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*[[जैन धर्म]] के मूर्तिपूजक दिगंबर समुदाय में भिक्षुओं और उनके अनुयायियों का एक समूह, जो स्वयं को प्रमुख मठवासी गुरुओं का वंशज मानते हैं।  
*[[जैन धर्म]] के मूर्तिपूजक दिगंबर समुदाय में भिक्षुओं और उनके अनुयायियों का एक समूह, जो स्वयं को प्रमुख मठवासी गुरुओं का वंशज मानते हैं।  
*हालांकि सातवीं-आठवीं से लगभग 84 अलग-अलग गच्छों की उत्पत्ति हो चुकी है, लेकिन इनमें से बहुत कम का अस्तित्व आधुनिक क्रम के रूप में विद्यमान है, इनमें खरतार (मुख्यत: [[राजस्थान]] में स्थित), तप और अंचल गच्छ शामिल हैं।  
*हालांकि सातवीं-आठवीं से लगभग 84 अलग-अलग गच्छों की उत्पत्ति हो चुकी है, लेकिन इनमें से बहुत कम का अस्तित्व आधुनिक क्रम के रूप में विद्यमान है, इनमें खरतार (मुख्यत: [[राजस्थान]] में स्थित), तप और अंचल गच्छ शामिल हैं।  
*सिद्धांत और विश्वास के किसी महत्वपूर्ण पहलू में ये गच्छ एक-दूसरे से मतभिन्नता नहीं रखते, लेकिन अपनी अलग-अलग व्याख्याएं हैं और वे स्वयं को अलग-अलग वंशों का भी मानते हैं।  
*सिद्धांत और विश्वास के किसी महत्त्वपूर्ण पहलू में ये गच्छ एक-दूसरे से मतभिन्नता नहीं रखते, लेकिन अपनी अलग-अलग व्याख्याएं हैं और वे स्वयं को अलग-अलग वंशों का भी मानते हैं।  


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10:25, 13 मार्च 2011 का अवतरण

  • जैन धर्म के मूर्तिपूजक दिगंबर समुदाय में भिक्षुओं और उनके अनुयायियों का एक समूह, जो स्वयं को प्रमुख मठवासी गुरुओं का वंशज मानते हैं।
  • हालांकि सातवीं-आठवीं से लगभग 84 अलग-अलग गच्छों की उत्पत्ति हो चुकी है, लेकिन इनमें से बहुत कम का अस्तित्व आधुनिक क्रम के रूप में विद्यमान है, इनमें खरतार (मुख्यत: राजस्थान में स्थित), तप और अंचल गच्छ शामिल हैं।
  • सिद्धांत और विश्वास के किसी महत्त्वपूर्ण पहलू में ये गच्छ एक-दूसरे से मतभिन्नता नहीं रखते, लेकिन अपनी अलग-अलग व्याख्याएं हैं और वे स्वयं को अलग-अलग वंशों का भी मानते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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