"कबीर के दोहे": अवतरणों में अंतर

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कस्तूरी कुंजल बसे, मृग ढूढै बन माहि ।  
कस्तूरी कुंजल बसे, मृग ढूढै बन माहि ।  
ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि ।।
ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि


कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय ।
कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय ।
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काल करै सो आज कर, आज करै सो अब ।  
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब ।  
पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगौ कब ।।
पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगौ कब


कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय।  
कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय।  
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।।
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥


करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय।  
करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय।  
बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय।।
बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय॥


कर बहियां बल आपनी, छोड़ बीरानी आस।  
कर बहियां बल आपनी, छोड़ बीरानी आस।  
जाके आंगन नदि बहे, सो कस मरत प्यास।।
जाके आंगन नदि बहे, सो कस मरत प्यास॥


कथनी कथी तो क्या भया जो करनी ना ठहराइ ।  
कथनी कथी तो क्या भया जो करनी ना ठहराइ ।  
कालबूत के कोट ज्यूं देखत ही ढहि जाइ।।
कालबूत के कोट ज्यूं देखत ही ढहि जाइ॥


कबिरा गरब न कीजिये, कबहूं न हंसिये कोय।  
कबिरा गरब न कीजिये, कबहूं न हंसिये कोय।  
अबहूं नाव समुंद्र में, का जाने का होय।।
अबहूं नाव समुंद्र में, का जाने का होय॥


कबीरा गर्व ना किजीये, उंचा देख आवास ।
कबीरा गर्व ना किजीये, उंचा देख आवास ।
काल परौ भुइं लेटना, उपर जमसी घास ||
काल परौ भुइं लेटना, उपर जमसी घास


कबीरा खड़ा बजार में, सब की चाहे खैर ।  
कबीरा खड़ा बजार में, सब की चाहे खैर ।  
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ।।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर


कबीरा सोई पीर हैं, जो जाने पर पीर।  
कबीरा सोई पीर हैं, जो जाने पर पीर।  
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर ।।
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर


कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि।  
कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि।  
मन न फिरावै आपणा, कहा फिरावै मोहि।।
मन न फिरावै आपणा, कहा फिरावै मोहि॥


कबीर तूं काहै डरै, सिर पर हरि का हाथ।  
कबीर तूं काहै डरै, सिर पर हरि का हाथ।  
हस्ती चढि नहि डोलिये, कुकर भूखे साथ।।
हस्ती चढि नहि डोलिये, कुकर भूखे साथ॥


कबीर घोड़ा प्रेम का, चेतनि चढ़ि असवार।  
कबीर घोड़ा प्रेम का, चेतनि चढ़ि असवार।  
ग्यान षड्ग गहि, काल सिरि, भली मचाई मार।।
ग्यान षड्ग गहि, काल सिरि, भली मचाई मार॥


कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
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कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥


सूरा के मैदान में, कायर का क्या काम ।  
सूरा के मैदान में, कायर का क्या काम ।  
कायर भागे पीठ दे, सूरा करे संग्राम ।।
कायर भागे पीठ दे, सूरा करे संग्राम


सतनाम जाने बिना, हंस लोक नहिं जाए।  
सतनाम जाने बिना, हंस लोक नहिं जाए।  
ज्ञानी पंडित सूरमा, कर कर मुये उपाय।।
ज्ञानी पंडित सूरमा, कर कर मुये उपाय॥


सुख मे सुमिरन ना किया, दुख में करते याद ।
सुख मे सुमिरन ना किया, दुख में करते याद ।
पंक्ति 61: पंक्ति 60:


साई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय।  
साई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय।  
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाय।।
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाय॥


सुमिरन करहु राम का, काल गहै है केस।  
सुमिरन करहु राम का, काल गहै है केस।  
न जानो कब मारिहै, का घर का परदेस।।
न जानो कब मारिहै, का घर का परदेस॥


सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।  
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।  
जाके हिरदय सांच हें, वाके हिरदय आप ।।
जाके हिरदय सांच हें, वाके हिरदय आप


सहज सहज सब कोऊ कहै, सहज न चीन्है कोइ।  
सहज सहज सब कोऊ कहै, सहज न चीन्है कोइ।  
पंक्ति 73: पंक्ति 72:


सुखिया सब संसार है खावै और सोवै।  
सुखिया सब संसार है खावै और सोवै।  
दुखिया दास कबीर है जागै अरू रोवै।।
दुखिया दास कबीर है जागै अरू रोवै॥


सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
पंक्ति 83: पंक्ति 82:
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥  
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥  


जो तोको कांटा बुवै, ताहि बोओ तू फूल।  
जो तोको कांटा बुवै, ताहि बोओ तू फूल।  
ताहि फूल को फूल हैं, वाको हैं तिरसूल।।
ताहि फूल को फूल हैं, वाको हैं तिरसूल॥


जो जल बाढ़े नांव में, घर में बाढ़े दाम।  
जो जल बाढ़े नांव में, घर में बाढ़े दाम।  
दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानो काम।।
दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानो काम॥


जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।  
जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।  
मैं बौरी बन डरी, रही किनारे बैठ।।
मैं बौरी बन डरी, रही किनारे बैठ॥


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान॥
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥


जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
पंक्ति 107: पंक्ति 105:


जब में था हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
जब में था हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिटी गया, जब दीपक देख्या माहिं ||
सब अंधियारा मिटी गया, जब दीपक देख्या माहिं


जब तूं आया जगत में, लोग हसें तू रोए।
जब तूं आया जगत में, लोग हसें तू रोए।
एसी करनी ना करी, पाछे हसें सब कोए ||
एसी करनी ना करी, पाछे हसें सब कोए


ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहिं।
ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहिं।
मूरख लोग ना जानहीं, बाहिर ढ़ूंढ़न जाहिं ||
मूरख लोग ना जानहीं, बाहिर ढ़ूंढ़न जाहिं
 


पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंड़ित भया न कोय।  
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंड़ित भया न कोय।  
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंड़ित होय।।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंड़ित होय॥


पूरब दिसा हरि को बासा, पश्चिम अलह मुकामा।  
पूरब दिसा हरि को बासा, पश्चिम अलह मुकामा।  
दिल महं खोजु, दिलहि में खोजो यही करीमा रामा।।
दिल महं खोजु, दिलहि में खोजो यही करीमा रामा॥


पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
पंक्ति 126: पंक्ति 123:


पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार।
पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार।
ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार ||
ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार
 


चलती चक्की देखि कै, दिया कबीरा रोय।  
चलती चक्की देखि कै, दिया कबीरा रोय।  
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चारिउं वेदि पठाहि, हरि सूं न लाया हेत।  
चारिउं वेदि पठाहि, हरि सूं न लाया हेत।  
बालि कबीरा ले गया, पंडित ढूंढे खेत।।
बालि कबीरा ले गया, पंडित ढूंढे खेत॥


चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥  
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥  


माली आवत देख कै कलियन करी पुकार।  
माली आवत देख कै कलियन करी पुकार।  
फूली फूली चुन लिए, काल्हि हमारी बार।।
फूली फूली चुन लिए, काल्हि हमारी बार॥


माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर।  
माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर।  
आशा त्रिष्णा ना मुई, यौ कह गया कबीर।।
आशा त्रिष्णा ना मुई, यौ कह गया कबीर॥


माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि ईवै पडंत।
माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि ईवै पडंत।
पंक्ति 156: पंक्ति 151:
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥


एक राम दशरथ का प्यारा, एक राम का सकल पसारा।  
एक राम दशरथ का प्यारा, एक राम का सकल पसारा।  
एक राम घट घट में छा रहा, एक राम दुनिया से न्यारा।।
एक राम घट घट में छा रहा, एक राम दुनिया से न्यारा॥


एकै साध सब सधै, सब साधे सब जाय ।  
एकै साध सब सधै, सब साधे सब जाय ।  
जो तू सींचे मूल को, फूले फल अघाय ।।
जो तू सींचे मूल को, फूले फल अघाय


ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोइ।  
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोइ।  
आपन को सीतल करे, और हु सीतल होइ।।
आपन को सीतल करे, और हु सीतल होइ॥
 


धरती सब कागद करूं, लेखनी सब बनराय।  
धरती सब कागद करूं, लेखनी सब बनराय।  
साह सुमुंद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय़।।
साह सुमुंद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय़॥


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥


रज गुन ब्रह्मा तम गुन संकर सत्त गुन हरि सोई।  
रज गुन ब्रह्मा तम गुन संकर सत्त गुन हरि सोई।  
कहै कबीर राम रमि रहिये हिन्दू तुरक न कोई।।
कहै कबीर राम रमि रहिये हिन्दू तुरक न कोई॥


रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥


लाली मेरे लाल की जित देखों तित लाल।  
लाली मेरे लाल की जित देखों तित लाल।  
लाली देखन मैं चली, हो गई लाल गुलाल।।
लाली देखन मैं चली, हो गई लाल गुलाल॥


लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥  
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥  


ऊंचे कुल का जनमिया, जे करणी ऊंच होइ।  
ऊंचे कुल का जनमिया, जे करणी ऊंच होइ।  
सुबण कलस सुरा भरा, साधू निन्दै सोइ।।
सुबण कलस सुरा भरा, साधू निन्दै सोइ॥


उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥


गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।  
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।  
बलिहारी गुरु आपनै, गोबिंद दियो मिलाय।।
बलिहारी गुरु आपनै, गोबिंद दियो मिलाय॥
 


हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय।
हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय।
बहुतक मूरख चलि गए, पारख लिया उठाय॥
बहुतक मूरख चलि गए, पारख लिया उठाय॥


तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥


बुरा जो देखन मैं चल्या, बुरा न मिलिया कोय।  
बुरा जो देखन मैं चल्या, बुरा न मिलिया कोय।  
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय ।।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय


बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥


दोष पराए देख कर चल्या हंसत हंसत ।  
दोष पराए देख कर चल्या हंसत हंसत ।  
अपनै चीति न आबई जाको आदि न अंत ।।
अपनै चीति न आबई जाको आदि न अंत


दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥</poem>
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥</poem>
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13:42, 23 नवम्बर 2011 का अवतरण

कबीरदास

कस्तूरी कुंजल बसे, मृग ढूढै बन माहि ।
ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि ॥

कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोई सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥

काल करै सो आज कर, आज करै सो अब ।
पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगौ कब ॥

कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय।
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥

करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय।
बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय॥

कर बहियां बल आपनी, छोड़ बीरानी आस।
जाके आंगन नदि बहे, सो कस मरत प्यास॥

कथनी कथी तो क्या भया जो करनी ना ठहराइ ।
कालबूत के कोट ज्यूं देखत ही ढहि जाइ॥

कबिरा गरब न कीजिये, कबहूं न हंसिये कोय।
अबहूं नाव समुंद्र में, का जाने का होय॥

कबीरा गर्व ना किजीये, उंचा देख आवास ।
काल परौ भुइं लेटना, उपर जमसी घास ॥

कबीरा खड़ा बजार में, सब की चाहे खैर ।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ॥

कबीरा सोई पीर हैं, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर ॥

कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि।
मन न फिरावै आपणा, कहा फिरावै मोहि॥

कबीर तूं काहै डरै, सिर पर हरि का हाथ।
हस्ती चढि नहि डोलिये, कुकर भूखे साथ॥

कबीर घोड़ा प्रेम का, चेतनि चढ़ि असवार।
ग्यान षड्ग गहि, काल सिरि, भली मचाई मार॥

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥

सूरा के मैदान में, कायर का क्या काम ।
कायर भागे पीठ दे, सूरा करे संग्राम ॥

सतनाम जाने बिना, हंस लोक नहिं जाए।
ज्ञानी पंडित सूरमा, कर कर मुये उपाय॥

सुख मे सुमिरन ना किया, दुख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥

साई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाय॥

सुमिरन करहु राम का, काल गहै है केस।
न जानो कब मारिहै, का घर का परदेस॥

सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदय सांच हें, वाके हिरदय आप ॥

सहज सहज सब कोऊ कहै, सहज न चीन्है कोइ।
जिन्ह सहजैं विषया तजी, सहज कहीजै सोइ।

सुखिया सब संसार है खावै और सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागै अरू रोवै॥

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥

साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥

जो तोको कांटा बुवै, ताहि बोओ तू फूल।
ताहि फूल को फूल हैं, वाको हैं तिरसूल॥

जो जल बाढ़े नांव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानो काम॥

जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरी बन डरी, रही किनारे बैठ॥

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान॥
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥

जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ काम ।
दोनों कबहूँ नहिं मिले, रवि रजनी इक धाम ॥

जहां दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप।
जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा आप॥

जब में था हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिटी गया, जब दीपक देख्या माहिं ॥

जब तूं आया जगत में, लोग हसें तू रोए।
एसी करनी ना करी, पाछे हसें सब कोए ॥

ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहिं।
मूरख लोग ना जानहीं, बाहिर ढ़ूंढ़न जाहिं ॥

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंड़ित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंड़ित होय॥

पूरब दिसा हरि को बासा, पश्चिम अलह मुकामा।
दिल महं खोजु, दिलहि में खोजो यही करीमा रामा॥

पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥

पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार।
ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार ॥

चलती चक्की देखि कै, दिया कबीरा रोय।
दुइ पट भीतर आइ कै, साबित गया न कोय।

चारिउं वेदि पठाहि, हरि सूं न लाया हेत।
बालि कबीरा ले गया, पंडित ढूंढे खेत॥

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

माली आवत देख कै कलियन करी पुकार।
फूली फूली चुन लिए, काल्हि हमारी बार॥

माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर।
आशा त्रिष्णा ना मुई, यौ कह गया कबीर॥

माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि ईवै पडंत।
कहै कबीर गुरु ज्ञान ते, एक आध उबरंत॥

मन माया तो एक हैं, माया नहीं समाय।
तीन लोक संसय परा, काहि कहूं समझाय।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥

एक राम दशरथ का प्यारा, एक राम का सकल पसारा।
एक राम घट घट में छा रहा, एक राम दुनिया से न्यारा॥

एकै साध सब सधै, सब साधे सब जाय ।
जो तू सींचे मूल को, फूले फल अघाय ॥

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोइ।
आपन को सीतल करे, और हु सीतल होइ॥

धरती सब कागद करूं, लेखनी सब बनराय।
साह सुमुंद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय़॥

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

रज गुन ब्रह्मा तम गुन संकर सत्त गुन हरि सोई।
कहै कबीर राम रमि रहिये हिन्दू तुरक न कोई॥

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥

लाली मेरे लाल की जित देखों तित लाल।
लाली देखन मैं चली, हो गई लाल गुलाल॥

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥

ऊंचे कुल का जनमिया, जे करणी ऊंच होइ।
सुबण कलस सुरा भरा, साधू निन्दै सोइ॥

उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपनै, गोबिंद दियो मिलाय॥

हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय।
बहुतक मूरख चलि गए, पारख लिया उठाय॥

तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥

बुरा जो देखन मैं चल्या, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय ॥

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

दोष पराए देख कर चल्या हंसत हंसत ।
अपनै चीति न आबई जाको आदि न अंत ॥

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥


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