तमिल भाषा एक द्रविड़ भाषा है, जिसके विश्वभर में पाँच करोड़ से अधिक बोलने वालों में से लगभग 90% भारत में रहते हैं और तमिलनाडु राज्य में केन्द्रित 83 प्रतिशत हैं। यह भारत की पाँचवी सबसे बड़ी भाषा है, जो देश की लगभग सात प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। मूल रूप से क़रीब 34 लाख तमिल भाषा-भाषी लोग श्रीलंका में, तीन लाख सिंगापुर में और दो लाख मलेशिया में रहते हैं। औपनिवेशिक काल में प्रवास कर गए तमिल भाषी लोगों के वंशज मॉरीशस, फ़िजी और दक्षिण अमेरिका में बस गए हैं, इनकी तमिल दक्षता अलग-अलग है, साथ ही विद्यालयों में औपचारिक अध्ययन की सुविधा में भी भिन्नता है। दक्षिण भारत की लिपियों के विशेषज्ञ बार्नेल का मत था कि आरम्भ में तमिल भाषा के ग्रन्थ वट्टेळुत्तु लिपि में लिखे जाते थे।
भाषा
तमिल भाषा भारतीय संविधान में सूचीबद्ध 18 भाषाओं में से एक है, जिन्हें विशेष स्थिति और कार्य प्रदान किए गए हैं। तमिल तमिलनाडु (1956) से और केन्द्रशासित प्रदेश पाण्डिचेरी (1965) की सरकारी भाषा और श्रीलंका तथा सिंगापुर की सरकारी भाषाओं में से एक है। तमिल लगभग 50 लाख लोगों की दूसरी भाषा है।
इतिहास
तमिल का लगभग 2,500 वर्षों का अखण्डित इतिहास लिखित रूप में है। मोटे तौर पर इसके ऐतिहासिक वर्गीकरण में प्राचीन- पाँचवी शताब्दी ई. पू. से ईसा के बाद सातवीं शताब्दी, मध्य- आठवीं से सोलहवीं शताब्दी और आधुनिक- 17वीं शताब्दी से काल शामिल हैं। कुछ व्याकरणिक और शाब्दिक परिवर्तन इन कालों को इंगित करते हैं, लेकिन शब्दों की वर्तनी में प्रस्तुत स्वर वैज्ञानिक संरचना ज्यों की त्यों बनी हुई है। बोली जाने वाली भाषा में काफ़ी परिवर्तन हुआ है, जिसमें शब्दों की स्वर वैज्ञानिक संरचना भी शामिल है। इस वजह से तमिल जन-द्विभाषित भाषा बन गई है। इस भाषा के उत्कृष्ट प्रकार को विद्यालयों में पढ़ाया जाता है तथा लेखन व औपचारिक भाषण में इसका उपयोग होता है, जबकि घरों में विकसित हुआ निम्न प्रकार अनौपचारिक बातचीत में प्रयुक्त होता है। निम्न प्रकार का भी एक मानक स्वरूप है, जो क्षेत्रीय और सामाजिक (जातीय) प्रकारों से भिन्न है, जिसका उपयोग शिक्षित वक्ता करते हैं। भारतीय और श्रीलंकाई (जाफ़ना) तमिल भाषा के बीच व्यापक क्षेत्रीय भिन्नता है। तमिलनाडु के भीतर उत्तर, पश्चिमी और दक्षिणी बोली में अन्तर के लक्षण सुस्पष्ट दिखाई देते हैं। क्षेत्रीय भिन्नता सामाजिक भिन्नता के अनुरूप है।
लेखन प्रणाली
ऐतिहासिक रूप से तमिल लेखन प्रणाली का विकास ब्राह्मी लिपि से वट्टे-लुटटु (मुड़े हुए अक्षर) और कोले-लुट्टु (लम्बाकार अक्षर) के स्थानीय रूपांतरणों के साथ हुआ। सबसे प्राचीन रचना पाँचवीं शताब्दी ई. पू. की एक-पंक्ति वाले अभिलेखों तथा बर्तनों के टुकड़ों पर मिलती है। समय के साथ-साथ अक्षरों के आकार में व्यापक परिवर्तन हुए। बाद में 16वीं शताब्दी में मुद्रण के आरम्भ होने से यह थम गया। अनंगीकृत संसकृत शब्दों को लिखने के लिए प्रयुक्त मध्यकालीन 'ग्रन्थ' अक्षरों को शामिल किए जाने व कुछ असतत आकार के अक्षरों को आधुनिक काल में सतत रूप देने के अलावा वर्णमाला में कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है।
हिन्दी-तमिल
नीचे कुछ हिन्दी अक्षरों के तमिल समानान्तर दिये गए हैं -
- अ - அ
- आ - ஆ
- इ -இ
- ई - ஈ
- उ - உ
- ऊ - ஊ
- ए - ஏ
- ऎ - ஐ
- ओ - ஓ
- औ -ஔ
- क - க
- ख -(க)
- ग - க
- घ - (க)
- ङ - ங
- च - ச
- छ - (ச)
- ज - ஜ
- झ - (ஜ)
- ञ - ஞ
- ट - ட
- ठ - (ட)
- ड - ட
- ढ - (ட)
- ण - ண
- त - த
- थ - (த)
- द - த
- ध - (த)
- न - ந, ன
- प - ப
- फ -(ப)
- ब - ப
- भ - (ப)
- म - ம
- य - ய
- र - ர, ற
- व - வ
- श - ச
- ष - ஷ
- स - ஸ
- ह - ஹ
कारक
संरचना की दृष्टि से तमिल एक क्रियांत भाषा है। इसके वाक्य में शब्दक्रम में लोच होता है और यह अर्थक्रियात्मक रूप से नियंत्रित होता है। विशेषण, सम्बन्ध सूचक उपवाक्य, क्रिया विशेषण और क्रियार्थक संज्ञा जैसे विशेषक सामान्यतः शीर्ष से पहले लगाए जाते हैं। कारक चिह्न को संज्ञा के बाद जोड़ा जाता है। वाक्यों का समुच्चय अन्तिम वाक्य को छोड़कर सभी वाक्यों की क्रियाओं के कृदंत रूपों के ज़रिये होता है। रूप-विधान की दृष्टि से तमिल एक समृद्ध भाषा है, जिसमें क्रियाओं के बाद कई तरह के प्रत्यय जोड़े जाते हैं। प्रत्ययों के अलावा रूप-विधान स्वरूपों में समापिका क्रिया भी शामिल है, जो आयाम, क्रिया भाव और वक्ता के रुख़ को प्रदर्शित करती है। स्वर विज्ञान में तमिल अपने 'ट', 'न' और 'अई' प्रथम दो के दंत्य, वर्त्स और मूर्धन्य तथा तीसरे वर्त्स, मूर्धन्य और पार्श्व अवस्थिति के तीन तरफ़ा विभेद के लिए उल्लेखनीय है। तमिल के इतिहास में यह तीन तरफ़ा विभेद घटकर दो तरफ़ा रह गया है, हालाँकि वर्णमाला में यह अब भी बरक़रार है।
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