"जैन मोद क्रिया": अवतरणों में अंतर
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*पश्चात गर्भिणी को सरस भोजन करना चाहिए तथा आमन्त्रित सामाजिक बन्धुओं का यथायोग्य आदर-सत्कार करें। | *पश्चात गर्भिणी को सरस भोजन करना चाहिए तथा आमन्त्रित सामाजिक बन्धुओं का यथायोग्य आदर-सत्कार करें। | ||
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12:21, 10 जनवरी 2011 का अवतरण
- यह संस्कार जैन धर्म के अंतर्गत आता है।
- मोद प्रमोद या हर्ष-ये एक ही अर्थ वाले शब्द हैं।
- इस संस्कार में हर्षवर्धक ही सब कार्य किये जाते हैं।
- अत: इसको 'मोद' कहते हैं।
- गर्भ से नौवे माह में यह मोद क्रिया की जाती है।
- प्रथम संस्कार की तरह सब क्रिया करते हुए सिद्धयन्त्र पूजन और हवन करना चाहिए।
- अनन्तर प्रतिष्ठा-आचार्य गर्भिणी के मस्तक पर णमोकार मन्त्र पढ़ते हुए ओं श्री आदि बीजाक्षर लिखना चाहिए।
- पीले चावलों (पुष्पों) की वर्षा मन्त्रपूर्वक करनी चाहिए। वस्त्र-आभूषण धारण कराने के साथ हस्त में कंकण सूत्र का बन्धन करना चाहिए।
- शान्ति-विसर्जन पाठ पढ़ते हुए पुष्पों की वर्षा करना ज़रूरी है।
- पश्चात गर्भिणी को सरस भोजन करना चाहिए तथा आमन्त्रित सामाजिक बन्धुओं का यथायोग्य आदर-सत्कार करें।
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