"सम्मेत शिखर": अवतरणों में अंतर
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'''सम्मेत शिखर''' या 'सम्मेद शिखर' या 'सम्मेत शैल' [[जैन धर्म]] का प्रसिद्ध [[तीर्थ|तीर्थ स्थान]] है। यह [[झारखण्ड|झारखण्ड राज्य]] के [[गिरिडीह|गिरिडीह ज़िले]] में स्थित है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। | |||
*जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 20 [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] और अनेक संतों व मुनियों ने सम्मेत शिखर पर मोक्ष प्राप्त किया था। | |||
*सम्मेत शिखर का नामोल्लेख जैन ग्रंथ 'तीर्थमाला चैत्यवंदन' में इस प्रकार है<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=937|url=}}</ref>- | |||
<blockquote>'बंदेऽष्टापदगुंडरेगजपदेसम्मेतशैलाभिषे।'</blockquote> | |||
*सम्मेत शिखर तीर्थ या पारसनाथ पर्वत का तीर्थ क्षेत्र के साथ ही पूरे [[भारत]] में प्राकृतिक, ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व रखता है। | |||
*[[जैन धर्म]] में प्राचीन धारणा है कि सृष्टि रचना के समय से ही सम्मेत शिखर और [[अयोध्या]], इन दो प्रमुख तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसका अर्थ यह है कि इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। इसलिए इनको 'अमर तीर्थ' माना जाता है। | |||
*जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेत शिखर तीर्थ की एक बार यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेत शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से [[भक्ति]] करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है। | |||
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09:21, 1 अक्टूबर 2014 का अवतरण
सम्मेत शिखर या 'सम्मेद शिखर' या 'सम्मेत शैल' जैन धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह झारखण्ड राज्य के गिरिडीह ज़िले में स्थित है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
- जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों और अनेक संतों व मुनियों ने सम्मेत शिखर पर मोक्ष प्राप्त किया था।
- सम्मेत शिखर का नामोल्लेख जैन ग्रंथ 'तीर्थमाला चैत्यवंदन' में इस प्रकार है[1]-
'बंदेऽष्टापदगुंडरेगजपदेसम्मेतशैलाभिषे।'
- सम्मेत शिखर तीर्थ या पारसनाथ पर्वत का तीर्थ क्षेत्र के साथ ही पूरे भारत में प्राकृतिक, ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व रखता है।
- जैन धर्म में प्राचीन धारणा है कि सृष्टि रचना के समय से ही सम्मेत शिखर और अयोध्या, इन दो प्रमुख तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसका अर्थ यह है कि इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। इसलिए इनको 'अमर तीर्थ' माना जाता है।
- जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेत शिखर तीर्थ की एक बार यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेत शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
मुख्य लेख : सम्मेद शिखर
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 937 |
संबंधित लेख
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