"निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
सपना वर्मा (वार्ता | योगदान) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " महान " to " महान् ") |
||
पंक्ति 37: | पंक्ति 37: | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ- | ;भावार्थ- | ||
तुम दोनों जाकर [[राक्षस]] होओ; तुम्हें | तुम दोनों जाकर [[राक्षस]] होओ; तुम्हें महान् ऐश्वर्य, तेज और बल की प्राप्ति हो। तुम अपनी भुजाओं के बल से जब सारे विश्व को जीत लोगे, तब [[विष्णु|भगवान विष्णु]] मनुष्य का शरीर धारण करेंगे। | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=हर गन हम न बिप्र मुनिराया |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=समर मरन हरि हाथ तुम्हारा}} | {{लेख क्रम4| पिछला=हर गन हम न बिप्र मुनिराया |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=समर मरन हरि हाथ तुम्हारा}} |
14:15, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ। बैभव बिपुल तेज बल होऊ॥ |
- भावार्थ-
तुम दोनों जाकर राक्षस होओ; तुम्हें महान् ऐश्वर्य, तेज और बल की प्राप्ति हो। तुम अपनी भुजाओं के बल से जब सारे विश्व को जीत लोगे, तब भगवान विष्णु मनुष्य का शरीर धारण करेंगे।
![]() |
निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ | ![]() |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख