"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/4": अवतरणों में अंतर
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गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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-[[कैलास पर्वत|कैलास]] | -[[कैलास पर्वत|कैलास]] | ||
-[[पारसनाथ शिखर|पारसनाथ]] | -[[पारसनाथ शिखर|पारसनाथ]] | ||
||[[चित्र:Ram-Hanuman.jpg|right|100px|राम-हनुमान मिलन]][[वाल्मीकि रामायण]] में वर्णित वानरों की राजधानी [[किष्किंधा]] के निकट ' | ||[[चित्र:Ram-Hanuman.jpg|right|100px|राम-हनुमान मिलन]][[वाल्मीकि रामायण]] में वर्णित वानरों की राजधानी [[किष्किंधा]] के निकट 'ऋष्यमूक पर्वत' स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत [[रामायण]] की घटनाओं से सम्बद्ध [[दक्षिण भारत]] का एक पवित्र पर्वत है। यहाँ [[विरूपाक्ष मन्दिर]] के पास से ऋष्यमूक पर्वत के लिए मार्ग जाता है। यहीं पर [[हनुमान]] की भेंट श्री राम से हुई, जिनके द्वारा [[सुग्रीव]] और [[राम]] की मित्रता हुई। यहाँ [[तुंगभद्रा नदी]] [[धनुष अस्त्र|धनुष]] के आकार में बहती है। [[सुग्रीव]] किष्किंधा से निष्कासित होने पर अपने भाई [[बालि]] के डर से इसी [[पर्वत]] पर छिप कर रहता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋष्यमूक पर्वत|ऋष्यमूक]] | ||
{[[हनुमान]] के [[पिता]] का नाम क्या था? | {[[हनुमान]] के [[पिता]] का नाम क्या था? | ||
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+[[केसरी वानर राज|केसरी]] | +[[केसरी वानर राज|केसरी]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
|| '''हनुमान''' केसरी और [[अंजना]] (अंजनी) देवी के पुत्र थे। अंजना वास्तव में पुन्जिकस्थला नाम की एक स्वर्ग अप्सरा थी, जो एक शाप के कारण नारी वानर के रूप में धरती पर जन्मी। उस शाप का प्रभाव भगवान [[शिव]] के अंश को जन्म देने के बाद ही समाप्त होने का योग था। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केसरी वानर राज|केसरी]] | |||
{निम्न में से किसने [[हनुमान]] की ठोड़ी पर [[वज्र अस्त्र|वज्र]] से प्रहार किया था? | {निम्न में से किसने [[हनुमान]] की ठोड़ी पर [[वज्र अस्त्र|वज्र]] से प्रहार किया था? | ||
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-[[रावण]] | -[[रावण]] | ||
-[[मेघनाद]] | -[[मेघनाद]] | ||
||[[चित्र:Hanuman.jpg|right|100px|हनुमान]]जब | ||[[चित्र:Hanuman.jpg|right|100px|हनुमान]]जब [[राहु]] ने देखा कि [[हनुमान]] [[सूर्य]] को निगलने जा रहा है, तब वह [[इन्द्र]] के पास गया और बोला- 'मैं सूर्य को ग्रसने गया था, किंतु वहाँ तो कोई और ही जा रहा है।' इन्द्र क्रुद्ध होकर [[ऐरावत]] पर बैठकर चल पड़े। राहु उनसे भी पहले घटनास्थल पर आ पहुँचा। हनुमान ने उसे भी [[फल]] समझा तथा उसकी ओर झपटे। उसने इन्द्र को आवाज़ दी। हनुमान ने ऐरावत को देखा और उसे भी बड़ा फल जानकर वे पकड़ने के लिए बढ़े। इन्द्र ने क्रुद्ध होकर अपने [[वज्र अस्त्र|वज्र]] से प्रहार किया, जिससे हनुमान की बायीं ठोड़ी टूट गयी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हनुमान]] | ||
{निम्नलिखित में से [[शत्रुघ्न]] के पुत्र कौन थे? | {निम्नलिखित में से [[शत्रुघ्न]] के पुत्र कौन थे? | ||
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+[[शबरी]] | +[[शबरी]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||'शबरी' का वास्तविक नाम 'श्रमणा' था और वह [[भील]] समुदाय की 'शबरी' जाति से संबंध रखती थी। [[शबरी]] के [[पिता]] भीलों के राजा थे। [[सीता]] की खोज में जब [[राम]] और [[लक्ष्मण]] उसकी कुटिया में पधारे, तब उसने राम का सत्कार किया और उन्हें सीता की खोज के लिये [[सुग्रीव]] से मित्रता करने की सलाह दी। भगवान श्री राम के दर्शन करने के बाद वह स्वयं को योगाग्नि में भस्म करके सदा के लिये श्री राम के चरणों में लीन हो | ||'शबरी' का वास्तविक नाम 'श्रमणा' था और वह [[भील]] समुदाय की 'शबरी' जाति से संबंध रखती थी। [[शबरी]] के [[पिता]] भीलों के राजा थे। [[सीता]] की खोज में जब [[राम]] और [[लक्ष्मण]] उसकी कुटिया में पधारे, तब उसने राम का सत्कार किया और उन्हें सीता की खोज के लिये [[सुग्रीव]] से मित्रता करने की सलाह दी। भगवान श्री राम के दर्शन करने के बाद वह स्वयं को योगाग्नि में भस्म करके सदा के लिये श्री राम के चरणों में लीन हो गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शबरी]] | ||
{निम्न में से किस स्त्री को मतंग ऋषि ने आश्रय प्रदान किया? | {निम्न में से किस स्त्री को मतंग ऋषि ने आश्रय प्रदान किया? | ||
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-[[उर्मिला]] | -[[उर्मिला]] | ||
-[[देवयानी]] | -[[देवयानी]] | ||
||[[विवाह]] की रात शबरी घर से भागकर जंगल में आ गयी, किंतु निम्न जाति की होने के कारण उसे कहीं आश्रय नहीं मिला। वह रात्रि में जल्दी उठकर, जिधर से [[ऋषि]] निकलते, उस रास्ते को नदी तक साफ करती। कँकरीली ज़मीन में बालू बिछा आती। जंगल में जाकर लकड़ी काटकर डाल आती। इन सब कामों को वह इतनी तत्परता से छिपकर करती कि कोई ऋषि देख न ले। यह कार्य वह कई वर्षों तक करती रही। अन्त में 'मतंग' ऋषि ने उस पर कृपा की। महर्षि मतंग ने सामाजिक बहिष्कार स्वीकार किया, किन्तु शरणागत शबरी का त्याग नहीं किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शबरी]] | ||[[विवाह]] की रात शबरी घर से भागकर जंगल में आ गयी, किंतु निम्न जाति की होने के कारण उसे कहीं आश्रय नहीं मिला। वह रात्रि में जल्दी उठकर, जिधर से [[ऋषि]] निकलते, उस रास्ते को नदी तक साफ करती। कँकरीली ज़मीन में बालू बिछा आती। जंगल में जाकर लकड़ी काटकर डाल आती। इन सब कामों को वह इतनी तत्परता से छिपकर करती कि कोई ऋषि देख न ले। यह कार्य वह कई वर्षों तक करती रही। अन्त में 'मतंग' ऋषि ने उस पर कृपा की। महर्षि मतंग ने सामाजिक बहिष्कार स्वीकार किया, किन्तु शरणागत शबरी का त्याग नहीं किया। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शबरी]] | ||
{निम्न में से किस वानर ने [[दुंदुभी दैत्य]] का वध किया था? | {निम्न में से किस वानर ने [[दुंदुभी दैत्य]] का वध किया था? | ||
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+[[बालि]] | +[[बालि]] | ||
-[[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]] | -[[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]] | ||
||[[दुंदुभी दैत्य|दुंदुभी]] [[कैलास पर्वत]] के समान एक विशाल [[दैत्य]] था, जिसमें हज़ार [[हाथी|हाथियों]] का बल था। एक भयंकर युद्ध में दुंदुभी का वध [[बालि]] के हाथों हुआ, जिसने उसके शव को उठाकर एक योजन दूर फेंक दिया। मार्ग में उसके मुँह से निकली [[रक्त]] की बूंदें महर्षि मतंग के आश्रम पर जाकर गिरीं। महर्षि मतंग ने बालि को शाप दिया कि वह और उसके वानरों में से कोई यदि उनके आश्रम के पास एक योजन की दूरी तक आयेगा तो मर जायेगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दुंदुभी दैत्य]] | ||[[दुंदुभी दैत्य|दुंदुभी]] [[कैलास पर्वत]] के समान एक विशाल [[दैत्य]] था, जिसमें हज़ार [[हाथी|हाथियों]] का बल था। एक भयंकर युद्ध में दुंदुभी का वध [[बालि]] के हाथों हुआ, जिसने उसके शव को उठाकर एक [[योजन]] दूर फेंक दिया। मार्ग में उसके मुँह से निकली [[रक्त]] की बूंदें महर्षि मतंग के आश्रम पर जाकर गिरीं। महर्षि मतंग ने बालि को शाप दिया कि वह और उसके वानरों में से कोई यदि उनके आश्रम के पास एक योजन की दूरी तक आयेगा तो मर जायेगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दुंदुभी दैत्य]] | ||
{[[लंका]] के राजा [[रावण]] की पुत्री का क्या नाम था? | {[[लंका]] के राजा [[रावण]] की पुत्री का क्या नाम था? | ||
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-[[दमयंती]] | -[[दमयंती]] | ||
{श्री [[राम]] की सेना में [[विश्वकर्मा]] के | {श्री [[राम]] की सेना में [[विश्वकर्मा]] के अंशावतार कौन थे? | ||
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-[[जामवन्त]] | -[[जामवन्त]] | ||
+[[नील]] | +[[नल (रामायण)|नल]] और [[नील]] | ||
-[[सुग्रीव]] | -[[सुग्रीव]] | ||
-[[नल (रामायण)|नल]] | -[[अगंद]] | ||
|| [[रामायण]] में राम-सेना के एक प्रसिद्ध वानर [[नल (रामायण)|नल]] और [[नील]], [[विश्वकर्मा]] के अंशावतार थे। दक्षिण में समुद्र के किनारे पहुंचकर राम ने [[समुद्र]] की आराधना की। प्रसन्न होकर वरुणालय ने [[सगर]] पुत्रों से संबंधित होकर अपने को [[इक्ष्वाकु]] वंशीय बतलाकर राम की सहायता करने का वचन दिया और उसने कहा-'सेना में नल नामक [[विश्वकर्मा]] का पुत्र है। वह अपने हाथ से मेरे जल में जो कुछ भी छोड़ेगा वह तैरता रहेगा, डूबेगा नहीं।' | |||
{[[ब्रह्मा]] ने 'ब्रह्माशिर' नामक [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] किसे प्रदान किया था? | {[[ब्रह्मा]] ने 'ब्रह्माशिर' नामक [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] किसे प्रदान किया था? | ||
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-[[राम]] | -[[राम]] | ||
+[[मेघनाद]] | +[[मेघनाद]] | ||
||मेघनाद ने 'निकुंभिला' के स्थान पर जाकर 'अग्निष्टोम', '[[अश्वमेघ यज्ञ|अश्वमेघ]]' आदि सात [[यज्ञ]] करके [[शिव]] से अनेक वर प्राप्त किये थे। मेघनाद को [[ब्रह्मा]] के वरदान से 'ब्रह्माशिर' नाम का [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] और इच्छानुसार चलने वाले घोड़े प्राप्त थे। वह जिस सिद्धि को प्राप्त करने निकुंभिलादेवी के मंदिर में गया था, उसे सिद्ध करने के उपरांत [[देवता|देवताओं]] समेत [[इन्द्र]] भी उसे जीतने में असमर्थ हो जाते। ब्रह्मा ने उससे कहा था- 'हे इन्द्रजित, यदि तुम्हारा कोई शत्रु निकुंभिला में यज्ञ समाप्त करने से पूर्व तुमसे युद्ध करेगा तो तुम | ||मेघनाद ने 'निकुंभिला' के स्थान पर जाकर 'अग्निष्टोम', '[[अश्वमेघ यज्ञ|अश्वमेघ]]' आदि सात [[यज्ञ]] करके [[शिव]] से अनेक वर प्राप्त किये थे। मेघनाद को [[ब्रह्मा]] के वरदान से 'ब्रह्माशिर' नाम का [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] और इच्छानुसार चलने वाले घोड़े प्राप्त थे। वह जिस सिद्धि को प्राप्त करने निकुंभिलादेवी के मंदिर में गया था, उसे सिद्ध करने के उपरांत [[देवता|देवताओं]] समेत [[इन्द्र]] भी उसे जीतने में असमर्थ हो जाते। ब्रह्मा ने उससे कहा था- 'हे इन्द्रजित, यदि तुम्हारा कोई शत्रु निकुंभिला में यज्ञ समाप्त करने से पूर्व तुमसे युद्ध करेगा तो तुम मारे जाओगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेघनाद]] | ||
{राजा [[जनक]] के भाई कुशध्वज किस नगर के राजा थे? | {राजा [[जनक]] के भाई कुशध्वज किस नगर के राजा थे? |
10:57, 21 मई 2012 का अवतरण
रामायण सामान्य ज्ञान
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