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[[31 अक्टूबर]], सन [[1966]] में इस [[उच्च न्यायालय]] को चार न्यायाधीशों के साथ स्थापित किया गया था। उन चार मुख्य न्यायाधीशों के नाम इस प्रकार हैं- | |||
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#एच.आर. खन्ना | #एच.आर. खन्ना | ||
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==दिल्ली ज़िला न्यायालय का इतिहास== | |||
[[भारत]] के तत्कालीन [[गवर्नर-जनरल]] द्वारा [[17 सितम्बर]], [[1912]] को जारी की गई प्रोकलेमेशन संख्या 911 के अन्तर्गत [[दिल्ली]] को विशेष वैधानिक क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई। इस नोटिफिकेशन के द्वारा दिल्ली पर भारत के गवर्नर-जनरल का प्रत्यक्ष प्रभुत्व स्थापित हो गया तथा इसके प्रबंधन का उतरदायित्व भी गवर्नर-जनरल के हाथ में आ गया। इस नोटिफिकेशन के जारी होने के बाद मि. विलियम मैलकोम हैले, सी.आई.ई., आई.सी.एस. को दिल्ली का पहला आयुक्त नियुक्त किया गया। इसके साथ ही साथ दिल्ली में स्थापित क़ानूनों को लागू करने के लिए दिल्ली विधि अधिनियम, 1912 का निर्माण किया गया। [[22 फ़रवरी]], [[1915]] को [[यमुना]] के दूसरी तरफ़ का क्षेत्र<ref> जिसे आज यमुना पार के नाम से जाना जाता है।</ref> को भी दिल्ली के नए सीमा क्षेत्र के भीतर शामिल किया गया। | |||
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सन [[1913]] में दिल्ली की न्यायिक व्यवस्था का आकार इस प्रकार था- | |||
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#एक रजिस्ट्रार, लघुवाद न्यायालय | |||
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सन [[1920]] में इस संख्या में दो और उप-न्यायाधीशों की अदालतों को शामिल किया गया। न्यायाधीशों की इस निर्धारित संख्या के साथ दिल्ली के न्यायालय लगातार अपना कार्य करते रहे तथा समय-समय पर अत्यधिक कार्यभार को कम करने के लिए कुछ अस्थाई उपाय भी अपनाए गए। सन [[1948]] में किराया नियंत्रण क़ानून को लागू करने के लिए उप-न्यायधीश के एक और पद का सृजन किया गया। इसके बाद [[1953]] में उप-न्यायाधीशों के छह अन्य अस्थाई न्यायालयों की स्थापना की गई। [[1959]] में उप-न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर 21 हो गई। इस समय तक दिल्ली की न्यायिक व्यवस्था में एक ज़िला एंव सत्र न्यायाधीश तथा चार अतिरिक्त ज़िला एंव सत्र न्यायाधीश थे। दिल्ली उच्च न्यायालय की स्थापना से पूर्व सन [[1966]] तक [[दिल्ली]] के ज़िला एंव सत्र न्यायाधीश [[पंजाब उच्च न्यायालय]] के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत थे। | |||
06:46, 31 मई 2017 का अवतरण
दिल्ली उच्च न्यायालय (अंग्रेज़ी: Delhi High Court) दिल्ली राज्य का न्यायालय है। इस न्यायालय की स्थापना 31 अक्टूबर, सन 1966 में की गई थी। अन्य राज्यों की तरह दिल्ली का अपना पृथक उच्च न्यायालय है।
स्थापना
31 अक्टूबर, सन 1966 में इस उच्च न्यायालय को चार न्यायाधीशों के साथ स्थापित किया गया था। उन चार मुख्य न्यायाधीशों के नाम इस प्रकार हैं-
- के.एस. हेगड़े
- आई.डी दुआ
- एच.आर. खन्ना
- एस. के. कपूर
दिल्ली ज़िला न्यायालय का इतिहास
भारत के तत्कालीन गवर्नर-जनरल द्वारा 17 सितम्बर, 1912 को जारी की गई प्रोकलेमेशन संख्या 911 के अन्तर्गत दिल्ली को विशेष वैधानिक क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई। इस नोटिफिकेशन के द्वारा दिल्ली पर भारत के गवर्नर-जनरल का प्रत्यक्ष प्रभुत्व स्थापित हो गया तथा इसके प्रबंधन का उतरदायित्व भी गवर्नर-जनरल के हाथ में आ गया। इस नोटिफिकेशन के जारी होने के बाद मि. विलियम मैलकोम हैले, सी.आई.ई., आई.सी.एस. को दिल्ली का पहला आयुक्त नियुक्त किया गया। इसके साथ ही साथ दिल्ली में स्थापित क़ानूनों को लागू करने के लिए दिल्ली विधि अधिनियम, 1912 का निर्माण किया गया। 22 फ़रवरी, 1915 को यमुना के दूसरी तरफ़ का क्षेत्र[1] को भी दिल्ली के नए सीमा क्षेत्र के भीतर शामिल किया गया।
दीवानी न्यायालय
सन 1913 में दिल्ली की न्यायिक व्यवस्था का आकार इस प्रकार था-
- एक ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश
- एक वरिष्ठ उप-न्यायाधीश
- एक न्यायाधीश, लघुवाद न्यायालय
- एक रजिस्ट्रार, लघुवाद न्यायालय
- तीन उप-न्यायाधीश
सन 1920 में इस संख्या में दो और उप-न्यायाधीशों की अदालतों को शामिल किया गया। न्यायाधीशों की इस निर्धारित संख्या के साथ दिल्ली के न्यायालय लगातार अपना कार्य करते रहे तथा समय-समय पर अत्यधिक कार्यभार को कम करने के लिए कुछ अस्थाई उपाय भी अपनाए गए। सन 1948 में किराया नियंत्रण क़ानून को लागू करने के लिए उप-न्यायधीश के एक और पद का सृजन किया गया। इसके बाद 1953 में उप-न्यायाधीशों के छह अन्य अस्थाई न्यायालयों की स्थापना की गई। 1959 में उप-न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर 21 हो गई। इस समय तक दिल्ली की न्यायिक व्यवस्था में एक ज़िला एंव सत्र न्यायाधीश तथा चार अतिरिक्त ज़िला एंव सत्र न्यायाधीश थे। दिल्ली उच्च न्यायालय की स्थापना से पूर्व सन 1966 तक दिल्ली के ज़िला एंव सत्र न्यायाधीश पंजाब उच्च न्यायालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जिसे आज यमुना पार के नाम से जाना जाता है।