"ज़िन्दाँ रानी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
*युद्ध की समाप्ति पर दलीप सिंह को गद्दी से उतार दिया गया।  
*युद्ध की समाप्ति पर दलीप सिंह को गद्दी से उतार दिया गया।  
*लाहौर का राजप्रबंध अंग्रेज़ी सरकार के हाथ आने पुर कुछ गलतफहमी के कारण इस महारानी को गवर्नमैंट ने लहौरों ले जाकर पहले शेखूपुरे नज़रबंद रखा, फिर १੯. अगस्त थे १८४੯ को चुनार (यू. पी. ज़िला मिर्जापुर) के खुंटे कैद कीया। यहाँ से यह फ़कीरी भेस में कैद से निकल कर नेपाल चली गई और वहाँ सम्मान सहित रही।
*लाहौर का राजप्रबंध अंग्रेज़ी सरकार के हाथ आने पुर कुछ गलतफहमी के कारण इस महारानी को गवर्नमैंट ने लहौरों ले जाकर पहले शेखूपुरे नज़रबंद रखा, फिर १੯. अगस्त थे १८४੯ को चुनार (यू. पी. ज़िला मिर्जापुर) के खुंटे कैद कीया। यहाँ से यह फ़कीरी भेस में कैद से निकल कर नेपाल चली गई और वहाँ सम्मान सहित रही।
*१८६१ में महारानी जिन्दकौर अपने बेटो के दर्शन के लिए इंग्लैंड पहुची। वहाँ १. अगस्त थे १८६३ को इस का देहांत ४६ वर्ष की उम्र में लंदन हुआ।[[चित्र:Rani_jindan.jpg]] इनकी लाश का दाह हिंदुस्तान में बम्बई अहाते के नासिक नगर किया गया । २७ मार्च थे १੯२४ को महाराजा दलीप सिंह की शाहज़ादी बंबा दलीप सिंह ने नासिक से भस्म लाकर महाराजा रणजीत सिंह की समाधी के पास, सरदार हरबंस सिंह रईस अटारी से अरदास करवा कर, लाहौर स्थापित की ।
*१८६१ में महारानी जिन्दकौर अपने बेटो के दर्शन के लिए इंग्लैंड पहुची। वहाँ १. अगस्त थे १८६३ को इस का देहांत ४६ वर्ष की उम्र में लंदन हुआ। इनकी लाश का दाह हिंदुस्तान में बम्बई अहाते के नासिक नगर किया गया । २७ मार्च थे १੯२४ को महाराजा दलीप सिंह की शाहज़ादी बंबा दलीप सिंह ने नासिक से भस्म लाकर महाराजा रणजीत सिंह की समाधी के पास, सरदार हरबंस सिंह रईस अटारी से अरदास करवा कर, लाहौर स्थापित की ।
[[चित्र:Rani_jindan.jpg]]
   
   
{{प्रचार}}
{{प्रचार}}

15:08, 21 मार्च 2012 का अवतरण

  • रानी ज़िन्दाँ पिंड चॉढ (ज़िला सियालकोट, तसील जफरवाल) निवासी सरदार मन्ना सिंह औलख जाट की पुत्री थी।
  • ज़िन्दाँ रानी पंजाब के महाराज रणजीत सिंह की पाँचवी रानी तथा उनके सबसे छोटे बेटे दलीप सिंह की माँ थीं।
  • 1843 ई. में जब दलीप सिंह गद्दी पर बैठा तो वह नाबालिग था, अतएव ज़िन्दाँ रानी उसकी संरक्षिका बनी। परन्तु वह इस पद भार को सम्भाल नहीं सकी और 1845 ई. में प्रथम सिखयुद्ध छिड़ गया।
  • जब 1846 ई. में लाहौर की संधि के द्वारा प्रथम सिखयुद्ध समाप्त हुआ तो ज़िन्दाँ रानी दलीप सिंह की संरक्षिका बनी रही। परन्तु उसकी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार उसे संदेह की दृष्टि से देखने लगी और 1848 ई. में षड्यंत्र रचने के अभियोग में उसे लाहौर से हटा दिया गया। द्वितीय सिखयुद्ध (1849 ई.) जिन कारणों से छिड़ा, उनमें एक कारण यह भी था। इस युद्ध में भी सिखों की हार हुई।
  • युद्ध की समाप्ति पर दलीप सिंह को गद्दी से उतार दिया गया।
  • लाहौर का राजप्रबंध अंग्रेज़ी सरकार के हाथ आने पुर कुछ गलतफहमी के कारण इस महारानी को गवर्नमैंट ने लहौरों ले जाकर पहले शेखूपुरे नज़रबंद रखा, फिर १੯. अगस्त थे १८४੯ को चुनार (यू. पी. ज़िला मिर्जापुर) के खुंटे कैद कीया। यहाँ से यह फ़कीरी भेस में कैद से निकल कर नेपाल चली गई और वहाँ सम्मान सहित रही।
  • १८६१ में महारानी जिन्दकौर अपने बेटो के दर्शन के लिए इंग्लैंड पहुची। वहाँ १. अगस्त थे १८६३ को इस का देहांत ४६ वर्ष की उम्र में लंदन हुआ। इनकी लाश का दाह हिंदुस्तान में बम्बई अहाते के नासिक नगर किया गया । २७ मार्च थे १੯२४ को महाराजा दलीप सिंह की शाहज़ादी बंबा दलीप सिंह ने नासिक से भस्म लाकर महाराजा रणजीत सिंह की समाधी के पास, सरदार हरबंस सिंह रईस अटारी से अरदास करवा कर, लाहौर स्थापित की ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-170

संबंधित लेख