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'''अज़ान''' मस्जिद के ऊपर से खड़े होकर [[नमाज़]] की सूचना देने की क्रिया या आवाज़ को कहते हैं। इस सूचना देने वाले को 'मुअज्ज़न' कहते हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=परिशिष्ट 'घ'|url=}}</ref> | '''अज़ान''' मस्जिद के ऊपर से खड़े होकर [[नमाज़]] की सूचना देने की क्रिया या आवाज़ को कहते हैं। इस सूचना देने वाले को 'मुअज्ज़न' कहते हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=562, परिशिष्ट 'घ'|url=}}</ref> | ||
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[[मदीना]] में जब सामूहिक नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद बनाई गई तो इस बात की जरूरत महसूस हुई कि लोगों को नमाज़ के लिए किस तरह बुलाया जाए, उन्हें कैसे सूचित किया जाए कि नमाज़ का समय हो गया है। मोहम्मद साहब ने जब इस बारे में अपने साथियों सहाबा से राय मश्वरा किया तो सभी ने अलग-अलग राय दी। किसी ने कहा कि प्रार्थना के समय कोई झंडा बुलंद किया जाए। किसी ने राय दी कि किसी उच्च स्थान पर आग जला दी जाए। बिगुल बजाने और घंटियाँ बजाने का भी प्रस्ताव दिया गया, लेकिन मोहम्मद साहब को ये सभी तरीके पसंद नहीं आए। | [[मदीना]] में जब सामूहिक नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद बनाई गई तो इस बात की जरूरत महसूस हुई कि लोगों को नमाज़ के लिए किस तरह बुलाया जाए, उन्हें कैसे सूचित किया जाए कि नमाज़ का समय हो गया है। मोहम्मद साहब ने जब इस बारे में अपने साथियों सहाबा से राय मश्वरा किया तो सभी ने अलग-अलग राय दी। किसी ने कहा कि प्रार्थना के समय कोई झंडा बुलंद किया जाए। किसी ने राय दी कि किसी उच्च स्थान पर आग जला दी जाए। बिगुल बजाने और घंटियाँ बजाने का भी प्रस्ताव दिया गया, लेकिन मोहम्मद साहब को ये सभी तरीके पसंद नहीं आए। |
12:20, 8 मई 2018 के समय का अवतरण
अज़ान मस्जिद के ऊपर से खड़े होकर नमाज़ की सूचना देने की क्रिया या आवाज़ को कहते हैं। इस सूचना देने वाले को 'मुअज्ज़न' कहते हैं।[1]
इतिहास
मदीना में जब सामूहिक नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद बनाई गई तो इस बात की जरूरत महसूस हुई कि लोगों को नमाज़ के लिए किस तरह बुलाया जाए, उन्हें कैसे सूचित किया जाए कि नमाज़ का समय हो गया है। मोहम्मद साहब ने जब इस बारे में अपने साथियों सहाबा से राय मश्वरा किया तो सभी ने अलग-अलग राय दी। किसी ने कहा कि प्रार्थना के समय कोई झंडा बुलंद किया जाए। किसी ने राय दी कि किसी उच्च स्थान पर आग जला दी जाए। बिगुल बजाने और घंटियाँ बजाने का भी प्रस्ताव दिया गया, लेकिन मोहम्मद साहब को ये सभी तरीके पसंद नहीं आए।
रवायत है कि उसी रात एक अंसारी सहाबी हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद ने सपने में देखा कि किसी ने उन्हें अज़ान और इक़ामत के शब्द सिखाए हैं। उन्होंने सुबह सवेरे पैगंबर साहब की सेवा में हाज़िर होकर अपना सपना बताया तो उन्होंने इसे पसंद किया और उस सपने को अल्लाह की ओर से सच्चा सपना बताया। पैगंबर साहब ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद से कहा कि तुम हज़रत बिलाल को अज़ान इन शब्दों में पढ़ने की हिदायत कर दो, उनकी आवाज़ बुलंद है इसलिए वह हर नमाज़ के लिए इसी तरह अज़ान दिया करेंगे।[2]
इस तरह हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस्लाम की पहली अज़ान कही।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 562, परिशिष्ट 'घ' |
- ↑ अज़ान क्या है? क्या है अज़ान का इतिहास (हिंदी) webdunia। अभिगमन तिथि: 08 मई, 2018।