"सरगुजा ज़िला": अवतरणों में अंतर
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भारतीय [[कला]] के [[इतिहास]] में सरगुजा क्षेत्र की कला का विशेष महत्त्व रहा है। सरगुजा क्षेत्र के अंतर्गत रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, महेशपुर, बेलसर, सतमहला, कोटगढ़, डीपाडीह आदि प्रमुख स्थानों में संरक्षित पुरातात्विक संपदा एवं प्राचीन कलाकृतियाँ जैसे- पूर्तिशिल्प आदि उल्लेखनीय है। यह दृढ़ता के साथ ही जा सकता है कि इस क्षेत्र के शिल्पियों को शिल्पशास्त्र का विशेष ज्ञान था। उन्हें इस बात का ध्यान अवश्य था कि श्रृंगार पक्ष की भरमार से मूर्ति का भाव पक्ष प्रभावित हो, अपितु मूर्ति में श्रृंगार इतना ही अंकित किया जाये कि मूर्ति का मुख-मण्डल खिल उठे एवं अंग-प्रत्यंग की सुन्दरता परिलक्षित हो सके। सरगुजा क्षेत्र में विशेषकर कलचुरीकालीन शासकों ने अपनी कलाकृतियों का अनुपम स्वरूप प्रस्तुत किया है। यहाँ की कला की विशिष्टता यह है कि यहाँ मध्ययुग की विभिन्न कला-शैली आपस में मिलकर एक-दूसरे में समाहित हो गए हैं। सरगुजा की कलात्मक प्रतिमाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इन प्रतिमाओं की संरचना एवं आनुपातिक शारीरिक लोच, कमनीयता तथा श्रृंगार एवं भावपक्ष का अद्भुत सामंजस्य कर प्रतिमाओं का निर्माण इस युग की प्रमुख विशेषता रही है। | भारतीय [[कला]] के [[इतिहास]] में सरगुजा क्षेत्र की कला का विशेष महत्त्व रहा है। सरगुजा क्षेत्र के अंतर्गत रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, महेशपुर, बेलसर, सतमहला, कोटगढ़, डीपाडीह आदि प्रमुख स्थानों में संरक्षित पुरातात्विक संपदा एवं प्राचीन कलाकृतियाँ जैसे- पूर्तिशिल्प आदि उल्लेखनीय है। यह दृढ़ता के साथ ही जा सकता है कि इस क्षेत्र के शिल्पियों को शिल्पशास्त्र का विशेष ज्ञान था। उन्हें इस बात का ध्यान अवश्य था कि श्रृंगार पक्ष की भरमार से मूर्ति का भाव पक्ष प्रभावित हो, अपितु मूर्ति में श्रृंगार इतना ही अंकित किया जाये कि मूर्ति का मुख-मण्डल खिल उठे एवं अंग-प्रत्यंग की सुन्दरता परिलक्षित हो सके। सरगुजा क्षेत्र में विशेषकर कलचुरीकालीन शासकों ने अपनी कलाकृतियों का अनुपम स्वरूप प्रस्तुत किया है। यहाँ की कला की विशिष्टता यह है कि यहाँ मध्ययुग की विभिन्न कला-शैली आपस में मिलकर एक-दूसरे में समाहित हो गए हैं। सरगुजा की कलात्मक प्रतिमाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इन प्रतिमाओं की संरचना एवं आनुपातिक शारीरिक लोच, कमनीयता तथा श्रृंगार एवं भावपक्ष का अद्भुत सामंजस्य कर प्रतिमाओं का निर्माण इस युग की प्रमुख विशेषता रही है। | ||
== | ==धार्मिक स्थल== | ||
सरगुजा ज़िले के अंतर्गत अम्बिकापुर में स्थित महामाया मन्दिर है। महामाया कलचुरियों की इष्टदेवी मानी गयी है। जहाँ-जहाँ कलचुरियों का शासन रहा, वहाँ-वहाँ उनके द्वारा महामाया मन्दिर का निर्माण कराया गया तथा मन्दिर के पार्श्व में किला बनवाया गया। सरगुजा का महामाया मन्दिर कलचुरिकालीन कला परम्परा का श्रेष्ठ नमूना है। | सरगुजा ज़िले के अंतर्गत अम्बिकापुर में स्थित महामाया मन्दिर है। महामाया कलचुरियों की इष्टदेवी मानी गयी है। जहाँ-जहाँ कलचुरियों का शासन रहा, वहाँ-वहाँ उनके द्वारा महामाया मन्दिर का निर्माण कराया गया तथा मन्दिर के पार्श्व में किला बनवाया गया। सरगुजा का महामाया मन्दिर कलचुरिकालीन कला परम्परा का श्रेष्ठ नमूना है। | ||
==क्षेत्रफल== | ==क्षेत्रफल== | ||
07:05, 6 फ़रवरी 2011 का अवतरण
सरगुजा ज़िला
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राज्य | छत्तीसगढ़ |
मुख्यालय | अम्बिकापुर |
जनसंख्या | 19,72,094 |
क्षेत्रफल | 16,034 वर्ग किलोमीटर |
भौगोलिक निर्देशांक | उत्तर- 23.37°, पूर्व- 84.0° |
तहसील | अम्बिकापुर, सूरजपुर, वाडूफनगर, रामानुजगंज, कुसमी |
खण्डों की सँख्या | अम्बिकापुर, बतोली, उदयपुर, लखनपुर, सीतापुर, मेनपाट, राजपुर, सूरजपुर, भैयाथान, प्रेमनगर, वाडूफनगर, रामानुजगंज, कुसमी, ओडगी, प्रतापपुर, लुण्ड्रा, रामचंद्रपुर, बलरामपुर, शंकरगढ़ |
आदिवासी | 19 |
विधान सभा क्षेत्र | सभी अनुसूचित जनजाति- अम्बिकापुर, सीतापुर, सूरजपुर, लुण्ड्रा, प्रेमनगर, पिलरवा, पाल, सामरी |
लोकसभा | सरगुजा |
नगर पालिका | 1 |
कुल ग्राम | 1,173 |
विद्युतीकृत ग्राम | 1,664 |
नगर पंचायत | 2 |
ग्राम पंचायत | 977 |
जनपद पंचायत | 19 |
सीमा | कोरबा, बिलासपुर, कोरिया, सीधी (मध्य प्रदेश), बिहार, जशपुर |
लिंग अनुपात | 972 ♂/♀ |
साक्षरता | 54.79 % |
· स्त्री | 41.57 % |
· पुरुष | 67.63 % |
ऊँचाई | 609 मीटर समुद्रतल से |
दूरभाष कोड | 07774 |
- सरगुजा छत्तीसगढ़ राज्य का एक महत्त्वपूर्ण ज़िला है। जिसकी सीमाएँ कोरबा, बिलासपुर, कोरिया, सीधी (मध्य प्रदेश), बिहार और जशपुर से मिली हुई हैं।
इतिहास
सरगुजा ज़िला आदिकाल से ही राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रहा, जिसके प्रमाण यहाँ मिलते हैं। पूर्व पाषाण के औज़ार महानदी घाटी तथा सिंघनपुर एवं सरगुजा से प्राप्त शैलाश्रयों से प्राप्त हुए हैं। उत्तर पाषाणकाल के लघुकृत पाषाण औज़ार महानदी घाटी, सरगुजा में रेण नदी के तट पर रामगढ़ पर्वत के शैलाश्रयों में चित्रित शैलचित्रों एवं गुफ़ा चित्रों से प्राप्त हुए हैं। इस क्षेत्र का सम्पूर्ण उत्खनन शेष है।
कला
भारतीय कला के इतिहास में सरगुजा क्षेत्र की कला का विशेष महत्त्व रहा है। सरगुजा क्षेत्र के अंतर्गत रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, महेशपुर, बेलसर, सतमहला, कोटगढ़, डीपाडीह आदि प्रमुख स्थानों में संरक्षित पुरातात्विक संपदा एवं प्राचीन कलाकृतियाँ जैसे- पूर्तिशिल्प आदि उल्लेखनीय है। यह दृढ़ता के साथ ही जा सकता है कि इस क्षेत्र के शिल्पियों को शिल्पशास्त्र का विशेष ज्ञान था। उन्हें इस बात का ध्यान अवश्य था कि श्रृंगार पक्ष की भरमार से मूर्ति का भाव पक्ष प्रभावित हो, अपितु मूर्ति में श्रृंगार इतना ही अंकित किया जाये कि मूर्ति का मुख-मण्डल खिल उठे एवं अंग-प्रत्यंग की सुन्दरता परिलक्षित हो सके। सरगुजा क्षेत्र में विशेषकर कलचुरीकालीन शासकों ने अपनी कलाकृतियों का अनुपम स्वरूप प्रस्तुत किया है। यहाँ की कला की विशिष्टता यह है कि यहाँ मध्ययुग की विभिन्न कला-शैली आपस में मिलकर एक-दूसरे में समाहित हो गए हैं। सरगुजा की कलात्मक प्रतिमाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इन प्रतिमाओं की संरचना एवं आनुपातिक शारीरिक लोच, कमनीयता तथा श्रृंगार एवं भावपक्ष का अद्भुत सामंजस्य कर प्रतिमाओं का निर्माण इस युग की प्रमुख विशेषता रही है।
धार्मिक स्थल
सरगुजा ज़िले के अंतर्गत अम्बिकापुर में स्थित महामाया मन्दिर है। महामाया कलचुरियों की इष्टदेवी मानी गयी है। जहाँ-जहाँ कलचुरियों का शासन रहा, वहाँ-वहाँ उनके द्वारा महामाया मन्दिर का निर्माण कराया गया तथा मन्दिर के पार्श्व में किला बनवाया गया। सरगुजा का महामाया मन्दिर कलचुरिकालीन कला परम्परा का श्रेष्ठ नमूना है।
क्षेत्रफल
सरगुजा ज़िले का क्षेत्रफल 16,034 वर्ग किलोमीटर है।
तहसील
सरगुजा ज़िले में 5 तहसील (अम्बिकापुर, सूरजपुर, वाडूफनगर, रामानुजगंज, कुसमी) हैं।
जनसंख्या
2001 की जनगणना के अनुसार सरगुजा ज़िले की जनसंख्या 19,72,094 है।
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