"ज्ञानपीठ पुरस्कार": अवतरणों में अंतर
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|१९६५ || [[जी शंकर कुरुप]] || | |१९६५ || [[जी शंकर कुरुप]] || [[ओटक्कुष़ल]] (वंशी) ||[[मलयालम]] | ||
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|१९६६ ||[[ताराशंकर बंधोपाध्याय]] || | |१९६६ ||[[ताराशंकर बंधोपाध्याय]] || [[गणदेवता]] || [[बांग्ला]] | ||
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|१९६७ ||[[के.वी. पुत्तपा]] || | |१९६७ ||[[के.वी. पुत्तपा]] || [[श्री रामायण दर्शणम]] || [[कन्नड़]] | ||
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|१९६७ || [[उमाशंकर जोशी]] || | |१९६७ || [[उमाशंकर जोशी]] || [[निशिता]] || [[गुजराती]] | ||
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|१९६८ || [[सुमित्रानंदन पंत]] || | |१९६८ || [[सुमित्रानंदन पंत]] || [[चिदंबरा]] || [[हिन्दी]] | ||
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|१९६९ || [[फ़िराक गोरखपुरी]] || | |१९६९ || [[फ़िराक गोरखपुरी]] || [[गुल-ए-नगमा]] || [[उर्दू]] | ||
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|१९७० || [[विश्वनाथ सत्यनारायण]] || | |१९७० || [[विश्वनाथ सत्यनारायण]] || [[रामायण कल्पवरिक्षमु]] || [[तेलुगु]] | ||
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|१९७१ || [[विष्णु डे]] || | |१९७१ || [[विष्णु डे]] || [[स्मृति शत्तो भविष्यत]] || [[बांग्ला]] | ||
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|१९७२ || [[रामधारी सिंह दिनकर]] || | |१९७२ || [[रामधारी सिंह दिनकर]] || [[उर्वशी खण्ड काव्य|उर्वशी]] || [[हिन्दी]] | ||
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|१९७३ || [[दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे]] || | |१९७३ || [[दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे]] || [[नकुतंति]] || [[कन्नड़]] | ||
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|१९७३ || [[गोपीनाथ मोहंती|गोपीनाथ महान्ती]] || | |१९७३ || [[गोपीनाथ मोहंती|गोपीनाथ महान्ती]] || [[माटीमटाल]] || [[उड़िया]] | ||
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|१९७४ || [[विष्णु सखाराम खांडेकर]] || | |१९७४ || [[विष्णु सखाराम खांडेकर]] || [[ययाति उपन्यास|ययाति]] || [[मराठी]] | ||
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|१९७५ || [[पी.वी. अकिलानंदम]] || | |१९७५ || [[पी.वी. अकिलानंदम]] || [[चित्रपवई]] || [[तमिल]] | ||
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|१९७६ || [[आशापूर्णा देवी]] || | |१९७६ || [[आशापूर्णा देवी]] || [[प्रथम प्रतिश्रुति]] || [[बांग्ला]] | ||
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|१९७७ || [[के. शिवराम कारंत]] || | |१९७७ || [[के. शिवराम कारंत]] || [[मुक्कजिया कनसुगालु]] || [[कन्नड़]] | ||
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|१९७८ || [[अज्ञेय]] || | |१९७८ || [[अज्ञेय]] || [[कितनी नावों में कितनी बार]] || [[हिन्दी]] | ||
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|१९७९ || [[बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य]] || | |१९७९ || [[बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य]] || [[मृत्युंजय]] || [[असमिया]] | ||
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|१९८० || [[एस.के. पोत्ताकट]] || | |१९८० || [[एस.के. पोत्ताकट]] || [[ओरु देसात्तिन्ते कथा]] || [[मलयालम]] | ||
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|१९८१ || [[अमृता प्रीतम]] || | |१९८१ || [[अमृता प्रीतम]] || [[कागज ते कैनवास]] || [[पंजाबी]] | ||
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|१९८२ || [[महादेवी वर्मा]] || | |१९८२ || [[महादेवी वर्मा]] || [[यामा]] || [[हिन्दी]] | ||
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|१९८३ || [[मस्ती वेंकटेश अयंगार]] || || [[कन्नड़]] | |१९८३ || [[मस्ती वेंकटेश अयंगार]] || || [[कन्नड़]] |
07:18, 6 अप्रैल 2010 का अवतरण
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई २२ भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है। पुरस्कार में पांच लाख रुपये की धनराशि, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है। १९६५ में १ लाख रुपये की पुरस्कार राशि से प्रारंभ हुए इस पुरस्कार को २००५ में ७ लाख रुपए कर दिया गया। २००५ के लिए चुने गए हिन्दी साहित्यकार कुंवर नारायण पहले व्यक्ति थें जिन्हें ७ लाख रुपए का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।[1] प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार १९६५ में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था। उस समय पुरस्कार की धनराशि १ लाख रुपए थी। १९८२ तक यह पुरस्कार लेखक की एकल कृति के लिये दिया जाता था। लेकिन इसके बाद से यह लेखक के भारतीय साहित्य में संपूर्ण योगदान के लिये दिया जाने लगा। अब तक हिन्दी तथा कन्नड़ भाषा के लेखक सबसे अधिक सात बार यह पुरस्कार पा चुके हैं। यह पुरस्कार बांग्ला को ५ बार, मलयालम को ४ बार, उड़िया, उर्दू और गुजराती को तीन-तीन बार, असमिया, मराठी, तेलुगू, पंजाबी और तमिल को दो-दो बार मिल चुका है।[2]
पुरस्कार का जन्म
२२ मई १९६१ को भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक श्री साहू शांति प्रसाद जैन के पचासवें जन्म दिवस के अवसर पर उनके परिवार के सदस्यों के मन में यह विचार आया कि साहित्यिक या सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ऐसा महत्वपूर्ण कार्य किया जाए जो राष्ट्रीय गौरव तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रितमान के अनुरूप हो। इसी विचार के अंतर्गत १६ सितंबर १९६१ को भारतीय ज्ञानपीठ की संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती रमा जैन ने न्यास की एक गोष्ठी में इस पुरस्कार का प्रस्ताव रखा। २ अप्रैल १९६२ को दिल्ली में भारतीय ज्ञानपीठ और टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संयुक्त तत्त्वावधान में देश की सभी भाषाओं के ३०० मूर्धन्य विद्वानों ने एक गोष्ठी में इस विषय पर विचार किया। इस गोष्ठी के दो सत्रों की अध्यक्षता डॉ वी राघवन और श्री भगवती चरण वर्मा ने की और इसका संचालन डॉ.धर्मवीर भारती ने किया। इस गोष्ठी में काका कालेलकर, हरेकृष्ण मेहताब, निसीम इजेकिल, डॉ. सुनीति कुमार चैटर्जी, डॉ. मुल्कराज आनंद, सुरेंद्र मोहंती, देवेश दास, सियारामशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, उदयशंकर भट्ट, जगदीशचंद्र माथुर, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. बी.आर.बेंद्रे, जैनेंद्र कुमार, मन्मथनाथ गुप्त, लक्ष्मीचंद्र जैन आदि प्रख्यात विद्वानों ने भाग लिया। इस पुरस्कार के स्वरूप का निर्धारण करने के लिए गोष्ठियाँ होती रहीं और १९६५ में पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार का निर्णय लिया गया।[3]
चयन प्रक्रिया
ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेताओं की सूची पृष्ठ के दाहिनी ओर देखी जा सकती है। इस पुरस्कार के चयन प्रक्रिया जटिल है और कई महीनों तक चलती है। प्रक्रिया का आरंभ विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों, अध्यापकों, समालोचकों, प्रबुद्ध पाठकों, विश्वविद्यालयों, साहित्यिक तथा भाषायी संस्थाओं से प्रस्ताव भेजने के साथ होता है। जिस भाषा के साहित्यकार को एक बार पुरस्कार मिल जाता है उस पर अगले तीन वर्ष तक विचार नहीं किया जाता है। हर भाषा की एक ऐसी परामर्श समिति है जिसमें तीन विख्यात साहित्य-समालोचक और विद्वान सदस्य होते हैं। इन समितियों का गठन तीन-तीन वर्ष के लिए होता है। प्राप्त प्रस्ताव संबंधित 'भाषा परामर्श समिति' द्वारा जाँचे जाते हैं। भाषा समितियों पर यह प्रतिबंध नहीं है कि वे अपना विचार विमर्ष प्राप्त प्रस्तावों तक ही सीमित रखें। उन्हें किसी भी लेखक पर विचार करने की स्वतंत्रता है। भारतीय ज्ञानपीठ, परामर्श समिति से यह अपेक्षा रखती है कि संबद्ध भाषा का कोई भी पुरस्कार योग्य साहित्यकार विचार परिधि से बाहर न रह जाए। किसी साहित्यकार पर विचार करते समय भाषा-समिति को उसके संपूर्ण कृतित्व का मूल्यांकन तो करना ही होता है, साथ ही, समसामयिक भारतीय साहित्य की पृष्ठभूमि में भी उसको परखना होता है। अट्ठाइसवें पुरस्कार के नियम में किए गए संशोधन के अनुसार, पुरस्कार वर्ष को छोड़कर पिछले बीस वर्ष की अवधि में प्रकाशित कृतियों के आधार पर लेखक का मूल्यांकन किया जाता है।
भाषा परामर्श समितियों की अनुशंसाएँ प्रवर परिषद के समक्ष प्रस्तुत की जाती हैं। प्रवर परिषद में कम से कम सात और अधिक से अधिक ग्यारह ऐसे सदस्य होते हैं, जिनकी ख्याति और विश्वसनीयता उच्चकोटि की होती है। पहली प्रवर परिषद का गठन भारतीय ज्ञानपीठ के न्यास-मंडल द्वारा किया गया था। इसके बाद इन सदस्यों की नियुक्ति परिषद की संस्तुति पर होती है। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 3 वर्ष को होता है पर उसको दो बार और बढ़ाया जा सकता है। प्रवर परिषद भाषा परामर्श समितियों की संस्तुतियों का तुलनात्मक मूल्यांकन करती है। प्रवर परिषद के गहन चिंतन और पर्यालोचन के बाद ही पुरस्कार के लिए किसी साहित्यकार का अंतिम चयन होता है। भारतीय ज्ञानपीठ के न्यास मंडल का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता।[5]
प्रवर परिषद के सदस्य
वर्तमान प्रवर परिषद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी हैं जो एक सुपरिचित विधिवेत्ता, राजनयिक, चिंतक और लेखक हैं। इससे पूर्व काका कालेलकर, डॉ.संपूर्णानंद, डॉ.बी गोपाल रेड्डी, डॉ.कर्ण सिंह, डॉ.पी.वी.नरसिंह राव, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ.आर.के.दासगुप्ता, डॉ.विनायक कृष्ण गोकाक, डॉ. उमाशंकर जोशी, डॉ.मसूद हुसैन, प्रो.एम.वी.राज्याध्यक्ष, डॉ.आदित्यनाथ झा, श्री जगदीशचंद्र माथुर सदृश विद्वान और साहित्यकार इस परिषद के अध्यक्ष या सदस्य रह चुके हैं।[6]
वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा
ज्ञानपीठ पुरस्कार में प्रतीक स्वरूप दी जाने वाली वाग्देवी का कांस्य प्रतिमा मूलतः धार, मालवा के सरस्वती मंदिर में स्थित प्रतिमा की अनुकृति है। इस मंदिर की स्थापना विद्याव्यसनी राजा भोज ने १०३५ ईस्वी में की थी। अब यह प्रतिमा ब्रिटिश म्यूज़ियम लंदन में है। भारतीय ज्ञानपीठ ने साहित्य पुरस्कार के प्रतीक के रूप में इसको ग्रहण करते समय शिरोभाग के पार्श्व में प्रभामंडल सम्मिलित किया है। इस प्रभामंडल में तीन रश्मिपुंज हैं जो भारत के प्राचीनतम जैन तोरण द्वार (कंकाली टीला, मथुरा) के रत्नत्रय को निरूपित करते हैं। हाथ में कमंडलु, पुस्तक, कमल और अक्षमाला ज्ञान तथा आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के प्रतीक हैं। [7]
संदर्भ
- ↑ http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/literature/articles/0811/24/1081124028_1.htm
- ↑ भारतीय ज्ञानपीठ अवार्ड्स (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल) भारतीय ज्ञानपीठ। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2007।
- ↑ (2005) ज्ञानपीठ पुरस्कार। नई दिल्ली, भारत: भारतीय ज्ञानपीठ। 263-1140-1। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2007।
- ↑ http://jnanpith.net/images/40thJnanpith_Declared.pdf 40th Jnanpith Award to Eminent Kashmiri Poet Shri Rahman Rahi
- ↑ (2005) ज्ञानपीठ पुरस्कार। नई दिल्ली, भारत: भारतीय ज्ञानपीठ। 263-1140-1। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2007।
- ↑ (2005) ज्ञानपीठ पुरस्कार। नई दिल्ली, भारत: भारतीय ज्ञानपीठ। 263-1140-1। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2007।
- ↑ (2002) ज्ञानपीठ पुरस्कार। नई दिल्ली, भारत: भारतीय ज्ञानपीठ। 263-1140-1। अभिगमन तिथि: 5 मई, 2007।