"जय जय गिरिबरराज किसोरी": अवतरणों में अंतर
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जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥ | जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥ | ||
जय गजबदन षडानन माता। | जय गजबदन षडानन माता। जगत् जननि दामिनि दुति गाता॥ | ||
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13:55, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
जय जय गिरिबरराज किसोरी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥ |
- भावार्थ-
हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती! आपकी जय हो, जय हो, हे महादेव के मुखरूपी चंद्रमा की (ओर टकटकी लगाकर देखनेवाली) चकोरी! आपकी जय हो, हे हाथी के मुखवाले गणेश और छह मुखवाले स्वामिकार्तिक की माता! हे जगज्जननी! हे बिजली की-सी कांतियुक्त शरीरवाली! आपकी जय हो!
जय जय गिरिबरराज किसोरी |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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