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'''गोपाल नायक / Gopal Nayak'''<br />
==गोपाल नायक / Gopal Nayak==
*गोपाल नायक दक्षिण के निवासी थे और देवगिरि के राजा रामदेव के राज्य के गायक थे। वे बड़े सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। आवश्यकता से अधिक सरल और सीधे होने के कारण [[अमीर ख़ुसरो]] ने छल-कपट से उन्हें संगीत प्रतियोगिता में हरा दिया।  
*गोपाल नायक दक्षिण के निवासी थे और देवगिरि के राजा रामदेव के राज्य के गायक थे। वे बड़े सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। आवश्यकता से अधिक सरल और सीधे होने के कारण [[अमीर ख़ुसरो]] ने छल-कपट से उन्हें संगीत प्रतियोगिता में हरा दिया।  
*सन् 1297 में अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि राज्य पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। खिलजी ने गोपाल नायक को अपना गायन सुनाने को कहा। गोपाल 6 दिनों तक अपना गायन सुनाते रहे।  
*सन् 1297 में अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि राज्य पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। खिलजी ने गोपाल नायक को अपना गायन सुनाने को कहा। गोपाल 6 दिनों तक अपना गायन सुनाते रहे।  
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[[Category:शास्त्रीय गायक कलाकार]]
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गोपाल नायक / Gopal Nayak

  • गोपाल नायक दक्षिण के निवासी थे और देवगिरि के राजा रामदेव के राज्य के गायक थे। वे बड़े सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। आवश्यकता से अधिक सरल और सीधे होने के कारण अमीर ख़ुसरो ने छल-कपट से उन्हें संगीत प्रतियोगिता में हरा दिया।
  • सन् 1297 में अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि राज्य पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। खिलजी ने गोपाल नायक को अपना गायन सुनाने को कहा। गोपाल 6 दिनों तक अपना गायन सुनाते रहे।
  • अमीर खुसरो अलाउद्दीन की आज्ञा लेकर सिंहासन के नीचे बैठा हुआ उसका गायन बराबर सुनता रहा। इसके पश्चात जब खुसरो सामने उपस्थित हुआ तो गोपाल ने उसे संगीत प्रतियोगिता के लिये निमन्त्रित किया। खुसरो झट तैयार हो गया और गोपाल से गायन प्रारम्भ करने को कहा। गोपाल गाने लगे। बीच ही में खुसरो ने उसे रोककर कहा कि यह मौलिक राग नहीं है, अत: गोपाल ने कहा कि अच्छा तुम्हीं मौलिक राग सुनाओ। खुसरो ने उसी समय उससे मिलते-जुलते एक फ़ारसी राग की रचना कर गाना शुरू किया, अत: गोपाल नायक को विवश होकर हार माननी पड़ी।
  • अमीर खुसरो गोपाल नायक की वास्तविक प्रतिभा को अच्छी प्रकार समझता था, अत: उसे अपने साथ दिल्ली ले गया। गोपाल नायक अमीर खुसरो के साथ दिल्ली में मृत्यु पर्यन्त रहा।
  • गोपाल जाति के ब्राह्मण थे, और छन्द-प्रबन्ध गाते थे। उनके समय में छन्द-प्रबन्ध प्रचार में था, ध्रुपद नहीं। ऐसा मालूम पड़ता है कि गोपाल नाम के दो संगीतज्ञ हो चुके हैं। दूसरे गोपाल सोलहवीं शताब्दी में तानसेन और बैजूबावरा के समकालीन थे।