्य होते हैं, जबकि स्थायी सदस्यों में अर्थशास्त्र; उद्योग, विज्ञान एवं सामान्य प्रशासन जैसे विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होते हैं। ये विशेषज्ञ विभिन्न विषयों पर अपनी राय सरकार को देते रहते हैं। आयोग अपने विभिन्न प्रभागों के माध्यम से कार्य करता है। आयोग के विशेषज्ञों में अधिकतर अर्थशास्त्री होते हैं, यह इस आयोग को भारतीय आर्थिक सेवा का सबसे बड़ा नियोक्ता बना देता है।
अब तक आयोग के उपाध्यक्ष
अब तक आयोग के उपाध्यक्ष का पद जिन लोगों ने संभाला उनमें गुलजारीलाल नंदा, टी. कृष्णमाचारी, सी. सुब्रह्मण्यम, पी. एन. हक्सर, मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी, के. सी. पंत, जसवंत सिंह, मधु दंडवते, मोहन धारिया और आर. के. हेगड़े जैसे लोग शामिल हैं।
प्रमुख कार्य
सन 1950 के संकल्प द्वारा योजना आयोग की स्थापना के समय इसके कार्यों को इस प्रकार परिभाषित किया गया-
- देश में उपलब्ध तकनीकी कर्मचारियों सहित सामग्री, पंजी और मानव संसाधनों का आकलन और राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुरूप इन संसाधनों की कमी को दूर करने हेतु उन्हें बढ़ाने की सम्भावनाओं का पता लगाना।
- देश के संसाधनों के सर्वाधिक प्रभावी तथा संतुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।
- प्राथमिकताएँ निर्धारित करते ऐसे क्रमों को परिभाषित करना, जिनके अनुसार योजना को कार्यान्वित किया जाये और प्रत्येक क्रम को यथोचित पूरा करने के लिए संसाधन आवंटित करने का प्रस्ताव रखना।
- ऐसे कारकों के बारे में बताना, जो आर्थिक विकास में बाधक हैं और वर्तमान सामाजिक तथा राजनीतिक स्थिति के दृष्टिगत ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करने की जानकारी देना, जिनसे योजना को सफलतापूर्वक निष्पादित किया जा सके।
- इस प्रकार के तंत्र का निर्धारण करना, जो योजना के प्रत्येक पहलू को एक चरण में कार्यान्वित करने हेतु ज़रूरी हो।
- योजना के प्रत्येक चरण में हुई प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन और उस नीति तथा उपायों के समायोजना की सिफारिश करना जो मूल्यांकन के दौरान ज़रूरी समझे जाएँ।
- ऐसी अंतरिम या अनुषंगी सिफारिशें करना, जो उसे सौंपे गए कर्तव्यों को पूरा करने के लिए उचित हों अथवा वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों, चालू नीतियों उपायों और विकास कार्यक्रमों पर विचार करते हुए अथवा परामर्श के लिए केंद्रीय या राज्य सरकारों द्वारा उसे सौंपी गई विशिष्ट समस्याओं की जाँच के बाद उचित लगती हों।
कार्यों का विस्तार
एक आयामिक केंद्रित योजना प्रणाली की जगह भारतीय अर्थव्यवस्था निदेशक योजना की ओर बढ़ रही है, जिसमें योजना आयोग ने भविष्य के लिए दीर्घकालीन रणनीति तैयार करने और राष्ट्र के लिए प्रथमिकताएँ निर्धारित करने का उत्तरदायित्व सम्भाला है। यह सेक्टर वार लक्ष्य निर्धारित करता है और अर्थव्यवस्था को वांछित दिशा में ले जाने के लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा की व्यवस्था करता है। मानव विकास और आर्थिक विकास के अति महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए नीति तैयार करने हेतु बढ़िया दृष्टिकोण पैदा करने के लिए योजना आयोग एकीकृत भूमिका निभाता है। सामाजिक क्षेत्र में ग्रामीण स्वास्थ्य, पेयजल, ग्रामीण ऊर्जा की ज़रूरतों, साक्षरता और पर्यावरण संरक्षण जैसी योजनाओं के लिए समन्वय और सामंजस्य की ज़रूरत है। अभी इनके लिए समन्वित नीति तैयार किया जाना शेष है। इस कारण एजेंसियों की बहुतायत हो गई है। एकीकृत दृष्टिकोण से काफ़ी कम खर्च में अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।
आयोग इस बात पर बल देता है कि सीमित संसाधनों का उपयोग ऐसे अच्छे ढंग से हो और उनसे अधिकतम उत्पादन हो सके। केवल योजना परिव्यय में वृद्धि करते जाने के स्थान पर प्रयास यह है कि आवंटित राशियों का उपयोग करने की कुशलता में वृद्धि हो। उपलब्ध बजट संसाधनों की अत्यधिक कमी महसूस होने के कारण राज्यों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों के बीच संसाधन आवंटन प्रणाली पर काफ़ी ज़ोर पड़ा है। इसलिए योजना आयोग को सभी संबंधित पक्षों का ध्यान रखते हुए मध्यस्थ की भूमिका निभानी पड़ती है। आयोग को शांतिपूर्ण परिवर्तन करके सरकार में अधिक उत्पादकता और कुशलता की संस्कृति लाने में सहायता करनी है। संसाधनों के कुशल प्रयोग की कुंजी यह है कि सभी स्तरों पर स्वयं अपनी व्यवस्था बनाने वाले संगठन बनाए जाएँ। इस क्षेत्र में प्रणाली बदलाव लाने और सरकार के बीच ही बेहतर प्रणालियाँ विकसित करने के लिए सलाह देने हेतु योजना आयोग अपनी भूमिका निभाने का प्रयास करता है। प्राप्त अनुभवों का लाभ फैलाने के लिए जानकारी विस्तारित करने की भूमिका भी योजना आयोग निभाता है।
सदस्य
प्रधानमंत्री के पदेन अध्यक्ष होने के साथ, समिति में एक नामजद उपाध्यक्ष भी होता है, जिसका पद एक कैबिनेट मंत्री के बराबर होता है। कुछ महत्त्वपूर्ण विभागों के कैबिनेट मंत्री आयोग के अस्थायी सदस्य होते हैं, जबकि स्थायी सदस्यों मे अर्थशास्त्र, उद्योग, विज्ञान एवं सामान्य प्रशासन जैसे विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होते हैं। आयोग अपने विभिन्न प्रभागों के माध्यम से कार्य करता है, जिनके दो प्रकार होते हैं-
- सामान्य योजना प्रभाग
- कार्यक्रम प्रशासन प्रभाग
योजना आयोग के विशेषज्ञों में अधिकतर अर्थशास्त्री होते हैं। यह इस आयोग को भारतीय आर्थिक सेवा का सबसे बड़ा नियोक्ता बनाता है। कैबिनेट मंत्रियों के समान ही आयोग के सदस्यों को वेतन तथा भत्ता दिया जाता है। आलोचक योजना आयोग को एक "समानांतर मत्रिमण्डल" या "सर्वोच्च मत्रिमण्डल" कहते हैं।
कम हुई अहमियत
सोवियत संघ की संस्था के तर्ज पर भारत में स्थापित योजना आयोग की प्रासंगिकता 90 के दशक में उदारीकरण के बाद खत्म होने होने लगी थी। लाइसेंस राज खत्म होने के बाद यह बिना किसी प्रभावी अधिकार के सलाहकार संस्था के तौर पर काम करती रही। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि बदलते वक़्त में हमें रचनात्मक सोच और युवाओं की क्षमता का अधिकतम उपयोग करने वाला संस्थान बनाने की जरुरत है।
आयोग के विवादित दावे
- 27.30 रुपये खर्च करने वाला ग्रामीण ग़रीब नहीं, 2011 में यह सीमा 26 रुपये थी।
- 33.33 रुपये खर्च करने वाला शहरी ग़रीब नहीं, 2011 में यह सीमा 32 रुपये थी।
- 4080 रुपये प्रतिमाह (क़रीब 136 रुपये रोजना) कमाने वाला पांच व्यक्तियों का ग्रामीण परिवार ग़रीबी रेखा से ऊपर।
- 5000 रुपये प्रतिमाह (क़रीब 166.5 रुपये रोजना) कमाने वाला पांच व्यक्तियों का ग्रामीण परिवार ग़रीबी रेखा से ऊपर।[1]
कैसा होगा नया ढांचा
सरकार की स्वतंत्र मूल्यांकन कार्यालय के महानिदेशक अजय छिब्बर के अनुसार योजना आयोग की जगह एक थिक टैंक बॉडी का गठन होना चाहिए। ऐसा भी माना जा रहा है कि योजना आयोग की जगह उत्पादकता आयोग या विकास और सुधार आयोग बन सकता है। केंद्रीय मंत्रालयों को धन आवंटन करने का काम योजना आयोग की जगह नया योजना विभाग बनाकर वित्त मंत्रालय को सौंपा जा सकता है। इसी तरह राज्यों को धन आवंटित करने की शक्तियों को वित्त आयोग को दिया जा सकता है। छिब्बर के अनुसार आयोग का मौजूदा स्वरूप और कार्यप्रणाली विकास में सहायक नहीं, बल्कि बाधक है आइ.ई.ओ. का सुझाव है कि इसकी जगह सुधार और समाधान के लिये एक बॉडी का गठन हो, जिसमें केंद्र, राज्य और संसद सदस्यों और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधि शामिल हों। नई संस्था में राज्यों की भूमिका बढ़ाई जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र और राज्यों को मिलाकर टीम इंडिया की बात करते हैं। नई संस्था में इसकी झलक देखने को मिल सकती है।
योजना आयोग की जगह मोदी का स्पेशल-5 पैनल
अंग़्रेजी अख़बार ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शक्तियां लेने वाला पांच सदस्यीय थिंक टैंक योजना आयोग की जगह लेगा। अख़बार ने सूत्रों के हवाले से संभावना जताई है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु इस पैनल का सबसे अहम चेहरा हो सकते हैं। साथ ही मुक्त बाज़ार के हिमायती भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया और विवेक देबरॉय भी इस टीम का हिस्सा हो सकते हैं। आधिकारिक रूप से पैनल की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ही करेंगे।[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अमर उजाला | दिनांक- 18 अगस्त, 2014 | पृष्ठ- 16
- ↑ योजना आयोग की जगह मोदी का स्पेशल-5 पैनल (हिंदी) महानगर टाइम्स। अभिगमन तिथि: 18 अगस्त, 2014।
संबंधित लेख