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शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1591 ई. को लाहौर में हुआ था । उसका नाम ख़ुर्रम था। ख़ुर्रम [[जहाँगीर]] का छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था। वह बड़ा कुशाग्र बुद्धि, साहसी और शौक़ीन बादशाह था। वह बड़ा कला प्रेमी, विशेषकर स्थापत्य कला का प्रेमी था। उसका विवाह 20 वर्ष की आयु में नूरजहाँ के भाई [[आसफ़ ख़ाँ (गियासबेग़ पुत्र)|आसफ़ ख़ाँ]] की पुत्री अरजुमनबानो से सन् 1611 में हुआ था। वही बाद में मुमताज महल के नाम से उसकी प्रियतमा बेगम हुई। 20 वर्ष की आयु में ही शाहजहाँ जहाँगीर शासन का एक शक्तिशाली स्तंभ समझा जाता था। फिर उस विवाह से उसकी शक्ति और भी बढ़ गई थी। नूरजहाँ, आसफ़ ख़ाँ और उनका पिता एतमुद्दौला जो जहाँगीर शासन के कर्त्ता-धर्त्ता थे, शाहजहाँ के विश्वसनीय समर्थक हो गये थे। शाहजहाँ के शासन−काल में मुग़ल साम्राज्य की समृद्धि, शान−शौक़त और ख्याति चरम सीमा पर थी। उसके दरबार में देश−विदेश के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे। वे शाहजहाँ के वैभव और ठाट−बाट को देख कर चकित रह जाते थे। उसके शासन का अधिकांश समय सुख−शांति से बीता था; उसके राज्य में ख़ुशहाली रही थी। उसके शासन की सब से बड़ी देन उसके द्वारा निर्मित सुंदर, विशाल और भव्य भवन हैं। उसके राजकोष में अपार धन था। सम्राट शाहजहाँ को सब सुविधाएँ प्राप्त थीं।
शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1591 ई. को लाहौर में हुआ था । उसका नाम ख़ुर्रम था। ख़ुर्रम [[जहाँगीर]] का छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था। वह बड़ा कुशाग्र बुद्धि, साहसी और शौक़ीन बादशाह था। वह बड़ा कला प्रेमी, विशेषकर स्थापत्य कला का प्रेमी था। उसका विवाह 20 वर्ष की आयु में नूरजहाँ के भाई [[आसफ़ ख़ाँ (गियासबेग़ पुत्र)|आसफ़ ख़ाँ]] की पुत्री अरजुमनबानो से सन् 1611 में हुआ था। वही बाद में मुमताज महल के नाम से उसकी प्रियतमा बेगम हुई। 20 वर्ष की आयु में ही शाहजहाँ जहाँगीर शासन का एक शक्तिशाली स्तंभ समझा जाता था। फिर उस विवाह से उसकी शक्ति और भी बढ़ गई थी। नूरजहाँ, आसफ़ ख़ाँ और उनका पिता एतमुद्दौला जो जहाँगीर शासन के कर्त्ता-धर्त्ता थे, शाहजहाँ के विश्वसनीय समर्थक हो गये थे। शाहजहाँ के शासन−काल में मुग़ल साम्राज्य की समृद्धि, शान−शौक़त और ख्याति चरम सीमा पर थी। उसके दरबार में देश−विदेश के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे। वे शाहजहाँ के वैभव और ठाट−बाट को देख कर चकित रह जाते थे। उसके शासन का अधिकांश समय सुख−शांति से बीता था; उसके राज्य में ख़ुशहाली रही थी। उसके शासन की सब से बड़ी देन उसके द्वारा निर्मित सुंदर, विशाल और भव्य भवन हैं। उसके राजकोष में अपार धन था। सम्राट शाहजहाँ को सब सुविधाएँ प्राप्त थीं।
[[चित्र:Tajmahal-03.jpg|ताजमहल<br />Tajmahal|thumb|200px|left]]
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शाहजहाँ ने सन् 1648 में [[आगरा]] की बजाय [[दिल्ली]] को राजधानी बनाया; किंतु उसने आगरा की कभी उपेक्षा नहीं की। उसके प्रसिद्ध निर्माण कार्य आगरा में भी थे। शाहजहाँ का दरबार सरदार सामंतों, प्रतिष्ठित व्यक्तियों तथा देश−विदेश के राजदूतों से भरा रहता था। उसमें सब के बैठने के स्थान निश्चित थे। जिन व्यक्तियों को दरबार में बैठने का सौभाग्य प्राप्त था, वे अपने को धन्य मानते थे; और लोगों की दृष्टि में उन्हें गौरवान्वित समझा जाता था। जिन विदेशी सज्ज्नों को दरबार में जाने का सुयोग प्राप्त हुआ था, वे वहाँ के रंग−ढंग, शान−शौक़त और ठाट−बाट को देख कर आश्चर्य किया करते थे। [[तख्त-ए-ताऊस]] शाहजहाँ के बैठने का राजसिंहासन था।
शाहजहाँ ने सन् 1648 में [[आगरा]] की बजाय [[दिल्ली]] को राजधानी बनाया; किंतु उसने आगरा की कभी उपेक्षा नहीं की। उसके प्रसिद्ध निर्माण कार्य आगरा में भी थे। शाहजहाँ का दरबार सरदार सामंतों, प्रतिष्ठित व्यक्तियों तथा देश−विदेश के राजदूतों से भरा रहता था। [[चित्र:Tajmahal-03.jpg|ताजमहल<br />Tajmahal|thumb|200px|left]] उसमें सब के बैठने के स्थान निश्चित थे। जिन व्यक्तियों को दरबार में बैठने का सौभाग्य प्राप्त था, वे अपने को धन्य मानते थे; और लोगों की दृष्टि में उन्हें गौरवान्वित समझा जाता था। जिन विदेशी सज्ज्नों को दरबार में जाने का सुयोग प्राप्त हुआ था, वे वहाँ के रंग−ढंग, शान−शौक़त और ठाट−बाट को देख कर आश्चर्य किया करते थे। [[तख्त-ए-ताऊस]] शाहजहाँ के बैठने का राजसिंहासन था।


'''धार्मिक नीति'''
'''धार्मिक नीति'''
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सन् 1657 में शाहजहाँ बहुत बीमार हो गया था। उस समय उसने दारा को अपना विधिवत उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। दारा भी राजधानी में रह कर अपने पिता की सेवा−सुश्रूषा और शासन की देखभाल करने लगा। [[बर्नियर]] ने लिखा है - 'मैंने सूरत में आकर यह भी मालूम किया कि शाहजहां की उमर इस समय सत्तर वर्ष के लगभग है और उसके चार पुत्र तथा दो पुत्रियां हैं और कई वर्ष हुए उसने अपने चारों पुत्रों को भारतवर्ष के बड़े बड़े चार प्रदेशों का जिनको राज्य का एक एक भाग कहना चाहिए संपूर्ण अधिकार प्रदान कर दिया है। मुझे यह भी विदित हुआ है कि एक वर्ष से कुछ अधिक काल से बादशाह ऐसा बीमार है कि उसके जीवन में भी संदेह है और उसकी ऐसी अवस्था देखकर शाहजादों ने राज्य-प्राप्ति के लिए मंसूबे बांधने और उद्योग करने आरंभ कर दिए हैं। अंत में भाइयों में लड़ाई छिड़ी और वह पांच वर्ष तक चली।'<ref>{{cite web|url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4601|title=बर्नियर की भारत यात्रा|accessmonthday=22.10 |accessyear=2010|last= |first= |authorlink= |format=php|publisher=pustak.org|language=हिन्दी}}</ref>   
सन् 1657 में शाहजहाँ बहुत बीमार हो गया था। उस समय उसने दारा को अपना विधिवत उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। दारा भी राजधानी में रह कर अपने पिता की सेवा−सुश्रूषा और शासन की देखभाल करने लगा। [[बर्नियर]] ने लिखा है - 'मैंने सूरत में आकर यह भी मालूम किया कि शाहजहां की उमर इस समय सत्तर वर्ष के लगभग है और उसके चार पुत्र तथा दो पुत्रियां हैं और कई वर्ष हुए उसने अपने चारों पुत्रों को भारतवर्ष के बड़े बड़े चार प्रदेशों का जिनको राज्य का एक एक भाग कहना चाहिए संपूर्ण अधिकार प्रदान कर दिया है। मुझे यह भी विदित हुआ है कि एक वर्ष से कुछ अधिक काल से बादशाह ऐसा बीमार है कि उसके जीवन में भी संदेह है और उसकी ऐसी अवस्था देखकर शाहजादों ने राज्य-प्राप्ति के लिए मंसूबे बांधने और उद्योग करने आरंभ कर दिए हैं। अंत में भाइयों में लड़ाई छिड़ी और वह पांच वर्ष तक चली।'<ref>{{cite web|url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4601|title=बर्नियर की भारत यात्रा|accessmonthday=22.10 |accessyear=2010|last= |first= |authorlink= |format=php|publisher=pustak.org|language=हिन्दी}}</ref>   
 
[[चित्र:Shahjahan on The Peacock Throne.jpg|thumb|250px|left|मयूर सिंहासन पर शाहजहाँ]]
शाहजहाँ के शेष तीनों पुत्र भी राज्य प्राप्ति के इच्छुक थे। वे अपने पिता की बीमारी का समाचार सुन कर अपनी−अपनी सेनाएँ लेकर राजधानी की ओर चल पड़े, ताकि वे राज्य प्राप्ति के लिए संघर्ष कर सकें। दारा ने उन तीनों का सामना करने के लिए सेनाएँ भेजीं। [[औरंगजेब]] ने मुराद को अपनी ओर मिला लिया और उन दोनों की सम्मिलित फ़ौज ने दारा की सेना को पराजित कर दिया। फिर उन्होंने शुज़ा को भी भागने के लिए बाध्य किया। उसके बाद औरंगजेब ने मुराद को अधिक शराब पिला कर बेहोशी की दशा में कैद कर लिया और बीमार पिता को गद्दी से हटा कर स्वयं बादशाह बनने के लिए दिल्ली की ओर चल पड़ा।
शाहजहाँ के शेष तीनों पुत्र भी राज्य प्राप्ति के इच्छुक थे। वे अपने पिता की बीमारी का समाचार सुन कर अपनी−अपनी सेनाएँ लेकर राजधानी की ओर चल पड़े, ताकि वे राज्य प्राप्ति के लिए संघर्ष कर सकें। दारा ने उन तीनों का सामना करने के लिए सेनाएँ भेजीं। [[औरंगजेब]] ने मुराद को अपनी ओर मिला लिया और उन दोनों की सम्मिलित फ़ौज ने दारा की सेना को पराजित कर दिया। फिर उन्होंने शुज़ा को भी भागने के लिए बाध्य किया। उसके बाद औरंगजेब ने मुराद को अधिक शराब पिला कर बेहोशी की दशा में कैद कर लिया और बीमार पिता को गद्दी से हटा कर स्वयं बादशाह बनने के लिए दिल्ली की ओर चल पड़ा।


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शाहजहाँ 8 वर्ष तक आगरा के क़िले के शाहबुर्ज में कैद रहा। उसका अंतिम समय बड़े दु:ख मानसिक क्लेश में बीता था। उस समय उसकी प्रिय पुत्री जहाँआरा उसकी सेवा के लिए साथ रही थी। शाहजहाँ ने उन वर्षों को अपने वैभवपूर्ण जीवन का स्मरण करते और [[ताजमहल]] को अश्रुपूरित नेत्रों से देखते हुए बिताये थे। अंत में जनवरी, सन् 1666 में उसका देहांत हो गया। उस समय उसकी आयु 74 वर्ष की थी। उसे उसकी प्रिय बेगम के पार्श्व में ताजमहल में ही दफ़नाया गया था।
शाहजहाँ 8 वर्ष तक आगरा के क़िले के शाहबुर्ज में कैद रहा। उसका अंतिम समय बड़े दु:ख मानसिक क्लेश में बीता था। उस समय उसकी प्रिय पुत्री जहाँआरा उसकी सेवा के लिए साथ रही थी। शाहजहाँ ने उन वर्षों को अपने वैभवपूर्ण जीवन का स्मरण करते और [[ताजमहल]] को अश्रुपूरित नेत्रों से देखते हुए बिताये थे। अंत में जनवरी, सन् 1666 में उसका देहांत हो गया। उस समय उसकी आयु 74 वर्ष की थी। उसे उसकी प्रिय बेगम के पार्श्व में ताजमहल में ही दफ़नाया गया था।
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12:12, 7 फ़रवरी 2011 का अवतरण

शाहजहाँ
पूरा नाम शाहबउद्दीन मुहम्मद शाहजहाँ
जन्म 5 जनवरी, सन 1591
जन्म भूमि लाहौर
मृत्यु तिथि 22 जनवरी, सन 1666
मृत्यु स्थान आगरा
पिता/माता जहाँगीर, मानमती
पति/पत्नी अर्जुमन्द बानो (मुमताज़)
संतान दारा शिकोह, शुज़ा, मुराद, औरंगज़ेब, जहाँआरा, रोशनआरा, गौहनआरा
उपाधि अबुल मुज़फ़्फ़र शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी, शाहजहाँ (जहाँगीर के द्वारा प्रदत्त)
शासन उत्तर और मध्य भारत
धार्मिक मान्यता सुन्नी मुसलमान
राज्याभिषेक 25 जनवरी, सन 1628
प्रसिद्धि विश्व के सात आश्चर्य में एक-"ताजमहल" का निर्माण
निर्माण ताजमहल, लालक़िला दिल्ली, मोती मस्जिद आगरा, जामा मस्जिद दिल्ली
राजधानी दिल्ली
पूर्वाधिकारी जहाँगीर
राजघराना मुग़ल
वंश तिमुर वंश
शासन काल सन 8 नवम्बर 1627- 2 अगस्त 1658ई.
स्मारक दिल्ली का लालक़िला, जामा मस्जिद, आगरा का ताजमहल
मक़बरा ताजमहल

शाहजहाँ (सन 1627 से सन 1658)

शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1591 ई. को लाहौर में हुआ था । उसका नाम ख़ुर्रम था। ख़ुर्रम जहाँगीर का छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था। वह बड़ा कुशाग्र बुद्धि, साहसी और शौक़ीन बादशाह था। वह बड़ा कला प्रेमी, विशेषकर स्थापत्य कला का प्रेमी था। उसका विवाह 20 वर्ष की आयु में नूरजहाँ के भाई आसफ़ ख़ाँ की पुत्री अरजुमनबानो से सन् 1611 में हुआ था। वही बाद में मुमताज महल के नाम से उसकी प्रियतमा बेगम हुई। 20 वर्ष की आयु में ही शाहजहाँ जहाँगीर शासन का एक शक्तिशाली स्तंभ समझा जाता था। फिर उस विवाह से उसकी शक्ति और भी बढ़ गई थी। नूरजहाँ, आसफ़ ख़ाँ और उनका पिता एतमुद्दौला जो जहाँगीर शासन के कर्त्ता-धर्त्ता थे, शाहजहाँ के विश्वसनीय समर्थक हो गये थे। शाहजहाँ के शासन−काल में मुग़ल साम्राज्य की समृद्धि, शान−शौक़त और ख्याति चरम सीमा पर थी। उसके दरबार में देश−विदेश के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे। वे शाहजहाँ के वैभव और ठाट−बाट को देख कर चकित रह जाते थे। उसके शासन का अधिकांश समय सुख−शांति से बीता था; उसके राज्य में ख़ुशहाली रही थी। उसके शासन की सब से बड़ी देन उसके द्वारा निर्मित सुंदर, विशाल और भव्य भवन हैं। उसके राजकोष में अपार धन था। सम्राट शाहजहाँ को सब सुविधाएँ प्राप्त थीं।


शाहजहाँ ने सन् 1648 में आगरा की बजाय दिल्ली को राजधानी बनाया; किंतु उसने आगरा की कभी उपेक्षा नहीं की। उसके प्रसिद्ध निर्माण कार्य आगरा में भी थे। शाहजहाँ का दरबार सरदार सामंतों, प्रतिष्ठित व्यक्तियों तथा देश−विदेश के राजदूतों से भरा रहता था।

ताजमहल
Tajmahal

उसमें सब के बैठने के स्थान निश्चित थे। जिन व्यक्तियों को दरबार में बैठने का सौभाग्य प्राप्त था, वे अपने को धन्य मानते थे; और लोगों की दृष्टि में उन्हें गौरवान्वित समझा जाता था। जिन विदेशी सज्ज्नों को दरबार में जाने का सुयोग प्राप्त हुआ था, वे वहाँ के रंग−ढंग, शान−शौक़त और ठाट−बाट को देख कर आश्चर्य किया करते थे। तख्त-ए-ताऊस शाहजहाँ के बैठने का राजसिंहासन था।

धार्मिक नीति

सम्राट अकबर ने जिस उदार धार्मिक नीति के कारण अपने शासन काल में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी, वह शाहजहाँ के काल में नहीं थी। उसमें इस्लाम के प्रति कट्टरता और कुछ हद तक धर्मान्धता थी। वह मुसलमानों में सुन्नियों के प्रति पक्षपाती और शियाओं के लिए अनुदार था। हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता एवं उदारता नहीं थी। शाहजहाँ ने खुले आम हिन्दू धर्म के प्रति विरोध भाव प्रकट नहीं किया तथापि वह अपने अंत:करण में हिन्दुओं के प्रति असहिष्णु एवं अनुदार था।

दारा शिकोह

शाहजहाँ के चार पुत्र थे, जिनमें दारा शिकोह सब से बड़ा था। उससे छोटे क्रमश: शुज़ा और मुराद थे। बड़ा होने के कारण दारा राज्य का उत्तराधिकारी था। शाहजहाँ भी उसे अपने बाद बादशाह बनाना चाहता था; अत: वह सदैव उसे अपने पास रखता था। दारा प्राय: राजधानी में रह कर अपने पिता को शासन कार्य में सहयोग देता था। सन् 1654 के बाद शासन में उसका अधिक हाथ रहा था। दारा अपने पितामह अकबर की भाँति सहिष्णु एवं उदार था। वह धार्मिक विद्वान भी था। उसे सूफियों और वेदांतियों से बहुत प्रेम था। उसने हिन्दुओं के धर्मग्रंथो का अच्छा अध्ययन किया था, और वह हिन्दुओं के प्रति सहानुभूति रखता था। उसका दरबार हिन्दू पंडितों, भक्त कवियों और विद्वानों से भरा रहता था। मथुरा का परगना उसकी जागीर में था; अत: उसके उदार विचारों के कारण उस काल में ब्रज की स्थिति में सुधार दिखलाई दिया था। उसने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर बने हुए केशवराय जी के मंदिर के लिए एक संगीन करकरहटा भेंट किया था।

शाहजहाँ का अंतिम काल

सन् 1657 में शाहजहाँ बहुत बीमार हो गया था। उस समय उसने दारा को अपना विधिवत उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। दारा भी राजधानी में रह कर अपने पिता की सेवा−सुश्रूषा और शासन की देखभाल करने लगा। बर्नियर ने लिखा है - 'मैंने सूरत में आकर यह भी मालूम किया कि शाहजहां की उमर इस समय सत्तर वर्ष के लगभग है और उसके चार पुत्र तथा दो पुत्रियां हैं और कई वर्ष हुए उसने अपने चारों पुत्रों को भारतवर्ष के बड़े बड़े चार प्रदेशों का जिनको राज्य का एक एक भाग कहना चाहिए संपूर्ण अधिकार प्रदान कर दिया है। मुझे यह भी विदित हुआ है कि एक वर्ष से कुछ अधिक काल से बादशाह ऐसा बीमार है कि उसके जीवन में भी संदेह है और उसकी ऐसी अवस्था देखकर शाहजादों ने राज्य-प्राप्ति के लिए मंसूबे बांधने और उद्योग करने आरंभ कर दिए हैं। अंत में भाइयों में लड़ाई छिड़ी और वह पांच वर्ष तक चली।'[1]

मयूर सिंहासन पर शाहजहाँ

शाहजहाँ के शेष तीनों पुत्र भी राज्य प्राप्ति के इच्छुक थे। वे अपने पिता की बीमारी का समाचार सुन कर अपनी−अपनी सेनाएँ लेकर राजधानी की ओर चल पड़े, ताकि वे राज्य प्राप्ति के लिए संघर्ष कर सकें। दारा ने उन तीनों का सामना करने के लिए सेनाएँ भेजीं। औरंगजेब ने मुराद को अपनी ओर मिला लिया और उन दोनों की सम्मिलित फ़ौज ने दारा की सेना को पराजित कर दिया। फिर उन्होंने शुज़ा को भी भागने के लिए बाध्य किया। उसके बाद औरंगजेब ने मुराद को अधिक शराब पिला कर बेहोशी की दशा में कैद कर लिया और बीमार पिता को गद्दी से हटा कर स्वयं बादशाह बनने के लिए दिल्ली की ओर चल पड़ा।

दारा का अंत

दारा हताश होकर राजधानी से भाग गया; किंतु उसे शीघ्र ही पकड़ कर औरंगजेब के सामने लाया गया। उसके दोनों बेटों सुलेमान और सिपहर को गिरफ़्तार कर क़ैदी बना लिया गया। इस प्रकार औरंगजेब की छल−फरेब भरी कुटिल नीति के कारण दारा राजगद्दी से ही वंचित नहीं हुआ, वरन् अपने पुत्रों सहित असमय ही मार डाला गया। दारा को मारने से पहिले बड़ा अपमानित किया गया था। दारा का सबसे बड़ा अपराध यह था कि वह उदार धार्मिक विचारों का था; इसलिए वह काफ़िर था और काफ़िर की सजा मौत होती है। फलत: उसे क़त्ल किया गया और उसका सिर काट कर औरंगजेब की सेवा में भेज दिया गया। औरंगजेब ने हुक्म दिया कि इस अभागे को हुमायूँ के मक़बरे में दफ़ना दो। इस प्रकार औरंगजेब ने अपने सभी भाई−भतीजों को मारा और अपने वृद्ध पिता को तख्त-ए- ताऊस से हटा कर आगरा के क़िले में कैद कर लिया और ख़ुद सन् 1658 में मुग़ल सम्राट बन बैठा।

शाहजहाँ की मृत्यु

शाहजहाँ 8 वर्ष तक आगरा के क़िले के शाहबुर्ज में कैद रहा। उसका अंतिम समय बड़े दु:ख मानसिक क्लेश में बीता था। उस समय उसकी प्रिय पुत्री जहाँआरा उसकी सेवा के लिए साथ रही थी। शाहजहाँ ने उन वर्षों को अपने वैभवपूर्ण जीवन का स्मरण करते और ताजमहल को अश्रुपूरित नेत्रों से देखते हुए बिताये थे। अंत में जनवरी, सन् 1666 में उसका देहांत हो गया। उस समय उसकी आयु 74 वर्ष की थी। उसे उसकी प्रिय बेगम के पार्श्व में ताजमहल में ही दफ़नाया गया था।


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  1. बर्नियर की भारत यात्रा (हिन्दी) (php) pustak.org। अभिगमन तिथि: 22.10, 2010।

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