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निर्जरा भारतीय जैनों की धार्मिक आस्था में, कर्मण[1] का विनाश, मोक्ष प्राप्ति या पुनर्जन्म से मुक्ति के धर्मनिष्ठ को अपने वर्तमान कर्मण से अवश्य छुटकारा पाना चाहिए तथा नए कर्मण के संचय को रोकना चाहिए। उपवास, काया का दमन, पाप-स्वीकृति एवं पश्चाताप, वरिष्ठों का आदर, अन्य लोगों की सेवा, चिंतन एवं अध्ययन, शरीर और इसकी आवश्यकताओं के प्रति उदासीनता तथा अंतत: अंतिम उपाय के रूप में उपवास द्वारा प्राण त्यागने जैसे शारीरिक एवं आध्यात्मिक संयमों के ज़रिये निर्जरा की जा सकती है। नए कर्मण की रोकथाम संवरा कहलाती है तथा यह नैतिक संकल्प[2]; शरीर, वाणी एवं मन की गतिविधियों पर नियंत्रण; चलने में व वस्तुओं के प्रयोग में सावधानी; तथा नैतिक गुणों के संवर्द्धन एवं समस्याओं का धैर्य से सामना करके साधी जाती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुण एवं अवगुण
  2. व्रत

बाहरी कड़ियाँ

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