"ताराबाई": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण")
छो (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति")
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
====ताराबाई के समर्थक====
====ताराबाई के समर्थक====
ताराबाई के महत्त्वपूर्ण समर्थकों में परशुराम, [[त्रियम्बक]], [[धनाजी जादव]], [[शंकरजी नारायण]] जैसे योग्य मराठा सरदार थे। अपनी योग्यता, अदम्य उत्साह, नेतृत्व क्षमता एवं पराक्रम के कारण ही ताराबाई ने मराठा इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया। 1700 से 1707 ई. तक के संकटकाल में ताराबाई ने मराठा राज्य की एकसूत्रता और अखण्डता बनाये रखकर उसकी अमूल्य सेवा की। 1689 से 1707 ई. तक प्राय: 20 वर्षों तक मराठों का यह स्वतंत्रता संग्राम तब तक चलता रहा। बाद में उसके पुत्र शिवाजी तृतीय को राजा शाहू (शिवाजी द्वितीय) ने गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।  
ताराबाई के महत्त्वपूर्ण समर्थकों में परशुराम, [[त्रियम्बक]], [[धनाजी जादव]], [[शंकरजी नारायण]] जैसे योग्य मराठा सरदार थे। अपनी योग्यता, अदम्य उत्साह, नेतृत्व क्षमता एवं पराक्रम के कारण ही ताराबाई ने मराठा इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया। 1700 से 1707 ई. तक के संकटकाल में ताराबाई ने मराठा राज्य की एकसूत्रता और अखण्डता बनाये रखकर उसकी अमूल्य सेवा की। 1689 से 1707 ई. तक प्राय: 20 वर्षों तक मराठों का यह स्वतंत्रता संग्राम तब तक चलता रहा। बाद में उसके पुत्र शिवाजी तृतीय को राजा शाहू (शिवाजी द्वितीय) ने गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।  
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=
|आधार=

12:27, 10 जनवरी 2011 का अवतरण

ताराबाई, शिवाजी प्रथम के द्वितीय पुत्र राजाराम की पत्नी थी। राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी तृतीय का राज्याभिषेक करवाकर मराठा साम्राज्य की वास्तविक संरक्षिका बन गई। उसने मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब से अनवरत युद्ध किया।

वीरांगना नारी

ताराबाई के शासन के दौरान मुग़लों (औरंगज़ेब) ने 1700 ई. में पन्हाला, 1702 ई. में विशालगढ़ एवं 1703 ई. में सिंहगढ़ पर अधिकार कर लिया। मराठा कुल की वीरांगना ताराबाई विषम परिस्थितियों में किंचित मात्र भी विचलित हुए बिना मराठा सेना में जोश का संचार करती हुई मुग़ल सेना से जीवन के अन्तिम समय तक संघर्ष करती रही। उसके नेतृत्व में मराठा सैनिकों ने 1703 ई. में बरार, 1704 ई. में सतारा एवं 1706 ई. में गुजरात पर आक्रमण किया। इसमें उसे अभूतपूर्व सफलता और धन तथा सम्मान प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त इन सैनिकों ने बुरहानपुर, सूरत, भड़ौंच आदि नगरों को भी लूटा। इस तरह एक बार फिर मराठे अपने सम्पूर्ण क्षेत्र को विजित करने में सफल रहे। ताराबाई ने दक्षिणी कर्नाटक में अपना राज्य स्थापित किया।

नीति कुशल महिला

ताराबाई एक अद्धितीय उत्साह वाली महिला थी। ख़ाफ़ी ख़ाँ जैसे कटु आलोचक तक ने स्वीकार किया है कि वह, “चतुर तथा बुद्धिमती स्त्री थी तथा दीवानी एवं फ़ौजी मामलों की अपनी जानकारी के लिए अपने पति के जीवन काल में ही ख्याति प्राप्त कर चुकी थी”। राज्य के शासन को संगठित कर तथा गद्दी पर उत्तराधिकार के लिए प्रतिद्वन्द्वी दलों के झगड़ों को दबाकर उसने, जैसा ख़ाफ़ी ख़ाँ बतलाता है, “शाही राज्य के रौंदने के लिए मज़बूत उपाय किये तथा सिरोंज तक दक्कन के छ: सूबों, मंदसोर एवं मालवा के सूबों के लूटने के लिए सेनाएँ भेजीं”। मराठे पहले ही 1699 ई. में मालवा पर आक्रमण कर चुके थे। 1703 ई. में उनका एक दल बरार (एक सदी तक एक मुग़ल सूबा) में घुस पड़ा। 1706 ई. में उन्होंने गुजरात पर आक्रमण किया तथा बड़ौदा को लूटा। अप्रैल अथवा मई, 1706 ई. में एक विशाल मराठा सेना अहमदनगर में बादशाह की छावनी पर जा धमकी। एक लम्बे तथा कठिन संघर्ष के बाद उसे वहाँ से पीछे हटा दिया गया। आक्रमणों के कारण मराठों के साधन बहुत बढ़ गए। इस प्रकार अब तक वे व्यावहारिक रूप में दक्कन की तथा मध्य भारत के कुछ भागों की भी परिस्थिति के स्वामी बन चुके थे।

मराठों का वर्चस्व

जैसा कि भीमसेन नामक एक प्रत्यक्ष साक्षी ने लिखा, “मराठे सम्पूर्ण राज्य पर छा गए तथा उन्होंने सड़कों को बन्द कर दिया। लूटपाट के द्धारा वे दरिद्रता से बच गए तथा बहुत धनी बन गए”। उनकी सैनिक कार्यप्रणाली में भी परिवर्तन हुआ, जिसका तत्कालिक परिणाम उनके लिए अच्छा हुआ। जैसा कि मनूची ने 1704 ई. में लिखा, “ये मराठा नेता तथा इनकी फ़ौजें इन दिनों बड़े विश्वास के साथ चलती हैं, क्योंकि उन्होंने मुग़ल सेनापतियों को दबाकर भयभीत कर दिया है। वर्तमान समय में उनके पास तोपें, फ़ौजी बन्दूकें, धनुष बाण तथा उनके सभी सामान एवं ख़ेमों के लिए हाथी और ऊँट हैं।...संक्षेप में वे सुसज्जित है तथा ठीक मुग़ल सेनाओं के समान चलते हैं।....केवल कुछ ही वर्ष पहले वे इस प्रकार से नहीं चलते थे। इन दिनों उनके अस्त्रों में केवल बल्लम तथा लम्बी तलवारें थीं, जो दो इंच चौड़ी थीं। इस प्रकार सशस्त्र होकर वे सरहदों पर लूट के लिए घूमते रहते थे तथा इधर-उधर जो पा सकते थे, उठा लेते थे; फिर वे घर चल देते थे। परन्तु वर्तमान समय में वे विजेताओं की तरह घमते हैं तथा मुग़ल सेनाओं से कोई डर नहीं दिखलाते”। इस प्रकार मराठों के पीस डालने के औरंगज़ेब के सभी प्रयत्न बिल्कुल निरर्थक सिद्ध हुए। मराठा राष्ट्रीयता विजयिनी शक्ति के रूप में उसके बाद भी जीवित रही, जिसका प्रतिरोध करने में उसके दुर्बल उत्तराधिकारी असफल रहे।

विकट स्थिति

मराठों की बढ़ती हुई शक्ति रूपी विपत्ति का सामना करते हुए मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने 2 मार्च, 1707 ई. को अहमदनगर में दम तोड़ दिया। 1707 ई. में ताराबाई के पति के अग्रज शम्भूजी के पुत्र और उत्तराधिकारी शाहू अथवा शिवाजी द्वितीय को मुग़लों ने जब बंदीगृह से मुक्त कर दिया तो ताराबाई बड़ी विकट स्थिति में पड़ गई। शाहू ने महाराष्ट्र आकर अपनी पैतृक सम्पत्ति का अधिकार माँगा। उसको शीघ्र पेशवा बालाजी विश्वनाथ के नेतृत्व में बहुत से समर्थक भी मिल गए। ताराबाई का पक्ष कमज़ोर पड़ गया और उसे शाहू को मराठा साम्राज्य का छत्रपति स्वीकार कर लेना पड़ा। फिर भी वह अपने पुत्र शिवाजी तृतीय को सतारा में राज पद पर बनाये रखने में सफल रही।

ताराबाई के समर्थक

ताराबाई के महत्त्वपूर्ण समर्थकों में परशुराम, त्रियम्बक, धनाजी जादव, शंकरजी नारायण जैसे योग्य मराठा सरदार थे। अपनी योग्यता, अदम्य उत्साह, नेतृत्व क्षमता एवं पराक्रम के कारण ही ताराबाई ने मराठा इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया। 1700 से 1707 ई. तक के संकटकाल में ताराबाई ने मराठा राज्य की एकसूत्रता और अखण्डता बनाये रखकर उसकी अमूल्य सेवा की। 1689 से 1707 ई. तक प्राय: 20 वर्षों तक मराठों का यह स्वतंत्रता संग्राम तब तक चलता रहा। बाद में उसके पुत्र शिवाजी तृतीय को राजा शाहू (शिवाजी द्वितीय) ने गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • (पुस्तक 'यूनीक सामान्य अध्ययन') भाग-1, पृष्ठ संख्या-208
  • (पुस्तक 'भारत का बृहद इतिहास') पृष्ठ संख्या-238

संबंधित लेख