"उर्वशी -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:Dinkar.jpg|thumb|[[रामधारी सिंह दिनकर]]250px]]
[[चित्र:Dinkar.jpg|thumb|[[रामधारी सिंह दिनकर]]250px]]
{| align="center"
! रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ
|}
<div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%">
{{रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ}}
{{रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ}}
</div></div>
|}
[[रामधारी सिंह दिनकर]] द्वारा रचित 1961 में प्रकाशित उर्वशी काव्य- नाटक में दिनकर ने [[उर्वशी]] और [[पुरुरवा]] के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है।  
[[रामधारी सिंह दिनकर]] द्वारा रचित 1961 में प्रकाशित उर्वशी काव्य- नाटक में दिनकर ने [[उर्वशी]] और [[पुरुरवा]] के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है।  
;कथानक
;कथानक

10:06, 3 जनवरी 2012 का अवतरण

रामधारी सिंह दिनकर250px

रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित 1961 में प्रकाशित उर्वशी काव्य- नाटक में दिनकर ने उर्वशी और पुरुरवा के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है।

कथानक

इस कृति में पुरुरवा और उर्वशी अलग-अलग तरह की प्यास लेकर आये हैं। पुरुखा धरती पुत्र है और उर्वशी देवलोक से उतरी हुई नारी है।

दर्शन

पुरुखा के भीतर देवत्व की तृषा है और 'उर्वशी' का दर्शन- पक्ष है- प्रेम और ईश्वर, जैव और आत्म धरातल को परस्पर मिलना। वैसे तो यह एक शाश्वत प्रश्न है जो इस युग के मूलभूत प्रश्नों से जुड़ता नहीं दीखता, किंतु प्रकारांतर से कहा जा सकता कि धरती और स्वर्ग, स्वर्ग- धरती के मिलने के स्वर को ऊँचा करना और उपेक्षित धरती की महत्ता स्थापित करना मुख्यत: आज की प्रवृत्ति है।

प्रेम और सौन्दर्य का काव्य

उर्वशी की चर्चा को दार्शनिक उहापोह से निकालकर काव्य के धरातल पर प्रतिष्ठित किया जाये तो निश्चिय ही कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ लक्षित होगी। उर्वशी प्रेम और सौन्दर्य का काव्य हैं। प्रेम और सौन्दर्य की मूलधारा में जीवन दर्शन संबंधी अन्य छोटी- छोटी धाराएँ आकर मिल जाती हैं। प्रेम और सौन्दर्य का विधान कवि ने बहुत व्यापक धरातल पर किया है। समस्त परिवेश इससे इससे अनुप्राणित हो उठा है। कवि ने प्रेम छवियों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर पहचाना है। प्रेम भी निर्विकल्प की अवस्था नहीं है, उसमें भी अनेक स्फूलिंग उड़ा करते और मन को शांत करने के स्थान पर बेचैनी से भर देते हैं।

भाषा शैली

दिनकर की भाषा में हमेशा एक प्रत्यक्षता और सादगी दिखी है, परंतु उर्वशी में भाषा की सादगी अलंकृति और अभिजात्य की चमक पहन कर आयी है- शायद यह इस कृति की वस्तु माँग रही हो।


टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 55-56।

संबंधित लेख