"महालवाड़ी व्यवस्था": अवतरणों में अंतर
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'''महालवाड़ी व्यवस्था''' का प्रस्ताव सर्वप्रथम 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया था। इस व्यवस्था के अंतर्गत भूमि पर ग्राम समुदाय का सामूहिक अधिकार होता था। | |||
*इस समुदाय के सदस्य अलग-अलग या फिर संयुक्त रूप से लगान की अदायगी कर सकते थे। | *इस समुदाय के सदस्य अलग-अलग या फिर संयुक्त रूप से लगान की अदायगी कर सकते थे। | ||
*सरकारी लगान को एकत्र करने के प्रति पूरा 'महाल' या 'क्षेत्र' सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार होता था। | *सरकारी लगान को एकत्र करने के प्रति पूरा 'महाल' या 'क्षेत्र' सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार होता था। |
05:24, 19 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
महालवाड़ी व्यवस्था का प्रस्ताव सर्वप्रथम 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया था। इस व्यवस्था के अंतर्गत भूमि पर ग्राम समुदाय का सामूहिक अधिकार होता था।
- इस समुदाय के सदस्य अलग-अलग या फिर संयुक्त रूप से लगान की अदायगी कर सकते थे।
- सरकारी लगान को एकत्र करने के प्रति पूरा 'महाल' या 'क्षेत्र' सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार होता था।
- महाल के अंतर्गत छोटे व बड़े सभी स्तर के ज़मींदार आते थे।
- महालवाड़ी व्यवस्था का प्रस्ताव सर्वप्रथम 1819 ई. में 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया था।
- इस प्रस्ताव को 1822 ई. के रेग्यूलेशन-7 द्वारा क़ानूनी रूप प्रदान किया गया।
- यह व्यवस्था उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा पंजाब में सर्वप्रथम लागू की गई।
- महालवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत ब्रिटिश भारत की भूमि का लगभग 30% भाग सम्मिलित था।
- इस व्यवस्था में प्रारम्भ में लगान की दर कुल उपज का 80% निश्चित की गई थी।
- कालान्तर में लॉर्ड विलियम बैंटिक ने मार्टिन बर्ड, जिन्हें उत्तरी भारत में भूमि कर व्यवस्था का प्रवर्तक माना जाता है, के सहयोग से 1833 ई. का रेग्यूलेशन-9 पारित करवाया।
- इसके अनुसार इस दर को कम करके 66% कर दिया गया।
- 1855 ई. में पुन: सहारनपुर नियम के अनुसार लॉर्ड डलहौज़ी ने लगान की दर को 50% निश्चित किया।
- इस व्यवस्था का परिणाम भी कृषकों के प्रतिकूल रहा, परिणामत: 1857 ई. के विद्रोह में इस व्यवस्था से प्रभावित बहुत से लोगों ने हिस्सा लिया।
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