"गोविन्द प्रथम": अवतरणों में अंतर
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'''गोविन्द प्रथम''' मान्यखेट में अपनी [[राजधानी]] बनाकर दक्षिण पथ पर शासन करने वाले, जिन [[राष्ट्रकूट]] राजाओं ने सर्वप्रथम अपने वंश की वास्तविक राजनीतिक प्रतिष्ठा स्थापित की, उनमें प्रमुख थे [[दंतिदुर्ग]] और [[कृष्ण प्रथम]]। उनके पूर्व उस राजकुल में अन्य अनेक सामंत राजा हो चुके थे। गोविंद प्रथम उन्हीं में से एक था।<ref name="nn">{{cite web |url=http:// | '''गोविन्द प्रथम''' मान्यखेट में अपनी [[राजधानी]] बनाकर दक्षिण पथ पर शासन करने वाले, जिन [[राष्ट्रकूट]] राजाओं ने सर्वप्रथम अपने वंश की वास्तविक राजनीतिक प्रतिष्ठा स्थापित की, उनमें प्रमुख थे [[दंतिदुर्ग]] और [[कृष्ण प्रथम]]। उनके पूर्व उस राजकुल में अन्य अनेक सामंत राजा हो चुके थे। गोविंद प्रथम उन्हीं में से एक था।<ref name="nn">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6,_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A4%AE,_%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF,_%E0%A4%A4%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF_%E0%A4%94%E0%A4%B0_%E0%A4%9A%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5|title=गोविन्द प्रथम|accessmonthday=2 अगस्त|accessyear=2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भरतखोज |language=हिन्दी}} </ref> | ||
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*मुख्य शाखा का गोविंद प्रथम सामंत उपाधियों को धारण करता था, जो दूसरे गोविंद के बारे में नहीं कहा जा सकता था। | *मुख्य शाखा का गोविंद प्रथम सामंत उपाधियों को धारण करता था, जो दूसरे गोविंद के बारे में नहीं कहा जा सकता था। |
12:26, 25 अक्टूबर 2017 का अवतरण
गोविन्द प्रथम मान्यखेट में अपनी राजधानी बनाकर दक्षिण पथ पर शासन करने वाले, जिन राष्ट्रकूट राजाओं ने सर्वप्रथम अपने वंश की वास्तविक राजनीतिक प्रतिष्ठा स्थापित की, उनमें प्रमुख थे दंतिदुर्ग और कृष्ण प्रथम। उनके पूर्व उस राजकुल में अन्य अनेक सामंत राजा हो चुके थे। गोविंद प्रथम उन्हीं में से एक था।[1]
- राष्ट्रकूटों की किसी अन्य सामान्य शाखा में भी गोविंद नाम का कोई सरदार हो चुका था। इसका आधार है विभिन्न वंशावलियों में गोविंद नाम की क्रम से दो बार प्राप्ति हुई।
- मुख्य शाखा का गोविंद प्रथम सामंत उपाधियों को धारण करता था, जो दूसरे गोविंद के बारे में नहीं कहा जा सकता था।
- डा. अल्तेकर, उसका संभावित काल 690 ई. से 710 ई. तक निश्चित करते हैं। कुछ राष्ट्रकूट अभिलेखों से उसके शैव होने की बात ज्ञात होती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गोविन्द प्रथम (हिन्दी) भरतखोज। अभिगमन तिथि: 2 अगस्त, 2015।
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