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'''आचारांग सूत्र''' जैन धार्मिक ग्रंथ है। इसमें जैन भिक्षुओं द्वारा पालन किये जाने वाले आचरण व नियमों का उल्लेख है।<br />
'''आचारांग सूत्र''' [[जैन धर्म|जैन]] धार्मिक ग्रंथ है। इसमें जैन भिक्षुओं द्वारा पालन किये जाने वाले आचरण व नियमों का उल्लेख है।<br />
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*इस सूत्र में कहा गया है कि- पृथ्वीकायिक जीवों को उतना ही कष्ट होता है, जितना कि एक जन्मान्ध, गूंगे, बहरे, विकलांग व्यक्ति के अंगों को काटने से होता है।
*इस सूत्र में कहा गया है कि- पृथ्वीकायिक जीवों को उतना ही कष्ट होता है, जितना कि एक जन्मान्ध, गूंगे, बहरे, विकलांग व्यक्ति के [[अंग (संदर्भ)|अंगों]] को काटने से होता है।
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05:59, 14 मई 2020 के समय का अवतरण

आचारांग सूत्र जैन धार्मिक ग्रंथ है। इसमें जैन भिक्षुओं द्वारा पालन किये जाने वाले आचरण व नियमों का उल्लेख है।

  • इस सूत्र में कहा गया है कि- पृथ्वीकायिक जीवों को उतना ही कष्ट होता है, जितना कि एक जन्मान्ध, गूंगे, बहरे, विकलांग व्यक्ति के अंगों को काटने से होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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