"महेश्वर क़िला": अवतरणों में अंतर
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==स्थापत्य कला== | ==स्थापत्य कला== |
11:10, 1 सितम्बर 2014 का अवतरण
महेश्वर क़िला मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक नगर महेश्वर में स्थित है। यह क़िला आज भी पूरी तरह से सुरक्षित है तथा बहुत ही सुन्दर तरीके से बनाया गया है। यह बड़ी मजबूती के साथ नर्मदा नदी के किनारे पर सदियों से डटा हुआ है।
स्थापत्य कला
महेश्वर क़िले में प्रवेश के लिए अहिल्या घाट के पास से ही एक चौड़ा घेरा लिए बहुत सारी सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह क़िला जितना सुन्दर बाहर से है, उससे भी ज्यादा सुन्दर तथा आकर्षक अन्दर से लगता है। इतनी सुन्दर कारीगरी, इतनी सुन्दर शिल्पकारी, इतना सुन्दर एवं मजबूत निर्माण की आज भी यह क़िला नया जैसा लगता है। अन्दर जाकर एक तरफ़ राजराजेश्वर शिव मंदिर है तथा दूसरी तरफ़ एक अन्य स्मारक है। कुल मिलाकर एक बड़ा ही सुन्दर दृश्य उपस्थित होता है और कहीं जाने का मन ही नहीं होता। ऐसा लगता है कि घंटों एक ही जगह खड़े होकर इस क़िले की नक्काशी तथा कारीगरी, झरोखों, दरवाज़ों एवं दीवारों को बस देखते ही रहें। क़िले के अन्दर कुछ क़दमों की दूरी पर ही प्राचीन राजराजेश्वर शैव मंदिर दिखाई देता है। यह एक विशाल शिव मंदिर है, जिसका निर्माण क़िले के अन्दर ही अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। यह मंदिर भी क़िले की ही तरह पूर्णतः सुरक्षित है एवं कहीं से भी खंडित नहीं हुआ है। आज भी यहाँ दोनों समय साफ़-सफाई, पूजा-पाठ तथा जल अभिषेक वगैरह अनवरत जारी है। देवी अहिल्याबाई इसी मंदिर में रोजाना सुबह-शाम पूजा-पाठ किया करती थीं।[1]
देवी अहिल्याबाई की प्रतिमा
क़िले के अन्दर प्रवेश के बाद राजराजेश्वर मंदिर एवं रेवा सोसाइटी के बाद आता है एक बड़ा हॉल, जहाँ एक ओर देवी अहिल्याबाई का राज दरबार है तथा उनकी राजगद्दी है, जिस पर उनकी सुन्दर प्रतिमा रखी गई है। यह दृश्य इतना सजीव लगता है कि ऐसा प्रतीत होता है कि देवी अहिल्याबाई सचमुच अपनी राजगद्दी पर बैठकर आज भी महेश्वर का शासन चला रही हैं। आज भी यह स्थान सजीव राज दरबार की तरह लगता है। हॉल में दूसरी ओर होल्कर वंश के शासकों के द्वारा उपयोग में लाये गए अस्त्र शस्त्रों की एक छोटी सी प्रदर्शनी लगी है। यहीं पर एक सुन्दर सी पालकी भी रखी है, जिसमें बैठकर देवी अहिल्याबाई नगर भ्रमण के लिए जाती थीं। इन सब चीजों को देखने से ऐसा लगता है, जैसे हम सचमुच ढाई सौ साल पुराने देवी अहिल्या के शासन काल में विचरण कर रहे हैं। क़िले में स्थित एक छोटे से मंदिर से आज भी दशहरे के उत्सव की शुरुआत की जाती है, जैसे वर्षों पहले यहाँ होल्कर शासन काल में हुआ करता था। क़िले से ढलवां रास्ते से निचे जाते ही शहर बसा हुआ है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महेश्वर-नर्मदा का हर कंकर है शंकर, नमामि देवी नर्मदे, भाग-2 (हिन्दी) घुमक्कड़ डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 1 सितम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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