"अर्जुन की प्रतिज्ञा -मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर
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मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा। | मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा। | ||
मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, | मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, | ||
प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ? | प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ? | ||
युग-नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धार-से, | युग-नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धार-से, | ||
पंक्ति 54: | पंक्ति 54: | ||
उपयुक्त उस खल को न यद्यपि मृत्यु का भी दंड है, | उपयुक्त उस खल को न यद्यपि मृत्यु का भी दंड है, | ||
पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दण्ड और प्रचंड है । | पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दण्ड और प्रचंड है । | ||
अतएव कल उस नीच को रण- | अतएव कल उस नीच को रण-मध्य जो मारूँ न मैं, | ||
तो सत्य कहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न मैं। | तो सत्य कहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न मैं। | ||
अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही, | अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही, | ||
साक्षी रहे सुन ये | साक्षी रहे सुन ये वचन रवि, शशि, अनल, अंबर, मही। | ||
सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ-वध करूँ, | सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ-वध करूँ, | ||
तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल मरूँ। | तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल मरूँ। |
15:20, 23 सितम्बर 2011 का अवतरण
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उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, |
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