"गायत्री माता की आरती": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 42: पंक्ति 42:
<blockquote><span style="color: blue"><poem>
<blockquote><span style="color: blue"><poem>
ज्ञान दीप और श्रद्धा की बाती, सो भक्ति ही पूर्ति करै जहं घी की |
ज्ञान दीप और श्रद्धा की बाती, सो भक्ति ही पूर्ति करै जहं घी की |
मानस की शुचि थाल के ऊपर, शुद्ध मनोरि के जहां घणटा|
मानस की शुचि थाल के ऊपर, शुद्ध मनोरि के जहां घणटा|
देवि की जोति जगै, जहं नीकी, आरती श्री गायत्री जी की|
देवि की जोति जगै, जहं नीकी, आरती श्री गायत्री जी की|
बाजैं करैं पूरी आसहू ही की, आरती श्री गायत्री जी की|
बाजैं करैं पूरी आसहू ही की, आरती श्री गायत्री जी की|
जाके समक्ष हमें तिहुं लोक कै, गद्धी मिलै तबहूं लगे फीकी|
जाके समक्ष हमें तिहुं लोक कै, गद्धी मिलै तबहूं लगे फीकी|
संकट आवौं न पास कबौ तिन्हें, सम्पदा और सुख की बनै लीकी|
संकट आवौं न पास कबौ तिन्हें, सम्पदा और सुख की बनै लीकी|
 
आरती प्रेम सो करि, ध्यावहिं मूरति ब्रह्रा लली की|
आरती प्रेम सो करि, ध्यावहिं मूरति ब्रह्रा लली की|</poem></span></blockquote>
</poem></span></blockquote>


{{seealso|गायत्री|गायत्री मन्त्र|गायत्री चालीसा}}
{{seealso|गायत्री|गायत्री मन्त्र|गायत्री चालीसा}}

20:25, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण

गायत्री देवी
Gayatri Devi

आरती

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।

आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक क‌र्त्री।
दु:ख शोक, भय, क्लेश कलश दारिद्र दैन्य हत्री॥ जयति ..

ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत धातृ अम्बे।
भव भयहारी, जन-हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ जयति ..

भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि।
अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥ जयति ..

कामधेनु सतचित आनन्द जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥ जयति ..

ऋग, यजु साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे॥ जयति ..

स्वाहा, स्वधा, शची ब्रह्माणी राधा रुद्राणी।
जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी॥ जयति ..

जननी हम हैं दीन-हीन, दु:ख-दरिद्र के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे॥ जयति ..

स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै।
विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥ जयति ..

काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये॥ जयति ..

तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि-पुष्टि द्दाता।
सत मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥

ऊँ नमोडस्त्वनन्ताय सहस्त्रमूर्तये, सहम्त्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।
सहस्त्रनाम्ने पुरुषा शाश्वते, सहस्त्रकोटी युगधारिणे नमः ।।


ज्ञान दीप और श्रद्धा की बाती, सो भक्ति ही पूर्ति करै जहं घी की |
मानस की शुचि थाल के ऊपर, शुद्ध मनोरि के जहां घणटा|
देवि की जोति जगै, जहं नीकी, आरती श्री गायत्री जी की|
बाजैं करैं पूरी आसहू ही की, आरती श्री गायत्री जी की|
जाके समक्ष हमें तिहुं लोक कै, गद्धी मिलै तबहूं लगे फीकी|
संकट आवौं न पास कबौ तिन्हें, सम्पदा और सुख की बनै लीकी|
आरती प्रेम सो करि, ध्यावहिं मूरति ब्रह्रा लली की|

इन्हें भी देखें: गायत्री, गायत्री मन्त्र एवं गायत्री चालीसा

संबंधित लेख