"जगदातमा महेसु पुरारी": अवतरणों में अंतर
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जगदातमा महेसु पुरारी। | जगदातमा महेसु पुरारी। जगत् जनक सब के हितकारी॥ | ||
पिता मंदमति निंदत तेही। दच्छ सुक्र संभव यह देही॥3॥ | पिता मंदमति निंदत तेही। दच्छ सुक्र संभव यह देही॥3॥ | ||
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त्रिपुर दैत्य को मारने वाले भगवान महेश्वर सम्पूर्ण | त्रिपुर दैत्य को मारने वाले भगवान महेश्वर सम्पूर्ण जगत् की आत्मा हैं, वे जगत्पिता और सबका हित करने वाले हैं। मेरा मंदबुद्धि पिता उनकी निंदा करता है और मेरा यह शरीर दक्ष ही के वीर्य से उत्पन्न है॥3॥ | ||
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13:46, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
जगदातमा महेसु पुरारी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
जगदातमा महेसु पुरारी। जगत् जनक सब के हितकारी॥ |
- भावार्थ-
त्रिपुर दैत्य को मारने वाले भगवान महेश्वर सम्पूर्ण जगत् की आत्मा हैं, वे जगत्पिता और सबका हित करने वाले हैं। मेरा मंदबुद्धि पिता उनकी निंदा करता है और मेरा यह शरीर दक्ष ही के वीर्य से उत्पन्न है॥3॥
जगदातमा महेसु पुरारी |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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