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'''सिंधुताई सपकाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sindhutai Sapkal'', जन्म- [[14 नवम्बर]], [[1948]]; मृत्यु- [[4 जनवरी]], [[2022]]) अनाथ बच्चों के लिए कार्य करने वाली [[मराठी]] सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होने अपने जीवन में अनेक समस्याओं के बावजूद अनाथ बच्चों को सम्भालने का कार्य किया। बेघर बच्चों की देखरेख करने वाली सिंधुताई के लिए कहा जाता है कि उनके 1500 बच्चे, 150 से ज्यादा बहुएं और 300 से ज्यादा दामाद हैं। सिंधुताई ने अपनी जिंदगी अनाथ बच्चों की सेवा में गुजार दी। उनका पेट भरने के लिए कभी ट्रेनों में भीख तक मांगी। [[पद्म श्री]] ([[2021]]) मिलने पर सिंधुताई ने कहा था कि 'यह पुरस्कार मेरे सहयोगियों और मेरे बच्चों का है।' उन्होंने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की थी। | {{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व | ||
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|चित्र का नाम=सिंधुताई सपकाल | |||
|पूरा नाम=सिंधुताई सपकाल | |||
|अन्य नाम=ताई (मां) | |||
|जन्म=[[14 नवम्बर]], [[1948]] | |||
|जन्म भूमि=ज़िला वर्धा, [[महाराष्ट्र]] | |||
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|कर्म-क्षेत्र=समाज सेवा | |||
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|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्म श्री]], [[2021]] | |||
|प्रसिद्धि=अनाथ बच्चों की पालनकर्ता व सामाजिक कार्यकर्ता<br /> | |||
महाराष्ट्र की मदर टेरेसा | |||
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|नागरिकता=भारतीय | |||
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}}'''सिंधुताई सपकाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sindhutai Sapkal'', जन्म- [[14 नवम्बर]], [[1948]]; मृत्यु- [[4 जनवरी]], [[2022]]) अनाथ बच्चों के लिए कार्य करने वाली [[मराठी]] सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होने अपने जीवन में अनेक समस्याओं के बावजूद अनाथ बच्चों को सम्भालने का कार्य किया। बेघर बच्चों की देखरेख करने वाली सिंधुताई के लिए कहा जाता है कि उनके 1500 बच्चे, 150 से ज्यादा बहुएं और 300 से ज्यादा दामाद हैं। सिंधुताई ने अपनी जिंदगी अनाथ बच्चों की सेवा में गुजार दी। उनका पेट भरने के लिए कभी ट्रेनों में भीख तक मांगी। [[पद्म श्री]] ([[2021]]) मिलने पर सिंधुताई ने कहा था कि 'यह पुरस्कार मेरे सहयोगियों और मेरे बच्चों का है।' उन्होंने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की थी। | |||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
गरीबी में पली-बढ़ीं सिंधुताई सपकाल को बाल्यावस्था में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। 14 नवंबर, 1948 को [[महाराष्ट्र]] के वर्धा जिले में जन्मी सिंधुताई सपकाल को चौथी कक्षा पास करने के बाद स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। 12 साल की छोटी सी उम्र में ही उसकी शादी 32 साल के एक शख्स से कर दी गई। तीन बच्चों को जन्म देने के बाद, उनके पति ने गर्भवती होने पर भी उन्हें छोड़ दिया। उनकी अपनी माँ और जिस गाँव में वह पली-बढ़ी थीं, उसने मदद करने से इनकार कर दिया, जिससे उन्हें अपनी बेटियों की परवरिश करने के लिए भीख माँगनी पड़ी।<ref>{{cite web |url= https://navbharattimes.indiatimes.com/state/maharashtra/nagpur/renowned-social-worker-sindhutai-sapkal-orphan-childrens-mother-died-following-a-heart-attack-in-pune/articleshow/88697782.cms|title=अनाथ बच्चों की मां' पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का निधन|accessmonthday=05 जनवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=navbharattimes.indiatimes.com |language=हिंदी}}</ref> | गरीबी में पली-बढ़ीं सिंधुताई सपकाल को बाल्यावस्था में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। 14 नवंबर, 1948 को [[महाराष्ट्र]] के वर्धा जिले में जन्मी सिंधुताई सपकाल को चौथी कक्षा पास करने के बाद स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। 12 साल की छोटी सी उम्र में ही उसकी शादी 32 साल के एक शख्स से कर दी गई। तीन बच्चों को जन्म देने के बाद, उनके पति ने गर्भवती होने पर भी उन्हें छोड़ दिया। उनकी अपनी माँ और जिस गाँव में वह पली-बढ़ी थीं, उसने मदद करने से इनकार कर दिया, जिससे उन्हें अपनी बेटियों की परवरिश करने के लिए भीख माँगनी पड़ी।<ref>{{cite web |url= https://navbharattimes.indiatimes.com/state/maharashtra/nagpur/renowned-social-worker-sindhutai-sapkal-orphan-childrens-mother-died-following-a-heart-attack-in-pune/articleshow/88697782.cms|title=अनाथ बच्चों की मां' पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का निधन|accessmonthday=05 जनवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=navbharattimes.indiatimes.com |language=हिंदी}}</ref> | ||
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ट्रेन में भीख मांगने के बाद सिंधुताई सपकाल स्टेशन पर ही रहती थीं। एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक बच्चा मिला। यहीं से उन्हें बेसहारा बच्चों की सहायता करने की प्रेरणा मिली। इसके बाद शुरू हुआ एक अंतहीन सिलसिला, जो आज महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। इन संस्थाओं में 1500 से ज्यादा बेसहारा बच्चे एक [[परिवार]] की तरह रहते हैं। सिंधुताई की संस्था में 'अनाथ' शब्द का इस्तेमाल वर्जित है। बच्चे उन्हें ताई (मां) कहकर बुलाते थे। इन आश्रमों में विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है। वे खाना बनाने से लेकर बच्चों की देखरेख का काम करती हैं।<ref>{{cite web |url=https://www.bhaskar.com/local/maharashtra/news/padmashree-sindhutai-sapkal-died-at-the-age-of-73-in-pune-she-had-1500-children-150-daughters-in-law-and-more-than-300-sons-in-law-129270797.html?_branch_match_id=991975326288940495&utm_campaign=129270797&utm_medium=sharing&_branch_referrer=H4sIAAAAAAAAA8soKSkottLXT0nMzMvM1k3Sy8zTz60w9TQwqzCqyE0CAAXn9iMfAAAA |title=नहीं रहीं महाराष्ट्र की मदर टेरेसा|accessmonthday=05 जनवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bhaskar.com |language=हिंदी}}</ref> | ट्रेन में भीख मांगने के बाद सिंधुताई सपकाल स्टेशन पर ही रहती थीं। एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक बच्चा मिला। यहीं से उन्हें बेसहारा बच्चों की सहायता करने की प्रेरणा मिली। इसके बाद शुरू हुआ एक अंतहीन सिलसिला, जो आज महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। इन संस्थाओं में 1500 से ज्यादा बेसहारा बच्चे एक [[परिवार]] की तरह रहते हैं। सिंधुताई की संस्था में 'अनाथ' शब्द का इस्तेमाल वर्जित है। बच्चे उन्हें ताई (मां) कहकर बुलाते थे। इन आश्रमों में विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है। वे खाना बनाने से लेकर बच्चों की देखरेख का काम करती हैं।<ref>{{cite web |url=https://www.bhaskar.com/local/maharashtra/news/padmashree-sindhutai-sapkal-died-at-the-age-of-73-in-pune-she-had-1500-children-150-daughters-in-law-and-more-than-300-sons-in-law-129270797.html?_branch_match_id=991975326288940495&utm_campaign=129270797&utm_medium=sharing&_branch_referrer=H4sIAAAAAAAAA8soKSkottLXT0nMzMvM1k3Sy8zTz60w9TQwqzCqyE0CAAXn9iMfAAAA |title=नहीं रहीं महाराष्ट्र की मदर टेरेसा|accessmonthday=05 जनवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bhaskar.com |language=हिंदी}}</ref> | ||
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पद्म श्री सम्मानित सिंधुताई को अब तक 700 से ज्यादा सम्मान से नवाजा जा चुका है। उन्हें अब तक मिले सम्मान से जो भी रकम मिली, वह भी उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण में खर्च कर दी। सिंधुताई को डीवाई पाटिल इंस्टिट्यूट की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई है। सिंधुताई के जीवन पर बनी एक मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकाल' साल [[2010]] में रिलीज हुई थी और इसे 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था। | पद्म श्री सम्मानित सिंधुताई को अब तक 700 से ज्यादा सम्मान से नवाजा जा चुका है। उन्हें अब तक मिले सम्मान से जो भी रकम मिली, वह भी उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण में खर्च कर दी। सिंधुताई को डीवाई पाटिल इंस्टिट्यूट की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई है। सिंधुताई के जीवन पर बनी एक मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकाल' साल [[2010]] में रिलीज हुई थी और इसे 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था। | ||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== |
11:23, 5 जनवरी 2022 का अवतरण
सिंधुताई सपकाल
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पूरा नाम | सिंधुताई सपकाल |
अन्य नाम | ताई (मां) |
जन्म | 14 नवम्बर, 1948 |
जन्म भूमि | ज़िला वर्धा, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 4 जनवरी, 2022 |
मृत्यु स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | श्रीहरि सपकाल |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | समाज सेवा |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म श्री, 2021 |
प्रसिद्धि | अनाथ बच्चों की पालनकर्ता व सामाजिक कार्यकर्ता महाराष्ट्र की मदर टेरेसा |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सिंधुताई के जीवन पर बनी एक मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकाल' साल 2010 में रिलीज हुई थी और इसे 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था। |
सिंधुताई सपकाल (अंग्रेज़ी: Sindhutai Sapkal, जन्म- 14 नवम्बर, 1948; मृत्यु- 4 जनवरी, 2022) अनाथ बच्चों के लिए कार्य करने वाली मराठी सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होने अपने जीवन में अनेक समस्याओं के बावजूद अनाथ बच्चों को सम्भालने का कार्य किया। बेघर बच्चों की देखरेख करने वाली सिंधुताई के लिए कहा जाता है कि उनके 1500 बच्चे, 150 से ज्यादा बहुएं और 300 से ज्यादा दामाद हैं। सिंधुताई ने अपनी जिंदगी अनाथ बच्चों की सेवा में गुजार दी। उनका पेट भरने के लिए कभी ट्रेनों में भीख तक मांगी। पद्म श्री (2021) मिलने पर सिंधुताई ने कहा था कि 'यह पुरस्कार मेरे सहयोगियों और मेरे बच्चों का है।' उन्होंने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की थी।
परिचय
गरीबी में पली-बढ़ीं सिंधुताई सपकाल को बाल्यावस्था में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। 14 नवंबर, 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में जन्मी सिंधुताई सपकाल को चौथी कक्षा पास करने के बाद स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। 12 साल की छोटी सी उम्र में ही उसकी शादी 32 साल के एक शख्स से कर दी गई। तीन बच्चों को जन्म देने के बाद, उनके पति ने गर्भवती होने पर भी उन्हें छोड़ दिया। उनकी अपनी माँ और जिस गाँव में वह पली-बढ़ी थीं, उसने मदद करने से इनकार कर दिया, जिससे उन्हें अपनी बेटियों की परवरिश करने के लिए भीख माँगनी पड़ी।[1]
बेसहारा बच्चों की सहायक
ट्रेन में भीख मांगने के बाद सिंधुताई सपकाल स्टेशन पर ही रहती थीं। एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक बच्चा मिला। यहीं से उन्हें बेसहारा बच्चों की सहायता करने की प्रेरणा मिली। इसके बाद शुरू हुआ एक अंतहीन सिलसिला, जो आज महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। इन संस्थाओं में 1500 से ज्यादा बेसहारा बच्चे एक परिवार की तरह रहते हैं। सिंधुताई की संस्था में 'अनाथ' शब्द का इस्तेमाल वर्जित है। बच्चे उन्हें ताई (मां) कहकर बुलाते थे। इन आश्रमों में विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है। वे खाना बनाने से लेकर बच्चों की देखरेख का काम करती हैं।[2]
सम्मान व पुरस्कार
पद्म श्री सम्मानित सिंधुताई को अब तक 700 से ज्यादा सम्मान से नवाजा जा चुका है। उन्हें अब तक मिले सम्मान से जो भी रकम मिली, वह भी उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण में खर्च कर दी। सिंधुताई को डीवाई पाटिल इंस्टिट्यूट की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई है। सिंधुताई के जीवन पर बनी एक मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकाल' साल 2010 में रिलीज हुई थी और इसे 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था।
मृत्यु
महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के रूप में प्रसिद्ध सिंधुताई सपकाल का 4 जनवरी, 2022 को पुणे में निधन हुआ। 73 वर्षीय सिंधुताई सेप्टीसीमिया से पीड़ित थीं और पिछले डेढ़ महीने उनका इलाज पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल में जारी था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अनाथ बच्चों की मां' पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का निधन (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 05 जनवरी, 2022।
- ↑ नहीं रहीं महाराष्ट्र की मदर टेरेसा (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 05 जनवरी, 2022।
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