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अपने मित्रों के आग्रह पर 1904 ई. में टी. प्रकाशम बैरिस्टरी की शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए। [[भारत]] लौटने पर 1907 ई. में उन्होंने मद्रास में बैरिस्टरी आरंभ की और शीघ्र ही उनकी गणना प्रमुख बैरिस्टरों में होने लगी।
अपने मित्रों के आग्रह पर 1904 ई. में टी. प्रकाशम बैरिस्टरी की शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए। [[भारत]] लौटने पर 1907 ई. में उन्होंने मद्रास में बैरिस्टरी आरंभ की और शीघ्र ही उनकी गणना प्रमुख बैरिस्टरों में होने लगी।
====गाँधी जी से भेंट====
====गाँधी जी से भेंट====
प्रकाशम ने 15 वर्षों तक खूब धन कमाया और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया। इन्हीं दिनों उन्होंने ‘लॉ टाइम्स’ नामक पत्र का संपादन किया, प्रिवी कौंसिल में मुकदमा लड़ने के लिए दो बार इंग्लैण्ड भी गए। वहाँ उनकी भेंट प्रथम बार गाँधी जी से हुई। गाँधी जी के विचारों का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। देश में संपन्नता के चारों ओर फैली गरीबी को वे देख चुके थे। देश की स्वाधीनता के लिए गाँधी जी ने जो पहला आंदोलन आरंभ किया, टी. प्रकाशम भी अपनी लाखों रूपये की बैरिस्टरी त्यागकर उस आंदोलन में सम्मिलित हो गए। 1921 से आगामी 13 वर्षों तक वे [[आंध्र प्रदेश]] में कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। उन्होंने राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार के लिए 1921 में ‘स्वराज्य’ नामक दैनिक पत्र का प्रकाशन किया और 15 वर्ष तक अपने व्यय से इसे चलाते रहे।
प्रकाशम ने 15 वर्षों तक खूब धन कमाया और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया। इन्हीं दिनों उन्होंने ‘लॉ टाइम्स’ नामक पत्र का संपादन किया, प्रिवी कौंसिल में मुकदमा लड़ने के लिए दो बार इंग्लैण्ड भी गए। वहाँ उनकी भेंट प्रथम बार गाँधी जी से हुई। गाँधी जी के विचारों का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। देश में संपन्नता के चारों ओर फैली गरीबी को वे देख चुके थे। देश की स्वाधीनता के लिए गाँधी जी ने जो पहला आंदोलन आरंभ किया, टी. प्रकाशम भी अपनी लाखों रुपये की बैरिस्टरी त्यागकर उस आंदोलन में सम्मिलित हो गए। 1921 से आगामी 13 वर्षों तक वे [[आंध्र प्रदेश]] में कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। उन्होंने राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार के लिए 1921 में ‘स्वराज्य’ नामक दैनिक पत्र का प्रकाशन किया और 15 वर्ष तक अपने व्यय से इसे चलाते रहे।
==आंध्र केसरी की उपाधि==
==आंध्र केसरी की उपाधि==
आंदोलनों में भाग लेने के कारण उन्होंने जेल की सजाएँ भोगीं। 1927 में [[साइमन कमीशन]] के विरोध में आयोजित प्रदर्शन पर पुलिस द्वारा की गई गोलाबारी के बीच से मृत और घायल व्यक्तियों को निकालने के लिए वे ही आगे बढ़े थे। तभी से वे ‘आंध्र केसरी’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए। 1937 में जब देश में पहले कांग्रेसी मंत्रिमंडल स्थापित हुए तो टी. प्रकाशम [[सी. राजगोपालाचारी]] के मंत्रिमंडल में राजस्वमंत्री के रूप में सम्मिलित हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, अप्रैल 1946 में वे संयुक्त [[मद्रास]] प्रदेश के [[मुख्यमंत्री]] बने और लगभग 13 महीनों तक इस पद पर रहकर उन्होंने समाज-सुधार और आर्थिक उन्नति की कई योजनाएँ आरंभ की।
आंदोलनों में भाग लेने के कारण उन्होंने जेल की सजाएँ भोगीं। 1927 में [[साइमन कमीशन]] के विरोध में आयोजित प्रदर्शन पर पुलिस द्वारा की गई गोलाबारी के बीच से मृत और घायल व्यक्तियों को निकालने के लिए वे ही आगे बढ़े थे। तभी से वे ‘आंध्र केसरी’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए। 1937 में जब देश में पहले कांग्रेसी मंत्रिमंडल स्थापित हुए तो टी. प्रकाशम [[सी. राजगोपालाचारी]] के मंत्रिमंडल में राजस्वमंत्री के रूप में सम्मिलित हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, अप्रैल 1946 में वे संयुक्त [[मद्रास]] प्रदेश के [[मुख्यमंत्री]] बने और लगभग 13 महीनों तक इस पद पर रहकर उन्होंने समाज-सुधार और आर्थिक उन्नति की कई योजनाएँ आरंभ की।

09:24, 8 दिसम्बर 2011 का अवतरण

टी. प्रकाशम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और आंध्र प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे। इनका जन्म 23 अगस्त, 1972 ई. में गुन्टूर ज़िले के कनपर्ती नामक गाँव में हुआ था। टी. प्रकाशम का पूरा नाम 'टंगटूरी प्रकाशम' था। इनकी अल्पायु में ही पिता का देहान्त हो गया था। इन्होंने पहले मद्रास और फिर इंग्लैण्ड से बैरिस्टरी की पढ़ाई की थी। इंग्लैण्ड में दो मुकदमों की पैरवी भी इन्होंने की थी, और इसी समय महात्मा गाँधी से इनका प्रथम बार साक्षात्कार हुआ। देश में व्याप्त गरीबी को टी. प्रकाशम ने काफ़ी क़रीब से देखा था, इसीलिए गाँधी जी के प्रथम आन्दोलन के समय इन्होंने अपनी लाखों रुपये की बैरिस्टरी का त्याग कर दिया।

शिक्षा तथा व्यवसाय

टी. प्रकाशम के पिता 'गोपाल कृष्णैया' का जल्दी देहांत हो जाने के कारण माँ ने एक होटल खोलकर बड़े परिश्रम से उनका पालन-पोषण किया। मद्रास से क़ानून की शिक्षा प्राप्त करके उन्होंने राजामुंद्री में वकालत शुरू की। शीघ्र ही उन्होंने इस क्षेत्र में बड़ा नाम कमाया। 29 वर्ष की उम्र में टी. प्रकाशम राजामुंद्री नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए थे। अपने मित्रों के आग्रह पर 1904 ई. में टी. प्रकाशम बैरिस्टरी की शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए। भारत लौटने पर 1907 ई. में उन्होंने मद्रास में बैरिस्टरी आरंभ की और शीघ्र ही उनकी गणना प्रमुख बैरिस्टरों में होने लगी।

गाँधी जी से भेंट

प्रकाशम ने 15 वर्षों तक खूब धन कमाया और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया। इन्हीं दिनों उन्होंने ‘लॉ टाइम्स’ नामक पत्र का संपादन किया, प्रिवी कौंसिल में मुकदमा लड़ने के लिए दो बार इंग्लैण्ड भी गए। वहाँ उनकी भेंट प्रथम बार गाँधी जी से हुई। गाँधी जी के विचारों का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। देश में संपन्नता के चारों ओर फैली गरीबी को वे देख चुके थे। देश की स्वाधीनता के लिए गाँधी जी ने जो पहला आंदोलन आरंभ किया, टी. प्रकाशम भी अपनी लाखों रुपये की बैरिस्टरी त्यागकर उस आंदोलन में सम्मिलित हो गए। 1921 से आगामी 13 वर्षों तक वे आंध्र प्रदेश में कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। उन्होंने राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार के लिए 1921 में ‘स्वराज्य’ नामक दैनिक पत्र का प्रकाशन किया और 15 वर्ष तक अपने व्यय से इसे चलाते रहे।

आंध्र केसरी की उपाधि

आंदोलनों में भाग लेने के कारण उन्होंने जेल की सजाएँ भोगीं। 1927 में साइमन कमीशन के विरोध में आयोजित प्रदर्शन पर पुलिस द्वारा की गई गोलाबारी के बीच से मृत और घायल व्यक्तियों को निकालने के लिए वे ही आगे बढ़े थे। तभी से वे ‘आंध्र केसरी’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए। 1937 में जब देश में पहले कांग्रेसी मंत्रिमंडल स्थापित हुए तो टी. प्रकाशम सी. राजगोपालाचारी के मंत्रिमंडल में राजस्वमंत्री के रूप में सम्मिलित हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, अप्रैल 1946 में वे संयुक्त मद्रास प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और लगभग 13 महीनों तक इस पद पर रहकर उन्होंने समाज-सुधार और आर्थिक उन्नति की कई योजनाएँ आरंभ की।

आंध्र प्रदेश का गठन

भाषावार प्रदेशों के गठन के आधार पर अलग आंध्र प्रदेश की स्थापना के लिए पोट्ठि श्रीरामालू ने 15 दिसंबर, 1952 ई. को आत्मदाह कर लिया, तो उसके बाद 1 अक्टूबर, 1953 ई. को आंध्र का क्षेत्र मद्रास से अलग करके नया राज्य बना दिया गया। इस नए राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री आंध्र केसरी टी. प्रकाशम ही बने। इस राज्य की स्थापना के लिए वहाँ 40 वर्षों से आंदोलन चल रहा था, परंतु ‘विशाल आंध्र प्रदेश’ अक्टूबर, 1956 में ही बन पाया। इस प्रकार टी. प्रकाशम ने अपने जीवन में ही अपनी यह आकांक्षा पूरी होते देखी।

मृत्यु

आन्ध्र प्रदेश राज्य की स्थापना के कुछ समय बाद ही 20 मई, 1957 को टी. प्रकाशम का देहान्त हो गया। आज भी उन्हें आन्ध्र में वे बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 343-344 |


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