"आनंद (फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
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|-बॉलीवुड की ऐतिहासिक फिल्मों में से आनंद एक है। हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित आनंद उन गिनीचुनी फिल्मों में से एक है जो आज 41 साल बाद भी दिल को छू जाती है। फ़िल्म में चित्रित किया गया है कि किस तरह से एक मरता हुआ आदमी प्यार और मज़ाक से पूरी दुनिया को खुशियाँ बाँट सकता है और सब का दिल जीत सकता है। हृषिकेश मुखर्जी ने एक नये कलाकार [[अमिताभ बच्चन]] की जोड़ी उस समय के बड़े अभिनेता राजेश खन्ना के साथ बनाई। | |||
==कथानक== | |||
फ़िल्म की कहानी एक कैन्सर से पीड़ित रोगी आनंद (राजेश खन्ना) की है जो ज़िंदगी को हंस खेल कर जीना चाहता है किंतु उसके पास समय बहुत कम है। फ़िल्म प्रारम्भ होती है एक साहित्य पुरस्कार वितरण समारोह से जिसमें लेखक भास्कर बैनर्जी (अमिताभ बच्चन) अपनी पुस्तक 'आनंद' से पाठकों का परिचय करवाते है। भास्कर एक कैन्सर चिकित्सक है जो पीड़ितों की सेवा करने मे विश्वास रखता है और देश की ग़रीबी और भूखमरी से दूखी है। उसे लगता है कि वह एक रोगी का तो इलाज़ कर सकता है पर उनकी भूख और ग़रीबी का इलाज उसके पास नहीं है। ऐसे गंभीर डॉक्टर की मुलाक़ात होती है एक मज़ाकिया बक-बक करने वाले रोगी आनंद से, जो उसकी सोच और पूरी जिंदगी ही बदल देता है। | |||
==निर्देशन का कमाल== | |||
फ़िल्म का हर दृश्य अपने आप मे एक बात कह जाता है। फ़िल्म पूरी तरह से एक चिकित्सक और उसके रोगी पर केंद्रित रहती है। कहानी अपने उद्देश्य से ज़रा भी नही हटती और इसके लिए हृषिकेश मुखर्जी प्रशंसा के पात्र है। कहानी में राजेश खाना का मज़ाकिया चरित्र और उसके बिल्कुल विपरीत अमिताभ का गंभीर चरित्र का चित्रण प्रशंसा योग्य है। | |||
जहाँ एक ओर फिल्म राजेश खन्ना के हँसी और मज़ाक का संदेश फैलाती है वही फिल्म एक चिकित्सक के दृष्टिकोण को भी ध्यान में रखती है। निर्देशक ने उस बेबसी और लाचारी को बेहतरीन तरीके से दर्शकों के सामने पेश किया है। | |||
==अभिनय== | |||
अभिनय ऐसा कि जैसे हर चरित्र उस अभिनेता के लिए ही लिखा गया हो। जहाँ राजेश खन्ना की मज़ाक, मस्ती और बक-बक फ़िल्म में जान डाल देती है, वहीं नये अभिनेता अमिताभ बच्चन की गंभीर अदाकारी सराहनीय है। फ़िल्म ख़त्म होने तक दर्शक आनंद के साथ जुड़ जाते हैं और उसकी दशा से दयनीय महसूस करने लगते है। राजेश खन्ना जैसे बड़े कलाकार के होने के बावजूद अमिताभ अपनी अलग पहचान बनाने मे सफल रहे और एक महानायक बनने के पूरे संकेत दिए। रमेश देव ने अपना चरित्र बख़ूबी अभिनीत किया है। सीमा देव का चरित्र सीमित है पर वे भी अपनी छाप छोड़ने मे सफल रही हैं। | |||
==संगीत== | |||
फ़िल्म का संगीत सराहनीय है और कहानी को आगे बढ़ाने में मददगार है। सभी गाने दर्शकों को बेहद पसंद आए है। ज़िंदगी कैसी है पहेली, कही दूर जब दिन ढल जाए 41 साल बाद भी दर्शकों को पसंद आते है। | |||
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|+ आनंद फ़िल्म के गाने<ref>{{cite web |url=http://filmkahani.com/bollywood-old-songs-lyrics/anand-kahin-door-jab-din-dhal-jaaye-lyrics.html|title=आनंद (Anand Movie)|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | |||
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| 1. | |||
| ज़िन्दगी कैसी है पहेली | |||
| मन्ना डे | |||
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| 2. | |||
| मैने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने | |||
| [[मुकेश]] | |||
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| 3. | |||
| कही दूर जब दिन ढल जाए | |||
| [[मुकेश]] | |||
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| 4. | |||
| कही दूर जब दिन ढल जाए | |||
| [[लता मंगेशकर]] | |||
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| 5. | |||
| ना जिया जाये ना | |||
| [[लता मंगेशकर]] | |||
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==पुरस्कार== | |||
फ़िल्मफ़ेयर का पुरस्कार 1972 | |||
*बेस्ट एक्टर - राजेश खन्ना | |||
*बेस्ट डायलॉग - गुलज़ार | |||
*बेस्ट एडिटर - हृषिकेश मुखर्जी | |||
*बेस्ट फ़िल्म - हृषिकेश मुखर्जी, एन.सी. सिप्पी | |||
*बेस्ट स्टोरी - हृषिकेश मुखर्जी | |||
*सर्वश्रेष्ठ सह-कलाकार - अमिताभ बच्चन भी मिला। | |||
==संवाद== | |||
फ़िल्म के संवाद बेहतरीन हैं और दर्शकों को हँसाने के साथ साथ मायूस भी कर देते हैं। जगह जगह पर दिल को छू जाने वाले संवाद हैं और निश्चित रूप से यह गुलज़ार के सबसे बेहतरीन कामों में से एक है। | |||
;फिल्म के कुछ यादगार संवाद: | |||
*ज़िंदगी और मौत उपर वाले के हाथ है जाँहपनाह, जिसे ना आप बदल सकते है ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलिया हैं, जिसकी डोर उपर वाले के हाथ बँधी है; कब, कौन, कैसे उठेगा, ये कोई नही जानता। | |||
<poem> | |||
*मौत तू एक कविता है | |||
मुझसे इक कविता का वादा है | |||
मिलेगी मुझको | |||
डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे | |||
झर्द सा चेहरा लिए चाँद उफक तक पहुँचे | |||
दिन अभी पानी में हो | |||
रात किनारे के करीब | |||
ना अंधेरा, ना उजाला हो | |||
ना आधी रात, ना दिन | |||
जिस्म जब ख़त्म हो | |||
और रूह को जब साँस | |||
मुझसे इक कविता का वादा है | |||
मिलेगी मुझको.....</poem> | |||
*क्या फ़र्क हैं 70 साल और 6 महीने में। मौत तो एक पल है बाबु मोशाय। आने वाले 6 महीनो में जो लाखों पल मैं जीने वाला हूँ, उसका क्या होगा बाबु मोशाय। ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नही। हद कर दी। मौत के डर से अगर जीना छोड़ दिया, तो मौत किसे कहते हैं। बाबु मोशाय जब तक ज़िंदा हूँ, तब तक मरा नही, जब मर गया साला, मैं ही नहीं तो फिर डर किस बात का। ए बाबु मोशाय! अपनी ज़िंदगी बड़ी है, लेकिन वक़्त बहुत कम है, इसलिए जल्दी जल्दी जीना पड़ता है। | |||
*अगर आपको पता हो कि आपकी ज़िंदगी कुछ ही दिनों, महीनों में ख़त्म होने वाली है तो आप अपनी बाक़ी ज़िंदगी कैसे बसर करेंगें? मरने के ग़म में या फिर अपनी बाक़ी की जिंदगी हँसी खुशी बाँटने में...? | |||
==स्थान== | |||
ऐसे विषयों पर कई फ़िल्में बनी हैं पर उनमे से कोई भी ऐसी नही है जो आनंद के आस पास भी आ सके। फिल्म को कम से कम एक बार देखना अनिवार्य है। | |||
;पात्र परिचय | |||
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|+ आनंद फ़िल्म के पात्रों का परिचय<ref>{{cite web |url=http://www.imdb.com/title/tt0066763/fullcredits#cast|title=Anand (1971)|accessmonthday=3 फरवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | |+ आनंद फ़िल्म के पात्रों का परिचय<ref>{{cite web |url=http://www.imdb.com/title/tt0066763/fullcredits#cast|title=Anand (1971)|accessmonthday=3 फरवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
07:12, 4 फ़रवरी 2012 का अवतरण
आनंद (फ़िल्म)
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निर्देशक | हृषिकेश मुख़र्जी |
निर्माता | हृषिकेश मुख़र्जी, एन.सी. सिप्पी |
कहानी | हृषिकेश मुख़र्जी |
पटकथा | हृषिकेश मुख़र्जी, गुलज़ार, डी.एन.मुखर्जी, बिमल दत्त, |
संवाद | गुलज़ार |
कलाकार | राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, रमेश देव, सीमा देव |
संगीत | सलिल चौधरी |
गीतकार | गुलज़ार, योगेश |
गायक | लता मंगेशकर, मन्ना डे, मुकेश |
प्रसिद्ध गीत | ज़िंदगी कैसी है पहेली, कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाये |
छायांकन | जयवंत पाठारे |
संपादन | हृषिकेश मुख़र्जी |
प्रदर्शन तिथि | 5 मार्च, 1971 |
भाषा | हिन्दी |
देश | भारत |
कला निर्देशक | अजीत बैनर्जी |
|-बॉलीवुड की ऐतिहासिक फिल्मों में से आनंद एक है। हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित आनंद उन गिनीचुनी फिल्मों में से एक है जो आज 41 साल बाद भी दिल को छू जाती है। फ़िल्म में चित्रित किया गया है कि किस तरह से एक मरता हुआ आदमी प्यार और मज़ाक से पूरी दुनिया को खुशियाँ बाँट सकता है और सब का दिल जीत सकता है। हृषिकेश मुखर्जी ने एक नये कलाकार अमिताभ बच्चन की जोड़ी उस समय के बड़े अभिनेता राजेश खन्ना के साथ बनाई।
कथानक
फ़िल्म की कहानी एक कैन्सर से पीड़ित रोगी आनंद (राजेश खन्ना) की है जो ज़िंदगी को हंस खेल कर जीना चाहता है किंतु उसके पास समय बहुत कम है। फ़िल्म प्रारम्भ होती है एक साहित्य पुरस्कार वितरण समारोह से जिसमें लेखक भास्कर बैनर्जी (अमिताभ बच्चन) अपनी पुस्तक 'आनंद' से पाठकों का परिचय करवाते है। भास्कर एक कैन्सर चिकित्सक है जो पीड़ितों की सेवा करने मे विश्वास रखता है और देश की ग़रीबी और भूखमरी से दूखी है। उसे लगता है कि वह एक रोगी का तो इलाज़ कर सकता है पर उनकी भूख और ग़रीबी का इलाज उसके पास नहीं है। ऐसे गंभीर डॉक्टर की मुलाक़ात होती है एक मज़ाकिया बक-बक करने वाले रोगी आनंद से, जो उसकी सोच और पूरी जिंदगी ही बदल देता है।
निर्देशन का कमाल
फ़िल्म का हर दृश्य अपने आप मे एक बात कह जाता है। फ़िल्म पूरी तरह से एक चिकित्सक और उसके रोगी पर केंद्रित रहती है। कहानी अपने उद्देश्य से ज़रा भी नही हटती और इसके लिए हृषिकेश मुखर्जी प्रशंसा के पात्र है। कहानी में राजेश खाना का मज़ाकिया चरित्र और उसके बिल्कुल विपरीत अमिताभ का गंभीर चरित्र का चित्रण प्रशंसा योग्य है। जहाँ एक ओर फिल्म राजेश खन्ना के हँसी और मज़ाक का संदेश फैलाती है वही फिल्म एक चिकित्सक के दृष्टिकोण को भी ध्यान में रखती है। निर्देशक ने उस बेबसी और लाचारी को बेहतरीन तरीके से दर्शकों के सामने पेश किया है।
अभिनय
अभिनय ऐसा कि जैसे हर चरित्र उस अभिनेता के लिए ही लिखा गया हो। जहाँ राजेश खन्ना की मज़ाक, मस्ती और बक-बक फ़िल्म में जान डाल देती है, वहीं नये अभिनेता अमिताभ बच्चन की गंभीर अदाकारी सराहनीय है। फ़िल्म ख़त्म होने तक दर्शक आनंद के साथ जुड़ जाते हैं और उसकी दशा से दयनीय महसूस करने लगते है। राजेश खन्ना जैसे बड़े कलाकार के होने के बावजूद अमिताभ अपनी अलग पहचान बनाने मे सफल रहे और एक महानायक बनने के पूरे संकेत दिए। रमेश देव ने अपना चरित्र बख़ूबी अभिनीत किया है। सीमा देव का चरित्र सीमित है पर वे भी अपनी छाप छोड़ने मे सफल रही हैं।
संगीत
फ़िल्म का संगीत सराहनीय है और कहानी को आगे बढ़ाने में मददगार है। सभी गाने दर्शकों को बेहद पसंद आए है। ज़िंदगी कैसी है पहेली, कही दूर जब दिन ढल जाए 41 साल बाद भी दर्शकों को पसंद आते है।
क्रमांक | गाना | गायक/गायिका का नाम |
---|---|---|
1. | ज़िन्दगी कैसी है पहेली | मन्ना डे |
2. | मैने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने | मुकेश |
3. | कही दूर जब दिन ढल जाए | मुकेश |
4. | कही दूर जब दिन ढल जाए | लता मंगेशकर |
5. | ना जिया जाये ना | लता मंगेशकर |
पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर का पुरस्कार 1972
- बेस्ट एक्टर - राजेश खन्ना
- बेस्ट डायलॉग - गुलज़ार
- बेस्ट एडिटर - हृषिकेश मुखर्जी
- बेस्ट फ़िल्म - हृषिकेश मुखर्जी, एन.सी. सिप्पी
- बेस्ट स्टोरी - हृषिकेश मुखर्जी
- सर्वश्रेष्ठ सह-कलाकार - अमिताभ बच्चन भी मिला।
संवाद
फ़िल्म के संवाद बेहतरीन हैं और दर्शकों को हँसाने के साथ साथ मायूस भी कर देते हैं। जगह जगह पर दिल को छू जाने वाले संवाद हैं और निश्चित रूप से यह गुलज़ार के सबसे बेहतरीन कामों में से एक है।
- फिल्म के कुछ यादगार संवाद
- ज़िंदगी और मौत उपर वाले के हाथ है जाँहपनाह, जिसे ना आप बदल सकते है ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलिया हैं, जिसकी डोर उपर वाले के हाथ बँधी है; कब, कौन, कैसे उठेगा, ये कोई नही जानता।
- मौत तू एक कविता है
मुझसे इक कविता का वादा है
मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
झर्द सा चेहरा लिए चाँद उफक तक पहुँचे
दिन अभी पानी में हो
रात किनारे के करीब
ना अंधेरा, ना उजाला हो
ना आधी रात, ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो
और रूह को जब साँस
मुझसे इक कविता का वादा है
मिलेगी मुझको.....
- क्या फ़र्क हैं 70 साल और 6 महीने में। मौत तो एक पल है बाबु मोशाय। आने वाले 6 महीनो में जो लाखों पल मैं जीने वाला हूँ, उसका क्या होगा बाबु मोशाय। ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नही। हद कर दी। मौत के डर से अगर जीना छोड़ दिया, तो मौत किसे कहते हैं। बाबु मोशाय जब तक ज़िंदा हूँ, तब तक मरा नही, जब मर गया साला, मैं ही नहीं तो फिर डर किस बात का। ए बाबु मोशाय! अपनी ज़िंदगी बड़ी है, लेकिन वक़्त बहुत कम है, इसलिए जल्दी जल्दी जीना पड़ता है।
- अगर आपको पता हो कि आपकी ज़िंदगी कुछ ही दिनों, महीनों में ख़त्म होने वाली है तो आप अपनी बाक़ी ज़िंदगी कैसे बसर करेंगें? मरने के ग़म में या फिर अपनी बाक़ी की जिंदगी हँसी खुशी बाँटने में...?
स्थान
ऐसे विषयों पर कई फ़िल्में बनी हैं पर उनमे से कोई भी ऐसी नही है जो आनंद के आस पास भी आ सके। फिल्म को कम से कम एक बार देखना अनिवार्य है।
- पात्र परिचय
क्रमांक | कलाकार | पात्र का नाम | चित्र |
---|---|---|---|
1. | राजेश खन्ना | आनंद सहगल / जयचंद | |
2. | अमिताभ बच्चन | डॉ. भास्कर के. बैनर्जी / बाबू मोशाय | |
3. | सुमिता सान्याल | रेणु | |
4. | रमेश देव | डॉ. प्रकाश कुलकर्णी | |
5. | सीमा देव | श्रीमती सुमन कुलकर्णी | |
6. | असित सेन | चंद्रनाथ / मुरारीलाल | |
7. | दुर्गा खोटे (मेहमान कलाकार) | रेणु की माता | |
8. | दारा सिंह (मेहमान कलाकार) | मुख्य पहलवान | |
9. | जॉनी वॉकर (मेहमान कलाकार) | ईसा भाई सूरतवाला / मुरारीलाल | |
10. | ललिता पवार | मैट्रेन डी'सा | चित्र:Lalita-pawar.jpg |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आनंद (Anand Movie) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
- ↑ Anand (1971) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 3 फरवरी, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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