"ईर्यापथ आस्त्रव": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(''''ईर्यापथ आस्रव''' जैनमत में वर्णित आस्रव का एक भेद।...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{जैन | {{जैन धर्म2}} | ||
[[Category:जैन धर्म]][[Category:जैन धर्म कोश]][[Category:जैन धर्म शब्दावली]] | [[Category:जैन धर्म]][[Category:जैन धर्म कोश]][[Category:जैन धर्म शब्दावली]] | ||
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | [[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
11:41, 29 जून 2018 के समय का अवतरण
ईर्यापथ आस्रव जैनमत में वर्णित आस्रव का एक भेद। मन, वचन और काया की सहायता से आत्मप्रदेशों में गति होना जैन धर्म में 'योग' कहलाता है और इसी योग के माध्यम से आत्मा में कर्म की पुद्गलवर्गणाओं का जो संबंध होता है उसे आस्रव कहते हैं। आस्रव के दो भेद हैं : (1) सांपरायिक आस्रव तथा (2) ईर्यापथ आस्रव। सभी शरीरधारी आत्माओं को ज्ञानावरणादि कर्मों का (आयुकर्म के अतिरिक्त) हर समय बंध होता रहता है। मोह, माया, मद, क्रोध, लोभ आदि से ग्रस्त आत्माओं को सांपरायिक आस्रव (शुभाशुभ फल देनेवाले कर्मों का होना) होता है और जो आत्माएँ क्रोधाधि रहित हैं उन्हें ईयापथ आस्रव (फल न देनेवाले कर्मों का होना) होता है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 37 |