"वृहस्पतिदेव जी की आरती": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥</poem></span></blockquote> | जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥</poem></span></blockquote> | ||
==संबंधित लेख== | |||
{{आरती स्तुति स्त्रोत}} | |||
[[Category:आरती_स्तुति_स्त्रोत]] | |||
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]] | |||
}} | |||
[[Category: | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
06:36, 4 जनवरी 2011 का अवतरण
जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥