एक व्यक्तित्व
मुखपृष्ठ पर चयनित एक व्यक्तित्व के लेखों की सूची
जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा आधुनिक भारत की बुनियाद रखने वाली औद्योगिक हस्तियों में सर्वोपरि थे। इन्होंने ही भारत की पहली वाणिज्यिक विमान सेवा 'टाटा एयरलाइंस' शुरू की थी, जो आगे चलकर भारत की राष्ट्रीय विमान सेवा 'एयर इंडिया' बन गई। इस कारण जे. आर. डी. टाटा को 'भारत के नागरिक उड्डयन का पिता' भी कहा जाता है। जे. आर. डी. टाटा, भारत के पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट थे। जे. आर. डी. टाटा को फ़्राँस के सर्वोच्च नागरिकता पुरस्कार 'लीजन ऑफ द ऑनर' एवं भारत सरकार के सर्वोच्च अलंकरण 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जा चुका है। इन्होंने 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज', 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च' और 'नेशनल सेंटर फ़ॉर परफ़ार्मिंग आर्ट्स' की स्थापना की। ... और पढ़ें |
आर. के. लक्ष्मण को भारत के एक प्रमुख व्यंग-चित्रकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। अपने कार्टूनों के ज़रिए आर. के. लक्ष्मण ने एक आम आदमी को एक व्यापक स्थान दिया और उसके जीवन की मायूसी, अँधेरे, उजाले, ख़ुशी और ग़म को शब्दों और रेखाओं की मदद से समाज के सामने रखा। लक्ष्मण के बड़े भाई आर. के. नारायण एक कथाकार तथा उपन्यासकार थे, जिनकी रचनाएँ 'गाइड' तथा 'मालगुडी डेज़' ने प्रसिद्धि की ऊँचाइयों को छुआ था। एक कार्टूनिस्ट के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करने के साथ ही लक्ष्मण ने महत्त्वपूर्ण लेखन भी किया। उनकी आत्मकथा 'टनल टु टाइम' उनकी लेखन क्षमता का प्रमाण सामने लाती है। आर. के. लक्ष्मण के कार्टूनों में एक आम आदमी को प्रस्तुत करती एक छवि जितनी सादगी भरी है, उतनी ही पैनी भी होती है। आर. के. लक्ष्मण को उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए पद्म भूषण, पद्म विभूषण, रेमन मेग्सेसे पुरस्कार आदि सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। ... और पढ़ें |
मौलाना अबुलकलाम आज़ाद एक मुस्लिम विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी एवं वरिष्ठ राजनीतिक नेता थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का विरोध किया। स्वतंत्र भारत में वह भारत सरकार के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्हें 'मौलाना आज़ाद' के नाम से जाना जाता है। संगीत नाटक अकादमी (1953), साहित्य अकादमी (1954) और ललित कला अकादमी (1954) की स्थापना में अहम भूमिका थी। वर्ष 1992 में मरणोपरान्त इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। एक इंसान के रूप में मौलाना महान् थे, उन्होंने हमेशा सादगी का जीवन पसंद किया। उनमें कठिनाइयों से जूझने के लिए अपार साहस और एक संत जैसी मानवता थी। उनकी मृत्यु के समय उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी और न ही कोई बैंक खाता था। वह अपने वरिष्ठ साथी 'ख़ान अब्दुलगफ़्फ़ार ख़ाँ' और अपने कनिष्ठ 'अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ' के साथ रहे। ... और पढ़ें |
सी. डी. देशमुख ब्रिटिश शासन के अधीन आई.सी.एस. अधिकारी और भारतीय रिज़र्व बैंक के तीसरे गवर्नर थे। इनका जन्म महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले में 14 जनवरी, 1896 ई. को हुआ। इनके पिता द्वारकानाथ देशमुख एक सम्मानित वकील और माँ भागीरथी बाई एक धार्मिक महिला थी। देशमुख ने 1912 में बंबई विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। साथ ही इन्होंने संस्कृत की जगन्नाथ शंकर सेट छात्रवृत्ति भी हासिल की। 1917 में इन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से नेचुरल साइंस से, वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र तथा भूगर्भ शास्त्र लेकर, ग्रेजुएशन पास किया। अपने विभिन्न योगदानों के लिए इन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा 'डॉक्टर ऑफ़ साइंस' (1957), रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1959), भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण (1975) से सम्मानित किया गया। ... और पढ़ें |
खाशाबा जाधव भारत के प्रसिद्ध कुश्ती खिलाड़ी थे। वे पहले भारतीय खिलाड़ी थे, जिन्होंने सन 1952 में हेलसिंकी ओलम्पिक में देश के लिए कुश्ती की व्यक्तिगत स्पर्धा में सबसे पहले कांस्य पदक जीता था। वैसे तो 1952 के हेलसिंकी ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम ने फिर से स्वर्ण पदक हासिल किया था, लेकिन चर्चा सोने से अधिक उस कांस्य पदक की होती है, जिसे पहलवान खाशाबा जाधव ने जीता था। खाशाबा को "पॉकेट डायनमो" के नाम से भी जाना जाता है। मुंबई पुलिस के लिए खाशाबा जाधव ने 25 साल तक सेवाएं दीं, लेकिन उनके सहकर्मी इस बात को कभी नहीं जान सके कि वे ओलम्पिक चैंपियन हैं। पुलिस विभाग में खेल कोटा खाशाबा के ओलम्पिक में पदक जीतने के बाद ही शुरू हुआ। आज भी लोगों की भर्ती खेल कोटा से होती है, लेकिन यह खाशाबा जाधव की ही देन है। ... और पढ़ें |
नज़ीर अकबराबादी उर्दू में नज़्म लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं। समाज की हर छोटी-बड़ी ख़ूबी को नज़ीर साहब ने कविता में तब्दील कर दिया। ककड़ी, जलेबी और तिल के लड्डू जैसी वस्तुओं पर लिखी गई कविताओं को आलोचक कविता मानने से इनकार करते रहे। बाद में नज़ीर साहब की 'उत्कृष्ट शायरी' को पहचाना गया और आज वे उर्दू साहित्य के शिखर पर विराजमान चन्द नामों के साथ बाइज़्ज़त गिने जाते हैं। लगभग सौ वर्ष की आयु पाने पर भी इस शायर को जीते जी उतनी ख्याति नहीं प्राप्त हुई जितनी कि उन्हें आज मिल रही है। नज़ीर की शायरी से पता चलता है कि उन्होंने जीवन-रूपी पुस्तक का अध्ययन बहुत अच्छी तरह किया है। भाषा के क्षेत्र में भी वे उदार हैं, उन्होंने अपनी शायरी में जन-संस्कृति का, जिसमें हिन्दू संस्कृति भी शामिल है, दिग्दर्शन कराया है और हिन्दी के शब्दों से परहेज़ नहीं किया है। उनकी शैली सीधी असर डालने वाली है और अलंकारों से मुक्त है। शायद इसीलिए वे बहुत लोकप्रिय भी हुए। ... और पढ़ें |
पांडुरंग वामन काणे संस्कृत के एक विद्वान् एवं प्राच्यविद्या विशारद थे। पांडुरंग वामन काणे का सबसे बड़ा योगदान उनका विपुल साहित्य है, जिसकी रचना में उन्होंने अपना महत्त्वपूर्ण जीवन लगाया। वे अपने महान् ग्रंथों- 'साहित्यशास्त्र' और 'धर्मशास्त्र' पर 1906 ई. से कार्य कर रहे थे। इनमें 'धर्मशास्त्र का इतिहास' सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रसिद्ध है। पाँच भागों में प्रकाशित बड़े आकार के 6500 पृष्ठों का यह ग्रंथ, भारतीय धर्मशास्त्र का विश्वकोश है। इसमें ईस्वी पूर्व 600 से लेकर 1800 ई. तक की भारत की विभिन्न धार्मिक प्रवृत्तियों का प्रामाणिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। हिन्दू विधि और आचार विचार संबंधी पांडुरंग वामन काणे का कुल प्रकाशित साहित्य 20,000 पृष्ठों से अधिक का है। डॉ. पांडुरंग वामन काणे की महान् उपलब्धियों के लिए भारत सरकार द्वारा सन् 1963 में उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। ... और पढ़ें |
उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ 'भारत रत्न' से सम्मानित प्रख्यात शहनाई वादक थे। सन 1969 में 'एशियाई संगीत सम्मेलन' के 'रोस्टम पुरस्कार' से सम्मानित बिस्मिल्लाह खाँ ने शहनाई को भारत के बाहर एक विशिष्ट पहचान दिलवाने में मुख्य योगदान दिया। 1947 में आज़ादी की पूर्व संध्या पर जब लाल क़िले पर देश का झंडा तिरंगा फहरा रहा था, तब बिस्मिल्लाह ख़ाँ की शहनाई भी वहाँ आज़ादी का संदेश बाँट रही थी। बिस्मिल्ला ख़ाँ ने 'बजरी', 'चैती' और 'झूला' जैसी लोकधुनों में बाजे को अपनी तपस्या और रियाज़ से ख़ूब सँवारा और क्लासिकल मौसिक़ी में शहनाई को सम्मानजनक स्थान दिलाया। ... और पढ़ें |
लाला लाजपत राय को भारत के महान् क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले लाला लाजपत राय को 'पंजाब केसरी' भी कहा जाता है। लालाजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता तथा पूरे पंजाब के प्रतिनिधि थे। उन्हें 'पंजाब के शेर' की उपाधि भी मिली थी। उन्होंने क़ानून की शिक्षा प्राप्त कर हिसार में वकालत प्रारम्भ की थी, किन्तु बाद में स्वामी दयानंद के सम्पर्क में आने के कारण वे आर्य समाज के प्रबल समर्थक बन गये। यहीं से उनमें उग्र राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। लालाजी ने भगवान श्रीकृष्ण, अशोक, शिवाजी, स्वामी दयानंद सरस्वती, पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, मेत्सिनी और गैरीबाल्डी की संक्षिप्त जीवनियाँ भी लिखीं। 'नेशनल एजुकेशन', 'अनहैप्पी इंडिया' और 'द स्टोरी ऑफ़ माई डिपोर्डेशन' उनकी अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं। ... और पढ़ें |
कवि प्रदीप का मूल नाम 'रामचंद्र नारायण द्विवेदी' था। कवि सम्मेलनों में सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जैसे महान् साहित्यकार को प्रभावित कर सकने की क्षमता रामचंद्र द्विवेदी में थी। उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र 'प्रदीप' कहलाने लगे। कवि प्रदीप 'ऐ मेरे वतन के लोगों' सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1962 के 'भारत-चीन युद्ध' के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी, 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान से सीधा प्रसारण किया गया था। कवि प्रदीप अपनी रचनाएं गाकर ही सुनाते थे और उनकी मधुर आवाज़ का सदुपयोग अनेक संगीत निर्देशकों ने अलग-अलग समय पर किया। ... और पढ़ें |
गजानन माधव 'मुक्तिबोध' की प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि के रूप में है। मुक्तिबोध हिन्दी साहित्य की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है। मुक्तिबोध हिन्दी संसार की एक घटना बन गए। कुछ ऐसी घटना जिसकी ओर से आँखें मूंद लेना असम्भव था। उनका एकनिष्ठ संघर्ष, उनकी अटूट सच्चाई, उनका पूरा जीवन, सभी एक साथ हमारी भावनाओं के केंद्रीय मंच पर सामने आए और सभी ने उनके कवि होने को नई दृष्टि से देखा। कैसा जीवन था वह और ऐसे उसका अंत क्यों हुआ। और वह समुचित ख्याति से अब तक वंचित क्यों रहे? ... और पढ़ें |
जयशंकर प्रसाद हिन्दी नाट्य जगत् और कथा साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम थे। कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास सभी क्षेत्रों में प्रसाद जी एक नवीन 'स्कूल' और नवीन जीवन-दर्शन की स्थापना करने में सफल हुए। वे 'छायावाद' के संस्थापकों और उन्नायकों में से एक हैं। कहा जाता है कि नौ वर्ष की अवस्था में ही जयशंकर प्रसाद ने 'कलाधर' उपनाम से ब्रजभाषा में एक सवैया लिखकर अपने गुरु रसमयसिद्ध को दिखाया था। ... और पढ़ें |
रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, लेखक एवं निबंधकार हैं। 'दिनकर' आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। 'दिनकर' पद्म भूषण के अतिरिक्त अपनी गद्य रचना 'संस्कृति के चार अध्याय' के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा काव्य-नाटक उर्वशी के लिये ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हैं। 'दिनकर' भारत की प्रथम संसद में राज्यसभा के सदस्य भी चुने गये। 12 वर्ष तक संसद सदस्य रहने के बाद इन्हें 'भागलपुर विश्वविद्यालय' का कुलपति नियुक्त किया गया लेकिन अगले ही वर्ष भारत सरकार ने इन्हें अपना 'हिन्दी सलाहकार' नियुक्त किया। ... और पढ़ें |
सूरदास हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास जी अष्टछाप कवियों में एक थे। सूरदास की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना 'सूरसागर' है। ... और पढ़ें |
सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के प्रमुख नेताओं में से वे एक थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद पहले तीन वर्ष वे उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे थे। कुशल कूटनीति और ज़रूरत पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप द्वारा उन्होंने अधिकांश रियासतों को तिरंगे के तले लाने में सफलता प्राप्त की। नीतिगत दृढ़ता के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने उन्हें 'सरदार' और 'लौह पुरुष' की उपाधि दी। सरदार पटेल को मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' दिया गया। सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरणीय रहेंगे। ... और पढ़ें |
अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति, प्रसिद्ध वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात हैं। इन्हें मिसाइल मैन के नाम से भी जाना जाता है। चमत्कारिक प्रतिभा के धनी अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व इतना उन्नत है कि वह सभी धर्म, जाति एवं सम्प्रदायों के व्यक्ति नज़र आते हैं। यह एक ऐसे स्वीकार्य भारतीय हैं, जो सभी के लिए 'एक महान् आदर्श' बन चुके हैं। ये भारत के विशिष्ट वैज्ञानिक हैं, जिन्हें 30 विश्वविद्यालयों और संस्थानों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि के अतिरिक्त भारत के नागरिक सम्मान के रूप में पद्म भूषण, पद्म विभूषण एवं भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। ... और पढ़ें |
देवकीनन्दन खत्री हिन्दी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होंने 'चन्द्रकान्ता ', 'चंद्रकांता संतति', 'काजर की कोठरी', 'नरेंद्र-मोहिनी', 'कुसुम कुमारी', 'वीरेंद्र वीर', 'गुप्त गोंडा', 'कटोरा भर' और 'भूतनाथ' जैसी रचनाएँ कीं। हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके उपन्यास 'चन्द्रकान्ता' का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास का रसास्वादन करने के लिए कई गैर-हिन्दीभाषियों ने हिन्दी भाषा सीखी। बाबू देवकीनन्दन खत्री ने 'तिलिस्म', 'ऐय्यार' और 'ऐय्यारी' जैसे शब्दों को हिन्दीभाषियों के बीच लोकप्रिय बना दिया। ... और पढ़ें |
गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के आकाश के परम नक्षत्र, भक्तिकाल की सगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि है। तुलसीदास एक साथ कवि, भक्त तथा समाज सुधारक तीनों रूपों में मान्य है। श्रीराम को समर्पित विश्वविख्यात ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस को समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। अपनी पत्नी 'रत्नावली' से अत्याधिक प्रेम के कारण तुलसीदास को रत्नावली की फटकार "लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ" सुननी पड़ी जिससे इनका जीवन ही परिवर्तित हो गया। ... और पढ़ें |
सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक हैं। सुमित्रानंदन पंत ऐसे साहित्यकारों में गिने जाते हैं जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में सबसे बेहतरीन था। हिंदी साहित्य के ‘विलियम वर्ड्सवर्थ’ कहे जाने वाले इस कवि ने महानायक अमिताभ बच्चन को ‘अमिताभ’ नाम दिया था। आधी सदी से भी अधिक लंबे उनके रचनाकाल में आधुनिक हिंदी कविता का एक पूरा युग समाया हुआ है। ... और पढ़ें |
सुभाष चंद्र बोस के अतिरिक्त भारत के इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ, जो एक साथ महान् सेनापति, वीर सैनिक, राजनीति का अद्भुत खिलाड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरुषों, नेताओं के समकक्ष साधिकार बैठकर कूटनीति तथा चर्चा करने वाला हो। गाँधीजी ने भी उनकी देश की आज़ादी के प्रति लड़ने की भावना देखकर ही उन्हें 'देशभक्तों का देशभक्त' कहा था। नेताजी उस समय भारतीयता की पहचान ही बन गए थे और भारतीय युवक आज भी उनसे प्रेरणा ग्रहण करते हैं। वे भारत की अमूल्य निधि थे। 'जयहिन्द' का नारा और अभिवादन उन्हीं की देन है। ... और पढ़ें |
स्वामी विवेकानन्द एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगन्ध विदेशों में बिखरने वाले साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान् थे। विवेकानन्द जी का मूल नाम 'नरेंद्रनाथ दत्त' था। इन्होंने हिन्दू धर्म को गतिशील तथा व्यावहारिक बनाया और सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए आधुनिक मानव से पश्चिमी विज्ञान व भौतिकवाद को भारत की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने का आग्रह किया। भारत में स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। ... और पढ़ें |
महाराणा प्रताप की वीरता और स्वार्थ-त्याग का वृत्तान्त मेवाड़ के इतिहास में अत्यन्त गौरवमय समझा जाता है। वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुट मणि राणा प्रताप का जन्म हुआ। इन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि वह 'माता के पवित्र दूध को कभी कलंकित नहीं करेंगे' और इस प्रतिज्ञा का पालन इन्होंने पूरी तरह से किया। महाराणा प्रताप प्रजा के हृदय पर शासन करने वाले राजा थे। महाराणा प्रताप ने एक प्रतिष्ठित कुल के मान-सम्मान और उसकी उपाधि को प्राप्त किया। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी सम्वत् कॅलण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। ... और पढ़ें |
मीरांबाई अथवा मीराबाई हिन्दू आध्यात्मिक कवयित्री थीं, जिनके श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित भजन उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हैं। मीरा का सम्बन्ध एक राजपूत परिवार से था। एक साधु द्वारा बचपन में उन्हें कृष्ण की मूर्ति दिए जाने के साथ ही उनकी आजन्म कृष्णभक्ति की शुरुआत हुई, जिनकी वह दिव्य प्रेमी के रूप में आराधना करती थीं। ... और पढ़ें |
हरिवंश राय बच्चन के काव्य की विलक्षणता उनकी लोकप्रियता है। यह नि:संकोच कहा जा सकता है कि आज भी हिन्दी के ही नहीं, सारे भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में 'बच्चन' का स्थान सुरक्षित है। हिन्दी में 'हालावाद' के जनक 'बच्चन' की मुख्य कृतियाँ 'मधुशाला', 'मधुबाला' और 'मधुकलश' ने हिंदी काव्य पर अमिट छाप छोड़ी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन भारतीय सिनेमा जगत् के प्रसिद्ध सितारे हैं। ... और पढ़ें |
नज़ीर अकबराबादी उर्दू में नज़्म लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं। समाज की हर छोटी-बड़ी ख़ूबी को नज़ीर साहब ने कविता में तब्दील कर दिया। ककड़ी, जलेबी और तिल के लड्डू जैसी वस्तुओं पर लिखी गई कविताओं को आलोचक कविता मानने से इन्कार करते रहे। बाद में नज़ीर साहब की 'उत्कृष्ट शायरी' को पहचाना गया और आज वे उर्दू साहित्य के शिखर पर विराजमान चन्द नामों के साथ बाइज़्ज़त गिने जाते हैं। ... और पढ़ें |
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