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*'''सोरों''', कासगंज (ज़िला एटा, [[उत्तर प्रदेश]]) से 9 मील दूर प्राचीन शूकरक्षेत्र है।
*'''सोरों''' कासगंज (ज़िला एटा, [[उत्तर प्रदेश]]) से 9 मील दूर प्राचीन [[शूकरक्षेत्र उत्तर प्रदेश|शूकरक्षेत्र]] है।
*प्राचीन समय में सोरों को [[सोरेय्य]] नाम से जाना जाता था।
*प्राचीन समय में सोरों को [[सोरेय्य]] नाम से जाना जाता था।
*पहले सोरों के निकट [[गंगा]] बहती थी, किंतु अब गंगा दूर हट गई है।
*पहले सोरों के निकट [[गंगा]] बहती थी, किंतु अब गंगा दूर हट गई है।
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*[[तुलसीदास]] ने [[रामायण]] की कथा अपने गुरु नरहरिदास से प्रथम बार यहीं पर सुनी थी।
*[[तुलसीदास]] ने [[रामायण]] की कथा अपने गुरु नरहरिदास से प्रथम बार यहीं पर सुनी थी।
*उनके भ्राता नन्ददास जी द्वारा स्थापित बलदेव का मन्दिर सोरों का प्राचीन स्मारक है।
*उनके भ्राता नन्ददास जी द्वारा स्थापित बलदेव का मन्दिर सोरों का प्राचीन स्मारक है।
*गंगा नदी के तट पर एक प्राचीन स्तूप के खण्डहर भी मिले हैं, जिनमें [[सीता]]-[[राम]] के नाम से प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है।
*गंगा नदी के तट पर एक प्राचीन [[स्तूप]] के खण्डहर भी मिले हैं, जिनमें [[सीता]]-[[राम]] के नाम से प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है।
*कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण राजा बेन करवाया था।
*कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण राजा बेन ने करवाया था।
*प्राचीन मन्दिर काफ़ी विशाल था, जैसा कि उसकी प्राचीन भित्तियों की गहरी नींव से प्रतीत होता है।
*प्राचीन मन्दिर काफ़ी विशाल था, जैसा कि उसकी प्राचीन भित्तियों की गहरी नींव से प्रतीत होता है।
*अनेक प्राचीन अभिलेख भी इस मन्दिर पर उत्कीर्ण हैं, जिनमें सर्वप्राचीन अभिलेख 1226 विक्रम सम्वत=1169 ई. का है।
*अनेक प्राचीन अभिलेख भी इस मन्दिर पर उत्कीर्ण हैं, जिनमें सर्वप्राचीन अभिलेख 1226 विक्रम सम्वत=1169 ई. का है।

07:24, 8 मई 2011 का अवतरण

  • सोरों कासगंज (ज़िला एटा, उत्तर प्रदेश) से 9 मील दूर प्राचीन शूकरक्षेत्र है।
  • प्राचीन समय में सोरों को सोरेय्य नाम से जाना जाता था।
  • पहले सोरों के निकट गंगा बहती थी, किंतु अब गंगा दूर हट गई है।
  • पुरानी धारा के तट पर अनेक प्राचीन मन्दिर स्थित हैं।
  • तुलसीदास ने रामायण की कथा अपने गुरु नरहरिदास से प्रथम बार यहीं पर सुनी थी।
  • उनके भ्राता नन्ददास जी द्वारा स्थापित बलदेव का मन्दिर सोरों का प्राचीन स्मारक है।
  • गंगा नदी के तट पर एक प्राचीन स्तूप के खण्डहर भी मिले हैं, जिनमें सीता-राम के नाम से प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है।
  • कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण राजा बेन ने करवाया था।
  • प्राचीन मन्दिर काफ़ी विशाल था, जैसा कि उसकी प्राचीन भित्तियों की गहरी नींव से प्रतीत होता है।
  • अनेक प्राचीन अभिलेख भी इस मन्दिर पर उत्कीर्ण हैं, जिनमें सर्वप्राचीन अभिलेख 1226 विक्रम सम्वत=1169 ई. का है।
  • कहा जाता है कि इस मन्दिर को 1511 ई. के लगभग सिकन्दर लोदी ने नष्ट कर दिया था।
  • सोरों के प्राचीन नाम सोरेय्य का उल्लेख पाली साहित्य में भी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक ‘भारतीय इतिहास कोश’) पृष्ठ संख्या-995 से

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