"सप्त सिंघव": अवतरणों में अंतर
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*अस्क्नी([[चिनाव नदी|चिनाव]]) | *विपासा([[व्यास नदी|व्यास]]) | ||
*आतुल([[सतलुज नदी|सतलुज]]) | |||
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*अस्क्नी([[चिनाव नदी|चिनाव]]) | |||
*परूसी([[रावी नदी|रावी]]) | *परूसी([[रावी नदी|रावी]]) | ||
*[[सरस्वती नदी|सरस्वती]] | *[[सरस्वती नदी|सरस्वती]] | ||
==पुराण उल्लेख== | |||
[[महाभारत]] के अनुसार- गंगा, यमुना, प्लक्षगा, रथस्था, [[सरयू नदी|सरयू]], [[गोमती नदी|गोमती]] और [[गण्डक नदी|गण्डक]] अथवा वस्कोकसारा, नलिनी, [[पावनी नदी|पावनी]], [[गंगा]], सीता, [[सिन्धु नदी|सिन्धु]] और जम्बू नदी ही सात नदियाँ हैं। [[रामायण]] और पुराणानुसार [[शिव]] की जटा से गिरने के बाद गंगा की सात धाराएँ- नलिनी, हलादिनी और पावनी पूर्व की ओर बहने वाली तीन धाराएँ तथा तथा [[चक्षु नदी|चक्षु]], सीता और सिन्धु पश्चिम की ओर बहने वाली तीन धाराएँ और सातवीं [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] दक्षिण की ओर बहने वाली धारा बनी। [[पुराण|पुराणों]] में क्षीरोद, दध्युद, धृतोद, सुनेद, लवणोद, ईक्षूद और स्वादूद। ये सात सप्त सिंधव माने गए हैं। | |||
नई संभावनाओं से यह विचार और दृढ़ होता है कि प्राचीन सप्त सिंधव और निकटवर्ती प्रदेश [[ब्रह्मावर्त]] में [[वेद|वेदों]] का उदय और वैदिक संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ होगा। | |||
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09:39, 22 मार्च 2012 का अवतरण
सप्त सिंधव आर्य लोगों का प्रारम्भिक निवास स्थान माना जाता है। वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती, सतलुज, परुष्णी, मरुद्वधा और आर्जीकीया सात नदियों का उल्लेख है। सप्त सिंधव भारतवर्ष का उत्तर पश्चिमी भाग था। मान्यताओं के अनुसार यही सृष्टि का आरंभिक स्थल और आर्यों का आदि देश था।
विस्तार
सप्त सिंघव देश का फैलाव कश्मीर, पाकिस्तान और पंजाब के अधिकांश भाग में था। आर्य, उत्तरी ध्रुव, मध्य एशिया अथवा किसी अन्य स्थान से भारत आये हों, भारतीय मान्यता में पूर्ण रूप से स्वीकार्य नहीं है। भारत में ही नहीं विश्व भर में संख्या 'सात' का आश्चर्यजनक मह्त्व है, जैसे सात सुर, सात रंग, सप्त-ॠषि, सात सागर, आदि। इसी तरह सात नदियों के कारण सप्त सिंघव देश का नामकरण हुआ था। वे नदियाँ हैं-
पुराण उल्लेख
महाभारत के अनुसार- गंगा, यमुना, प्लक्षगा, रथस्था, सरयू, गोमती और गण्डक अथवा वस्कोकसारा, नलिनी, पावनी, गंगा, सीता, सिन्धु और जम्बू नदी ही सात नदियाँ हैं। रामायण और पुराणानुसार शिव की जटा से गिरने के बाद गंगा की सात धाराएँ- नलिनी, हलादिनी और पावनी पूर्व की ओर बहने वाली तीन धाराएँ तथा तथा चक्षु, सीता और सिन्धु पश्चिम की ओर बहने वाली तीन धाराएँ और सातवीं भागीरथी दक्षिण की ओर बहने वाली धारा बनी। पुराणों में क्षीरोद, दध्युद, धृतोद, सुनेद, लवणोद, ईक्षूद और स्वादूद। ये सात सप्त सिंधव माने गए हैं।
नई संभावनाओं से यह विचार और दृढ़ होता है कि प्राचीन सप्त सिंधव और निकटवर्ती प्रदेश ब्रह्मावर्त में वेदों का उदय और वैदिक संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ होगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख