"रामचंद्र जी की आरती": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Ramayana.jpg|श्री [[राम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]]<br /> Shri Ram, Laxman And Sita|thumb|200px]]
[[चित्र:Ramayana.jpg|श्री [[राम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]]<br /> Shri Ram, Laxman And Sita|thumb|200px]]
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।<br />
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥<br />
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥
पहली आरती पुष्पन की माला।<br />
पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥<br />
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥
दूसरी आरती देवकी नन्दन।<br />
दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥<br />
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।<br />
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥<br />
रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥
चौथी आरती चहुं युग पूजा।<br />
चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥<br />
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥
पांचवीं आरती राम को भावे।<br />
पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥<br />
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥</poem></span></blockquote>
 
==श्री राम स्तुति==
==श्री राम स्तुति==
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् |<br />
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् |
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम ||<br />
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम ||


कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम |<br />
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम |
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम ||<br />
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम ||


भजु दीन बंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम |<br />
भजु दीन बंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम |
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ||<br />
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ||


सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभुषणं |<br />
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभुषणं |
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - धुषणं ||<br />
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - धुषणं ||
{{राम}}
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम |<br />
मम हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम ||<br />


मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों |<br />
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम |
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो ||<br />
मम हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम ||


एही भाँती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली |<br />
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों |
तुलसी भवानी पूजी पूनी पूनी मुदित मन मन्दिर चली ||<br />
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो ||


जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाए कहीं | <br />
एही भाँती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली |
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फर्कन लगे || <br />
तुलसी भवानी पूजी पूनी पूनी मुदित मन मन्दिर चली ||
।। सोरठा ।।<br />
 
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।<br />
जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाए कहीं |  
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे ।।<br />
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फर्कन लगे ||  
 
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे ।।</poem></span></blockquote>


==श्री रामाष्टकः==
==श्री रामाष्टकः==
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव ।<br />
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव ।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा ।।<br />
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा ।।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते ।<br />
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते ।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम् ।।<br />
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम् ।।
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम् ।<br />
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम् ।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम् ।।<br />
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम् ।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम् ।<br />
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम् ।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम् ।।<br />
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम् ।।</poem></span></blockquote>
 
==आरती श्री रामचन्द्र जी की==
==आरती श्री रामचन्द्र जी की==
जगमग जगमग जोत जली है । राम आरती होन लगी है ।।<br />
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>जगमग जगमग जोत जली है । राम आरती होन लगी है ।।
भक्ति का दीपक प्रेम की बाती । आरति संत करें दिन राती ।।<br />
भक्ति का दीपक प्रेम की बाती । आरति संत करें दिन राती ।।
आनन्द की सरिता उभरी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।<br />
आनन्द की सरिता उभरी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।
कनक सिंघासन सिया समेता । बैठहिं राम होइ चित चेता ।।<br />
कनक सिंघासन सिया समेता । बैठहिं राम होइ चित चेता ।।
वाम भाग में जनक लली है । जगमग जगमग जोत जली है ।।<br />
वाम भाग में जनक लली है । जगमग जगमग जोत जली है ।।
आरति हनुमत के मन भावै । राम कथा नित शंकर गावै ।।<br />
आरति हनुमत के मन भावै । राम कथा नित शंकर गावै ।।
सन्तों की ये भीड़ लगी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।<br />
सन्तों की ये भीड़ लगी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।</poem></span></blockquote>
 


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==

16:47, 3 जनवरी 2011 का अवतरण

श्री राम, लक्ष्मण और सीता
Shri Ram, Laxman And Sita

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥
पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥
दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥
चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥
पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥

श्री राम स्तुति

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् |
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम ||

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम |
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम ||

भजु दीन बंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम |
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ||

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभुषणं |
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - धुषणं ||

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम |
मम हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम ||

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों |
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो ||

एही भाँती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली |
तुलसी भवानी पूजी पूनी पूनी मुदित मन मन्दिर चली ||

जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाए कहीं |
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फर्कन लगे ||

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे ।।

श्री रामाष्टकः

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव ।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा ।।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते ।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम् ।।
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम् ।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम् ।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम् ।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम् ।।

आरती श्री रामचन्द्र जी की

जगमग जगमग जोत जली है । राम आरती होन लगी है ।।
भक्ति का दीपक प्रेम की बाती । आरति संत करें दिन राती ।।
आनन्द की सरिता उभरी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।
कनक सिंघासन सिया समेता । बैठहिं राम होइ चित चेता ।।
वाम भाग में जनक लली है । जगमग जगमग जोत जली है ।।
आरति हनुमत के मन भावै । राम कथा नित शंकर गावै ।।
सन्तों की ये भीड़ लगी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।


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