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इस नगर की स्थापना 1728 ई॰ में की थी और राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने किले हैं। | इस नगर की स्थापना 1728 ई॰ में की थी और राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने किले हैं। | ||
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कछवाहा राजपूत अपने वंश का आदि पुरुष श्री [[राम]]चन्द्र जी के पुत्र [[लव कुश|कुश]] को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रारम्भ में उनके वंश के लोग रोहतासगढ़ (बिहार) में जाकर बसे थे। तीसरी शती ई॰ में वे लोग [[ग्वालियर]] चले आए। एक ऐतिहासिक [[अनुश्रुति]] के आधार पर यह भी कहा जाता है कि 1068 ई॰ के लगभग, [[अयोध्या]]-नरेश [[लक्ष्मण]] ने ग्वालियर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया और तत्पश्चात इनके वंशज दौसा नामक स्थान पर आए और उन्होंने मीणाओं से आमेर का इलाक़ा छीनकर इस स्थान पर अपनी राजधानी बनाई। ऐतिहासिकों का यह भी मत है कि आमेर का गिरिदुर्ग 967 ई॰ में ढोलाराज ने बनवाया था और यहीं 1150 ई॰ के लगभग कछवाहों ने अपनी राजधानी बनाई। 1300 ई॰ में जब राज्य के प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण किया तो आमेर नरेश राज्य के भीतरी भाग में चले गए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने क़िले को पुन: हस्तगत कर लिया और अलाउद्दीन से संधि कर ली। 1548-74 ई॰ में भारमल आमेर का राजा था। उसने [[हुमायूँ]] और [[अकबर]] से मैत्री की और अकबर के साथ अपनी पुत्री [[जोधाबाई]] का विवाह भी कर दिया। उसके पुत्र भगवान दास ने भी अकबर के पुत्र [[जहाँगीर|सलीम]] के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके पुराने मैत्री-सम्बन्ध बनाए रखे। भगवान दास को अकबर ने पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था। उसने 16 वर्ष तक आमेर में राज्य किया। उसके पश्चात उसका पुत्र [[मानसिंह]] 1590 ई॰ से 1614 ई॰ तक आमेर का राजा रहा। मानसिंह अकबर का विश्वस्त सेनापति था। | कछवाहा राजपूत अपने वंश का आदि पुरुष श्री [[राम]]चन्द्र जी के पुत्र [[लव कुश|कुश]] को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रारम्भ में उनके वंश के लोग रोहतासगढ़ (बिहार) में जाकर बसे थे। तीसरी शती ई॰ में वे लोग [[ग्वालियर]] चले आए। एक ऐतिहासिक [[अनुश्रुति]] के आधार पर यह भी कहा जाता है कि 1068 ई॰ के लगभग, [[अयोध्या]]-नरेश [[लक्ष्मण]] ने ग्वालियर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया और तत्पश्चात इनके वंशज दौसा नामक स्थान पर आए और उन्होंने मीणाओं से आमेर का इलाक़ा छीनकर इस स्थान पर अपनी राजधानी बनाई। ऐतिहासिकों का यह भी मत है कि आमेर का गिरिदुर्ग 967 ई॰ में ढोलाराज ने बनवाया था और यहीं 1150 ई॰ के लगभग कछवाहों ने अपनी राजधानी बनाई। 1300 ई॰ में जब राज्य के प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण किया तो आमेर नरेश राज्य के भीतरी भाग में चले गए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने क़िले को पुन: हस्तगत कर लिया और अलाउद्दीन से संधि कर ली। 1548-74 ई॰ में भारमल आमेर का राजा था। उसने [[हुमायूँ]] और [[अकबर]] से मैत्री की और अकबर के साथ अपनी पुत्री [[जोधाबाई]] का विवाह भी कर दिया। उसके पुत्र भगवान दास ने भी अकबर के पुत्र [[जहाँगीर|सलीम]] के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके पुराने मैत्री-सम्बन्ध बनाए रखे। भगवान दास को अकबर ने पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था। उसने 16 वर्ष तक आमेर में राज्य किया। उसके पश्चात उसका पुत्र [[मानसिंह]] 1590 ई॰ से 1614 ई॰ तक आमेर का राजा रहा। मानसिंह अकबर का विश्वस्त सेनापति था। | ||
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कहते हैं उसी के कहने से अकबर ने चित्तौड़ नरेश राणा प्रताप पर आक्रमण किया था (1577 ई॰)। मानसिंह के पश्चात जयसिंह प्रथम ने आमेर की गद्दी सम्हाली। उसने भी [[शाहजहाँ]] और [[औरंगज़ेब]] से मित्रता की नीति जारी रखी। जयसिंह प्रथम [[शिवाजी]] को औरंग़ज़ेब के दरबार में लाने में समर्थ हुआ था। कहा जाता है जयसिंह को औरंग़ज़ेब ने 1667 ई॰ में ज़हर देकर मरवा डाला था। 1699 ई॰ से 1743 ई॰ तक आमेर पर जयसिंह द्वितीय का राज्य रहा। इसने 'सवाई' का उपाधि ग्रहण की। यह बड़ा ज्योतिषविद और वास्तुकलाविशारद था। इसी ने 1728 ई॰ में वर्तमान जयपुर नगर बसाया। आमेर का प्राचीन दुर्ग एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जो 350 फुट ऊँची है। इस कारण इस नगर के विस्तार के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील(4.8 कि0 मी0 ) की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील(7.8 वर्ग कि0 मी0) रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। चौपड़ के नक्शे के अनुसार ही सड़कें बनवाई गई। पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाली मुख्य सड़क 111 फुट चौड़ी रखी गई। यह सड़क, एक दूसरी उतनी ही चौड़ी सड़क को ईश्वर लाट के निकट समकोण पर काटती थी। अन्य सड़कें 55 फुट चौड़ी रखी गई। ये मुख्य सड़क को कई स्थानों पर समकोणों पर काटती थी। कई गलियाँ जो चौड़ाई में इनकी आधी या 27 फुट थी, नगर के भीतरी भागों से आकर मुख्य सड़क में मिलती थी। सड़कों के किनारों के सारे मकान लाल बलुवा पत्थर के बनवाए गए थे जिससे सारा नगर गुलाबी रंग का दिखाई देता था। राजमहल नगर के केंद्र में बनाया गया था। यह सात मंज़िला है। इसमें एक दिवानेख़ास है। इसके समीप ही तत्कालीन सचिवालय--बावन कचहरी--स्थित है। 18 वीं शती में राजा माधोसिंह का बनवाया हुआ छ: मंज़िला हवामहल भी नगर की मुख्य सड़क पर ही दिखाई देता है। राजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर, [[दिल्ली]], [[मथुरा]], [[बनारस]], और [[उज्जयिनी|उज्जैन]] में वेधशालाएँ भी बनाई थी। जयपुर की वेधशाला इन सबसे बड़ी है। कहा जाता है कि जयसिंह को नगर का नक्शा बनाने में दो बंगाली पंड़ितों से विशेष सहायता प्राप्त हुई थी। | कहते हैं उसी के कहने से अकबर ने चित्तौड़ नरेश राणा प्रताप पर आक्रमण किया था (1577 ई॰)। मानसिंह के पश्चात जयसिंह प्रथम ने आमेर की गद्दी सम्हाली। उसने भी [[शाहजहाँ]] और [[औरंगज़ेब]] से मित्रता की नीति जारी रखी। जयसिंह प्रथम [[शिवाजी]] को औरंग़ज़ेब के दरबार में लाने में समर्थ हुआ था। कहा जाता है जयसिंह को औरंग़ज़ेब ने 1667 ई॰ में ज़हर देकर मरवा डाला था। 1699 ई॰ से 1743 ई॰ तक आमेर पर जयसिंह द्वितीय का राज्य रहा। इसने 'सवाई' का उपाधि ग्रहण की। यह बड़ा ज्योतिषविद और वास्तुकलाविशारद था। इसी ने 1728 ई॰ में वर्तमान जयपुर नगर बसाया। आमेर का प्राचीन दुर्ग एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जो 350 फुट ऊँची है। इस कारण इस नगर के विस्तार के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील(4.8 कि0 मी0 ) की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील(7.8 वर्ग कि0 मी0) रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। चौपड़ के नक्शे के अनुसार ही सड़कें बनवाई गई। पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाली मुख्य सड़क 111 फुट चौड़ी रखी गई। यह सड़क, एक दूसरी उतनी ही चौड़ी सड़क को ईश्वर लाट के निकट समकोण पर काटती थी। अन्य सड़कें 55 फुट चौड़ी रखी गई। ये मुख्य सड़क को कई स्थानों पर समकोणों पर काटती थी। कई गलियाँ जो चौड़ाई में इनकी आधी या 27 फुट थी, नगर के भीतरी भागों से आकर मुख्य सड़क में मिलती थी। सड़कों के किनारों के सारे मकान लाल बलुवा पत्थर के बनवाए गए थे जिससे सारा नगर गुलाबी रंग का दिखाई देता था। राजमहल नगर के केंद्र में बनाया गया था। यह सात मंज़िला है। इसमें एक दिवानेख़ास है। इसके समीप ही तत्कालीन सचिवालय--बावन कचहरी--स्थित है। 18 वीं शती में राजा माधोसिंह का बनवाया हुआ छ: मंज़िला हवामहल भी नगर की मुख्य सड़क पर ही दिखाई देता है। राजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर, [[दिल्ली]], [[मथुरा]], [[बनारस]], और [[उज्जयिनी|उज्जैन]] में वेधशालाएँ भी बनाई थी। जयपुर की वेधशाला इन सबसे बड़ी है। कहा जाता है कि जयसिंह को नगर का नक्शा बनाने में दो बंगाली पंड़ितों से विशेष सहायता प्राप्त हुई थी। | ||
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चित्र:Jal-Mahal-Jaipur.jpg|[[जल महल जयपुर|जल महल]], जयपुर | |||
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12:23, 23 मई 2010 का अवतरण
जयपुर / Jaipur
वर्तमान राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर 1947 ई॰ तक इसी नाम की एक देशी रियासत की राजधानी थी। कछवाहा राजा जयसिंह द्वितीय का बसाया हुआ राजस्थान का इतिहास प्रसिद्ध नगर है। इस नगर की स्थापना 1728 ई॰ में की थी और उन्हीं के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने किले हैं। यह बड़ा सुनियोजित नगर है। बाज़ार सब सीधी सड़कों के दोनों ओर हैं और इनके भवनों का निर्माण भी एक ही आकार-प्रकार का है। नगर के चारों ओर चौड़ी और ऊँची दीवार है, जिसमें सार द्वार हैं। यहाँ के भवनों के निर्माण में गुलाबी रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, इसलिए इसे 'गुलाबी नगर' भी कहते हैं। जयपुर में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें हवा महल, जंतर-मंतर और कुछ पुराने किले अधिक प्रसिद्ध हैं।
इतिहास
साँचा:High right इस नगर की स्थापना 1728 ई॰ में की थी और राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने किले हैं। साँचा:Table close
कछवाहा राजपूत अपने वंश का आदि पुरुष श्री रामचन्द्र जी के पुत्र कुश को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रारम्भ में उनके वंश के लोग रोहतासगढ़ (बिहार) में जाकर बसे थे। तीसरी शती ई॰ में वे लोग ग्वालियर चले आए। एक ऐतिहासिक अनुश्रुति के आधार पर यह भी कहा जाता है कि 1068 ई॰ के लगभग, अयोध्या-नरेश लक्ष्मण ने ग्वालियर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया और तत्पश्चात इनके वंशज दौसा नामक स्थान पर आए और उन्होंने मीणाओं से आमेर का इलाक़ा छीनकर इस स्थान पर अपनी राजधानी बनाई। ऐतिहासिकों का यह भी मत है कि आमेर का गिरिदुर्ग 967 ई॰ में ढोलाराज ने बनवाया था और यहीं 1150 ई॰ के लगभग कछवाहों ने अपनी राजधानी बनाई। 1300 ई॰ में जब राज्य के प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण किया तो आमेर नरेश राज्य के भीतरी भाग में चले गए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने क़िले को पुन: हस्तगत कर लिया और अलाउद्दीन से संधि कर ली। 1548-74 ई॰ में भारमल आमेर का राजा था। उसने हुमायूँ और अकबर से मैत्री की और अकबर के साथ अपनी पुत्री जोधाबाई का विवाह भी कर दिया। उसके पुत्र भगवान दास ने भी अकबर के पुत्र सलीम के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके पुराने मैत्री-सम्बन्ध बनाए रखे। भगवान दास को अकबर ने पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था। उसने 16 वर्ष तक आमेर में राज्य किया। उसके पश्चात उसका पुत्र मानसिंह 1590 ई॰ से 1614 ई॰ तक आमेर का राजा रहा। मानसिंह अकबर का विश्वस्त सेनापति था। साँचा:High left सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील (4.8 कि0 मी0 ) की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील (7.8 वर्ग कि0 मी0) रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। साँचा:Table close कहते हैं उसी के कहने से अकबर ने चित्तौड़ नरेश राणा प्रताप पर आक्रमण किया था (1577 ई॰)। मानसिंह के पश्चात जयसिंह प्रथम ने आमेर की गद्दी सम्हाली। उसने भी शाहजहाँ और औरंगज़ेब से मित्रता की नीति जारी रखी। जयसिंह प्रथम शिवाजी को औरंग़ज़ेब के दरबार में लाने में समर्थ हुआ था। कहा जाता है जयसिंह को औरंग़ज़ेब ने 1667 ई॰ में ज़हर देकर मरवा डाला था। 1699 ई॰ से 1743 ई॰ तक आमेर पर जयसिंह द्वितीय का राज्य रहा। इसने 'सवाई' का उपाधि ग्रहण की। यह बड़ा ज्योतिषविद और वास्तुकलाविशारद था। इसी ने 1728 ई॰ में वर्तमान जयपुर नगर बसाया। आमेर का प्राचीन दुर्ग एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जो 350 फुट ऊँची है। इस कारण इस नगर के विस्तार के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील(4.8 कि0 मी0 ) की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील(7.8 वर्ग कि0 मी0) रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। चौपड़ के नक्शे के अनुसार ही सड़कें बनवाई गई। पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाली मुख्य सड़क 111 फुट चौड़ी रखी गई। यह सड़क, एक दूसरी उतनी ही चौड़ी सड़क को ईश्वर लाट के निकट समकोण पर काटती थी। अन्य सड़कें 55 फुट चौड़ी रखी गई। ये मुख्य सड़क को कई स्थानों पर समकोणों पर काटती थी। कई गलियाँ जो चौड़ाई में इनकी आधी या 27 फुट थी, नगर के भीतरी भागों से आकर मुख्य सड़क में मिलती थी। सड़कों के किनारों के सारे मकान लाल बलुवा पत्थर के बनवाए गए थे जिससे सारा नगर गुलाबी रंग का दिखाई देता था। राजमहल नगर के केंद्र में बनाया गया था। यह सात मंज़िला है। इसमें एक दिवानेख़ास है। इसके समीप ही तत्कालीन सचिवालय--बावन कचहरी--स्थित है। 18 वीं शती में राजा माधोसिंह का बनवाया हुआ छ: मंज़िला हवामहल भी नगर की मुख्य सड़क पर ही दिखाई देता है। राजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर, दिल्ली, मथुरा, बनारस, और उज्जैन में वेधशालाएँ भी बनाई थी। जयपुर की वेधशाला इन सबसे बड़ी है। कहा जाता है कि जयसिंह को नगर का नक्शा बनाने में दो बंगाली पंड़ितों से विशेष सहायता प्राप्त हुई थी।
वीथिका
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[एल्बर्ट हॉल संग्रहालय, जयपुर
Albert Hall Museum, Jaipur -
जल महल, जयपुर