"साबरमती नदी": अवतरणों में अंतर
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[[अहमदाबाद]] नगर के बीच से बहने वाली ‘साबरमती’ और इसके आसपास नदी के किनारे कई तीर्थस्थल हैं। साबरमती नदी के पश्चिमी तट पर स्थित [[गुजरात]] की राजधानी [[गांधीनगर]] का नाम [[महात्मा गांधी|राष्ट्रपिता महात्मा गांधी]] ने नाम पर रखा गया है। 649 वर्ग किमी. में फैले गांधीनगर को [[चंडीगढ़]] के बाद भारत का दूसरा नियोजित शहर माना जाता है। | [[अहमदाबाद]] नगर के बीच से बहने वाली ‘साबरमती’ और इसके आसपास नदी के किनारे कई तीर्थस्थल हैं। साबरमती नदी के पश्चिमी तट पर स्थित [[गुजरात]] की राजधानी [[गांधीनगर]] का नाम [[महात्मा गांधी|राष्ट्रपिता महात्मा गांधी]] ने नाम पर रखा गया है। 649 वर्ग किमी. में फैले गांधीनगर को [[चंडीगढ़]] के बाद भारत का दूसरा नियोजित शहर माना जाता है। | ||
अहमदाबाद के पास साबरमती ने रेलवे-पुल से लेकर सरदार-पुल तक और उससे भी अधिक दक्षिण की ओर कई तीर्थ हैं। उनमें भी जहां [[चंद्रभागा नदी]] साबरमती से मिलती है वहां [[दधीचि]] ने तप किया था, इसलिए वह स्थान अधिक पवित्र माना जाता है। और आस-पास के लोगों ने इहलोक को छोड़कर परलोक जानेवाले वाले यात्रियों को अग्निदाह देकर विदा करने की जगह वही पसंद की है। इससे वह श्मशान घाट भी है। श्मशान के अधिपति दूधेश्वर महादेव वहां विराजमान हैं और इस महायात्रा की निगरानी करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.hindi.indiawaterportal.org/node/29607 |title= | अहमदाबाद के पास साबरमती ने रेलवे-पुल से लेकर सरदार-पुल तक और उससे भी अधिक दक्षिण की ओर कई तीर्थ हैं। उनमें भी जहां [[चंद्रभागा नदी]] साबरमती से मिलती है वहां [[दधीचि]] ने तप किया था, इसलिए वह स्थान अधिक पवित्र माना जाता है। और आस-पास के लोगों ने इहलोक को छोड़कर परलोक जानेवाले वाले यात्रियों को अग्निदाह देकर विदा करने की जगह वही पसंद की है। इससे वह श्मशान घाट भी है। श्मशान के अधिपति दूधेश्वर महादेव वहां विराजमान हैं और इस महायात्रा की निगरानी करते हैं।<ref name="iwph">{{cite web |url=http://www.hindi.indiawaterportal.org/node/29607 |title=गुर्जर-माता साबरमती |accessmonthday=10मई |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) |language=हिंदी }}</ref> | ||
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[[सरस्वती नदी]] भारत की वर्तमान नदियों [[सतलुज नदी|सतलज]] और साबरमती का संयुक्त रूप थी। सतलज [[तिब्बत]] से निकलती है और साबरमती गुजरात के बाद खम्भात की खादी में गिरती है। इस नदी की धारा को [[पंजाब]] के [[लुधियाना]] नगर से उत्तर-पश्चिम में लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित 'सिधवान' नामक स्थान पर मोड़ देकर 'बिआस नदी' में मिला दिया गया जिससे आगे की धारा सूख गयी है। यह धारा आगे चलकर [[चम्बल नदी]] की शाखा नदी [[बनास नदी|बनास]] से पुष्ट होती है और वहीं [[अरावली पर्वतमाला|अरावली पहाड़ियों]] से अब साबरमती नदी का आरम्भ माना जाता है।<ref>{{cite web |url=http://bhaarat-tab-se-ab-tak.blogspot.com/2010/05/blog-post_12.html |title=सरस्वती पथ और लोप कथा |accessmonthday=[[20 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारत : तब से अब तक |language=[[हिंदी]] }}</ref> | [[सरस्वती नदी]] भारत की वर्तमान नदियों [[सतलुज नदी|सतलज]] और साबरमती का संयुक्त रूप थी। सतलज [[तिब्बत]] से निकलती है और साबरमती गुजरात के बाद खम्भात की खादी में गिरती है। इस नदी की धारा को [[पंजाब]] के [[लुधियाना]] नगर से उत्तर-पश्चिम में लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित 'सिधवान' नामक स्थान पर मोड़ देकर 'बिआस नदी' में मिला दिया गया जिससे आगे की धारा सूख गयी है। यह धारा आगे चलकर [[चम्बल नदी]] की शाखा नदी [[बनास नदी|बनास]] से पुष्ट होती है और वहीं [[अरावली पर्वतमाला|अरावली पहाड़ियों]] से अब साबरमती नदी का आरम्भ माना जाता है।<ref>{{cite web |url=http://bhaarat-tab-se-ab-tak.blogspot.com/2010/05/blog-post_12.html |title=सरस्वती पथ और लोप कथा |accessmonthday=[[20 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारत : तब से अब तक |language=[[हिंदी]] }}</ref> | ||
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साबरमती गुजरात की विशेष लोकमाता है। [[माउंट आबू|आबू]] के परिसर से जिन नदियों का उद्गम होता है, उनमें यह ज्येष्ठ और श्रेष्ठ है। ‘साबरमती प्रवाह सनातन है-इसीलिए नित्य-नूतन है।’ गुजरात की नदियों में तीन-चार बड़ी नदियां आंतरप्रांतीय है। [[नर्मदा नदी|नर्मदा]], [[तापी नदी|तापी]], [[माही नदी|माही]] - तीनों दूर-दूर से निकलकर पूर्व की ओर से आकर गुजरात में घुसती हैं और समुद्र में विलीन हो जाती हैं। साबरमती इनसे अलग है। अरावली पहाड़ में जन्म पाकर तथा अनेक नदियों को साथ में लेकर दक्षिण की ओर बहती हुई अंत में वह सागर से जा मिलती है। साबरमती के जैसी कुटुंब-वत्सल नदियां हमारे देश में भी अधिक नहीं है। साबरमती को विशेष रूप से 'गुर्जरी माता' कह सकते हैं। उसके किनारे गुजरात के आदिम निवासी सनातन काल से बसते आये हैं। उसके किनारे [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] ने तप किया है। राजपूतों ने कभी धर्म के लिए, तो बहुत बार अपनी बेवकूफी से भरी हुई जिद के लिए, वीर पुरषार्थ कर दिखाया है। वैश्यों ने इसके किनारे गांव और और शहर बसाकर गुजरात की समृद्धि बढ़ायी है और अब आधुनिक युग का अनुकरण करके शूद्रों ने भी साबरमती के किनारे मिलें चलाई हैं। <ref | साबरमती गुजरात की विशेष लोकमाता है। [[माउंट आबू|आबू]] के परिसर से जिन नदियों का उद्गम होता है, उनमें यह ज्येष्ठ और श्रेष्ठ है। ‘साबरमती प्रवाह सनातन है-इसीलिए नित्य-नूतन है।’ गुजरात की नदियों में तीन-चार बड़ी नदियां आंतरप्रांतीय है। [[नर्मदा नदी|नर्मदा]], [[तापी नदी|तापी]], [[माही नदी|माही]] - तीनों दूर-दूर से निकलकर पूर्व की ओर से आकर गुजरात में घुसती हैं और समुद्र में विलीन हो जाती हैं। साबरमती इनसे अलग है। अरावली पहाड़ में जन्म पाकर तथा अनेक नदियों को साथ में लेकर दक्षिण की ओर बहती हुई अंत में वह सागर से जा मिलती है। साबरमती के जैसी कुटुंब-वत्सल नदियां हमारे देश में भी अधिक नहीं है। साबरमती को विशेष रूप से 'गुर्जरी माता' कह सकते हैं। उसके किनारे गुजरात के आदिम निवासी सनातन काल से बसते आये हैं। उसके किनारे [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] ने तप किया है। राजपूतों ने कभी धर्म के लिए, तो बहुत बार अपनी बेवकूफी से भरी हुई जिद के लिए, वीर पुरषार्थ कर दिखाया है। वैश्यों ने इसके किनारे गांव और और शहर बसाकर गुजरात की समृद्धि बढ़ायी है और अब आधुनिक युग का अनुकरण करके शूद्रों ने भी साबरमती के किनारे मिलें चलाई हैं।<ref name="iwph"/> | ||
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*इसके द्वारा निक्षेपित गाद में फसलें अच्छी होती हैं। | *इसके द्वारा निक्षेपित गाद में फसलें अच्छी होती हैं। |
06:55, 20 मई 2011 का अवतरण
साबरमती नदी पश्चिमी भारत की प्रमुख नदी है, जो पश्चिम भारत के गुजरात राज्य से होते हुए मेवाड़ की पहाड़ियों से निकलकर 200 मील बहने के उपरांत दक्षिण पश्चिम की ओर खंबात की खाड़ी में गिरती है। इसके द्वारा लगभग 9,500 वर्ग मील क्षेत्र का जल निकास होता है। साबरमती नदी कि लंबाई 371 किमी है।
- नामकरण
इस नदी का नाम 'साबर' और 'हाथमती' नामक नदियों की धाराओं के मिलने के कारण 'साबरमती' पड़ा।
- तीर्थस्थल
अहमदाबाद नगर के बीच से बहने वाली ‘साबरमती’ और इसके आसपास नदी के किनारे कई तीर्थस्थल हैं। साबरमती नदी के पश्चिमी तट पर स्थित गुजरात की राजधानी गांधीनगर का नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नाम पर रखा गया है। 649 वर्ग किमी. में फैले गांधीनगर को चंडीगढ़ के बाद भारत का दूसरा नियोजित शहर माना जाता है। अहमदाबाद के पास साबरमती ने रेलवे-पुल से लेकर सरदार-पुल तक और उससे भी अधिक दक्षिण की ओर कई तीर्थ हैं। उनमें भी जहां चंद्रभागा नदी साबरमती से मिलती है वहां दधीचि ने तप किया था, इसलिए वह स्थान अधिक पवित्र माना जाता है। और आस-पास के लोगों ने इहलोक को छोड़कर परलोक जानेवाले वाले यात्रियों को अग्निदाह देकर विदा करने की जगह वही पसंद की है। इससे वह श्मशान घाट भी है। श्मशान के अधिपति दूधेश्वर महादेव वहां विराजमान हैं और इस महायात्रा की निगरानी करते हैं।[1]
- स्वरूप
सरस्वती नदी भारत की वर्तमान नदियों सतलज और साबरमती का संयुक्त रूप थी। सतलज तिब्बत से निकलती है और साबरमती गुजरात के बाद खम्भात की खादी में गिरती है। इस नदी की धारा को पंजाब के लुधियाना नगर से उत्तर-पश्चिम में लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित 'सिधवान' नामक स्थान पर मोड़ देकर 'बिआस नदी' में मिला दिया गया जिससे आगे की धारा सूख गयी है। यह धारा आगे चलकर चम्बल नदी की शाखा नदी बनास से पुष्ट होती है और वहीं अरावली पहाड़ियों से अब साबरमती नदी का आरम्भ माना जाता है।[2]
- विकास
गुजरात की जीवन-रेखा साबरमती नदी के किनारे अहमदाबाद शहर का योजनाबद्ध विकास और नदी को स्वच्छ बनाए रखने के लिए निगम द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं। नदी सौन्दर्यकरण योजना अन्तर्गत जहाँ साबरमती नदी की जलमार्ग सेवा को अमली जामा पहनाने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए गए हैं, नदी में स्टीमर चलते दिखेंगे। वहीं आगामी मानसून के बाद साबरमती नदी में फ्लोटिंग रेस्टोरेन्ट (तैरता होटल) सहित कई पार्क, बगीचे, खानपान बाजार जैसी अन्य मनोरंजन सुविधाएं मुहैय्या कराए जाने का लक्ष्य है।[3]
- महत्व
साबरमती गुजरात की विशेष लोकमाता है। आबू के परिसर से जिन नदियों का उद्गम होता है, उनमें यह ज्येष्ठ और श्रेष्ठ है। ‘साबरमती प्रवाह सनातन है-इसीलिए नित्य-नूतन है।’ गुजरात की नदियों में तीन-चार बड़ी नदियां आंतरप्रांतीय है। नर्मदा, तापी, माही - तीनों दूर-दूर से निकलकर पूर्व की ओर से आकर गुजरात में घुसती हैं और समुद्र में विलीन हो जाती हैं। साबरमती इनसे अलग है। अरावली पहाड़ में जन्म पाकर तथा अनेक नदियों को साथ में लेकर दक्षिण की ओर बहती हुई अंत में वह सागर से जा मिलती है। साबरमती के जैसी कुटुंब-वत्सल नदियां हमारे देश में भी अधिक नहीं है। साबरमती को विशेष रूप से 'गुर्जरी माता' कह सकते हैं। उसके किनारे गुजरात के आदिम निवासी सनातन काल से बसते आये हैं। उसके किनारे ब्राह्मणों ने तप किया है। राजपूतों ने कभी धर्म के लिए, तो बहुत बार अपनी बेवकूफी से भरी हुई जिद के लिए, वीर पुरषार्थ कर दिखाया है। वैश्यों ने इसके किनारे गांव और और शहर बसाकर गुजरात की समृद्धि बढ़ायी है और अब आधुनिक युग का अनुकरण करके शूद्रों ने भी साबरमती के किनारे मिलें चलाई हैं।[1]
- कृषि और विकास
- इसके द्वारा निक्षेपित गाद में फसलें अच्छी होती हैं।
- धरोई बाँध योजना साबरमती नदी के उपर बनाई गई है ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 गुर्जर-माता साबरमती (हिंदी) इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)। अभिगमन तिथि: 10मई, 2011।
- ↑ सरस्वती पथ और लोप कथा (हिंदी) भारत : तब से अब तक। अभिगमन तिथि: 20 मई, 2011।
- ↑ साबरमती में स्टीमर चलेंगे (हिंदी) (ए.एस.पी) पत्रिका डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 20 मई, 2011।