"श्रमिक संघ": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*'श्रमिकों के सभी प्रकार के समान हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से बनाया गया, श्रमिकों का संगठन '''श्रमिक संघ''' कहलाता है।
'श्रमिकों के सभी प्रकार के समान हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से बनाया गया, श्रमिकों का संगठन '''श्रमिक संघ''' कहलाता है। [[भारत]] में आधुनिक उद्योगों की शुरुआत 1850 ई. से 1870 ई. के बीच हुई थी। आद्योगिकीकरण के साथ-साथ इस क्षेत्र में अनेक बुराइयाँ, जैसे- अधिक समय तक श्रमिकों से काम लेना, कठोर श्रम, आवास की असुविधा, कम परिश्रमिक, मृत्यु दर में अधिकता आदि व्याप्त थीं। इन बुराईयों को थोड़ा बहुत कम करने के लिए ब्रिटिश भारत की सरकार ने कई कारख़ाना अधिनियम बनाये, पर इन अधिनियमों द्वारा इन क्षेत्रों में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं हुआ। श्रमिकों ने औपनिवेशिक राज्य से लड़ने के लिए संगठन की आवश्यकता महसूस की, जिसके परिणामस्वरूप 1884 ई. में [[भारत]] के पहले '''श्रमिक संघ''', 'बम्बई मिल हैण्ड ऐसोसिएशन' की स्थापना एन.एम.लोखण्डे के नेतृत्व में की गई।
*[[भारत]] में आधुनिक उद्योगों की शुरुआत 1850 ई. से 1870 ई. के बीच हुई थी।
==संगठन का उद्देश्य==
*आद्योगिकीकरण के साथ-साथ इस क्षेत्र में अनेक बुराइयाँ, जैसे- अधिक समय तक श्रमिकों से काम लेना, कठोर श्रम, आवास की असुविधा, कम परिश्रमिक, मृत्यु दर में अधिकता आदि व्याप्त थीं।
श्रमिकों के इस संगठन ने [[मराठी भाषा]] में 'दीनबन्धु' नामक अख़बार भी प्रकाशित किया। 1897 ई. में 'अमलगमेटिड सोसाइटी ऑफ़ रेलवे सर्वेन्टस ऑफ़ इण्डिया एण्ड बर्मा' की स्थापना हुई। इसके अतिरिक्त 1905 ई. में 'कलकत्ता प्रिन्टर्स यूनियन', 1907 ई. में 'बम्बई पोस्टल यूनियन' और और 1910 ई. में 'कामगार हितवर्धक सभा' की स्थापना हुई। इन संगठनों का एकमात्र उद्देश्य था- फैक्ट्री प्रणाली में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करना। मजदूर वर्ग की प्रथम संगठित हड़ताल ब्रिटिश स्वामित्व वाली रेलवे, जिसका नाम 'ग्रेट इण्डियन पेनन्सुलर रेलवे' था, 1899 ई. में मजदूरी, काम के घण्टों तथा अन्य सेवा शर्तों में सुधार को लेकर हुई थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनैतिक आन्दोलनों के फलस्वरूप '[[श्रमिक आन्दोलन]]' को भी बल प्राप्त हो गया था।
*इन बुराईयों को थोड़ा बहुत कम करने के लिए ब्रिटिश भारत की सरकार ने कई कारख़ाना अधिनियम बनाये, पर इन अधिनियमों द्वारा इन क्षेत्रों में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं हुआ।
====श्रमिक आन्दोलन====
*श्रमिकों ने औपनिवेशिक राज्य से लड़ने के लिए संगठन की आवश्यकता महसूस की, जिसके परिणामस्वरूप 1884 ई. में [[भारत]] का पहला 'श्रमिक संघ' (जिसे वास्तविक रूप से 'श्रमिक संघ' नहीं माना जाता)  'बम्बई मिल हैण्ड ऐसोसिएशन' की स्थापना एन.एम.लोखण्डे के नेतृत्व में की गई।
{{main|श्रमिक आन्दोलन}}
*इस संगठन में [[मराठी भाषा]] में 'दीनबन्धु' नामक अख़बार भी प्रकाशित किया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद राजनैतिक आन्दोलनों में काफ़ी तेज़ी आई, जिसके फलस्वरूप श्रमिकों के आन्दोलनों को बल मिला। [[रूस]] में 1918 ई. की 'साम्यवादी क्रांति' ने भारतीय मजदूर संघों को प्रोत्साहित किया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 'अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ' (आई.एल.ओ.) की स्थापना हुई। वी.पी. वाडिया ने भारत में आधुनिक श्रमिक संघ 'मद्रास श्रमिक संघ' की स्थापना की। उन्हीं के प्रयासों से 1926 ई. में 'श्रमिक संघ अधिनियम' पारित किया गया। 1920 ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' (ए.आई.टी.यू.सी.) में तत्कालीन,  लगभग 64 श्रमिक संघ शामिल हो गये। एन.एम.जोशी, [[लाला लाजपत राय]] एवं जोसेफ़ बैपटिस्टा के प्रयत्नों से 1920 ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' पर वामपंथियों का प्रभाव बढ़ने लगा। 'एटक' (ए.आई.टी.यू.सी) के प्रथम अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे। यह सम्मेलन 1920 ई. में [[बम्बई]] में हुआ था। इसके उपाध्यक्ष जोसेफ़ बैप्टिस्टा तथा महामंत्री [[दीवान]] चमनलाल थे।
*1897 ई. में 'अमलगमेटिड सोसाइटी ऑफ़ रेलवे सर्वेन्टस ऑफ़ इण्डिया एण्ड बर्मा' की स्थापना हुई।
*इसके अतिरिक्त 1905 ई. में 'कलकत्ता प्रिन्टर्स यूनियन', 1907 ई. में 'बम्बई पोस्टल यूनियन' और और 1910 ई. में 'कामगार हितवर्धक सभा' की स्थापना हुई।
*इन संगठनों का एकमात्र उद्देश्य था- फैक्ट्री प्रणाली में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करना।
*मजदूर वर्ग की प्रथम संगठित हड़ताल ब्रिटिश स्वामित्व वाली रेलवे, जिसका नाम 'ग्रेट इण्डियन पेनन्सुलर रेलवे' था, 1899 ई. में मजदूरी, काम के घण्टों तथा अन्य सेवा शर्तों में सुधार को लेकर हुई थी।
*द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनैतिक आन्दोलनों के फलस्वरूप [[श्रमिक आन्दोलन]] को भी बल प्राप्त हो गया था।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 22: पंक्ति 17:
[[Category:आधुनिक काल]]
[[Category:आधुनिक काल]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

12:40, 9 अगस्त 2011 का अवतरण

'श्रमिकों के सभी प्रकार के समान हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से बनाया गया, श्रमिकों का संगठन श्रमिक संघ कहलाता है। भारत में आधुनिक उद्योगों की शुरुआत 1850 ई. से 1870 ई. के बीच हुई थी। आद्योगिकीकरण के साथ-साथ इस क्षेत्र में अनेक बुराइयाँ, जैसे- अधिक समय तक श्रमिकों से काम लेना, कठोर श्रम, आवास की असुविधा, कम परिश्रमिक, मृत्यु दर में अधिकता आदि व्याप्त थीं। इन बुराईयों को थोड़ा बहुत कम करने के लिए ब्रिटिश भारत की सरकार ने कई कारख़ाना अधिनियम बनाये, पर इन अधिनियमों द्वारा इन क्षेत्रों में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं हुआ। श्रमिकों ने औपनिवेशिक राज्य से लड़ने के लिए संगठन की आवश्यकता महसूस की, जिसके परिणामस्वरूप 1884 ई. में भारत के पहले श्रमिक संघ, 'बम्बई मिल हैण्ड ऐसोसिएशन' की स्थापना एन.एम.लोखण्डे के नेतृत्व में की गई।

संगठन का उद्देश्य

श्रमिकों के इस संगठन ने मराठी भाषा में 'दीनबन्धु' नामक अख़बार भी प्रकाशित किया। 1897 ई. में 'अमलगमेटिड सोसाइटी ऑफ़ रेलवे सर्वेन्टस ऑफ़ इण्डिया एण्ड बर्मा' की स्थापना हुई। इसके अतिरिक्त 1905 ई. में 'कलकत्ता प्रिन्टर्स यूनियन', 1907 ई. में 'बम्बई पोस्टल यूनियन' और और 1910 ई. में 'कामगार हितवर्धक सभा' की स्थापना हुई। इन संगठनों का एकमात्र उद्देश्य था- फैक्ट्री प्रणाली में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करना। मजदूर वर्ग की प्रथम संगठित हड़ताल ब्रिटिश स्वामित्व वाली रेलवे, जिसका नाम 'ग्रेट इण्डियन पेनन्सुलर रेलवे' था, 1899 ई. में मजदूरी, काम के घण्टों तथा अन्य सेवा शर्तों में सुधार को लेकर हुई थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनैतिक आन्दोलनों के फलस्वरूप 'श्रमिक आन्दोलन' को भी बल प्राप्त हो गया था।

श्रमिक आन्दोलन

द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद राजनैतिक आन्दोलनों में काफ़ी तेज़ी आई, जिसके फलस्वरूप श्रमिकों के आन्दोलनों को बल मिला। रूस में 1918 ई. की 'साम्यवादी क्रांति' ने भारतीय मजदूर संघों को प्रोत्साहित किया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 'अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ' (आई.एल.ओ.) की स्थापना हुई। वी.पी. वाडिया ने भारत में आधुनिक श्रमिक संघ 'मद्रास श्रमिक संघ' की स्थापना की। उन्हीं के प्रयासों से 1926 ई. में 'श्रमिक संघ अधिनियम' पारित किया गया। 1920 ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' (ए.आई.टी.यू.सी.) में तत्कालीन, लगभग 64 श्रमिक संघ शामिल हो गये। एन.एम.जोशी, लाला लाजपत राय एवं जोसेफ़ बैपटिस्टा के प्रयत्नों से 1920 ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' पर वामपंथियों का प्रभाव बढ़ने लगा। 'एटक' (ए.आई.टी.यू.सी) के प्रथम अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे। यह सम्मेलन 1920 ई. में बम्बई में हुआ था। इसके उपाध्यक्ष जोसेफ़ बैप्टिस्टा तथा महामंत्री दीवान चमनलाल थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख