"पाछें पवन तनय सिरु नावा": अवतरणों में अंतर
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पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा॥ | पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा॥ | ||
परसा सीस सरोरुह पानी। करमुद्रिका दीन्हि जन जानी॥5॥ | परसा सीस सरोरुह पानी। करमुद्रिका दीन्हि जन जानी॥5॥ | ||
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07:45, 26 मई 2016 के समय का अवतरण
पाछें पवन तनय सिरु नावा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा॥ |
- भावार्थ
सबके पीछे पवनसुत श्री हनुमान जी ने सिर नवाया। कार्य का विचार करके प्रभु ने उन्हें अपने पास बुलाया। उन्होंने अपने करकमल से उनके सिर का स्पर्श किया तथा अपना सेवक जानकर उन्हें अपने हाथ की अँगूठी उतारकर दी॥5॥
पाछें पवन तनय सिरु नावा |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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