"सदस्य:गोविन्द राम/अभ्यास पन्ना2": अवतरणों में अंतर

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*ग़ालिब सदा किराये के मकानों में रहे, अपना मकान न बनवा सके। वे ऐसा मकान ज़्यादा पसंद करते थे, जिसमें बैठकख़ाना और अन्त:पुर अलग-अलग हों और उनके दरवाज़े भी अलग हों, जिससे यार-दोस्त बेझिझक आ-जा सकें।
*ग़ालिब सदा किराये के मकानों में रहे, अपना मकान न बनवा सके। वे ऐसा मकान ज़्यादा पसंद करते थे, जिसमें बैठकख़ाना और अन्त:पुर अलग-अलग हों और उनके दरवाज़े भी अलग हों, जिससे यार-दोस्त बेझिझक आ-जा सकें।
*“हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे<br />
*“हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे<br />
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़े-बयाँ और”[[ग़ालिब|... और पढ़ें]]</poem>
:: कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़े-बयाँ और”[[ग़ालिब|... और पढ़ें]]
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11:48, 19 जुलाई 2011 का अवतरण

एक व्यक्तित्व
मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब
  • मिर्ज़ा असदउल्ला बेग़ ख़ान जिन्हें सारी दुनिया 'मिर्ज़ा ग़ालिब' के नाम से जानती है, उर्दू-फ़ारसी के प्रख्यात कवि रहे हैं।
  • ग़ालिब सदा किराये के मकानों में रहे, अपना मकान न बनवा सके। वे ऐसा मकान ज़्यादा पसंद करते थे, जिसमें बैठकख़ाना और अन्त:पुर अलग-अलग हों और उनके दरवाज़े भी अलग हों, जिससे यार-दोस्त बेझिझक आ-जा सकें।
  • “हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़े-बयाँ और”... और पढ़ें

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